Mysterious nights [part 22]

दमयंती मन ही मन परेशान थी, वह जानना चाहती थी, कि ज्वाला उसको लेकर क्या सोचता है ? तभी वह कोई आगे कदम बढ़ा पाएगी इसलिए वह उसे फोन करके,'' जंगल'' नाम के खूबसूरत बगीचे में बुलाती है। वह वहां ज्वाला से अपने मन की बात कह ही देती है। तब ज्वाला, महसूस करता है कि इसने जो भी घर में, कोहराम मचाया था वो मेरे प्रेम के कारण ही था ,इसे भी गलतफहमी हो गई थी कि'' जगत भैया'' की जगह मैं हूं। उसका दिल किया कि वह जोर से चीखे, अपने हृदय के सब बंद दरवाजे खोल दे ! किंतु शांत और गंभीर बने रहने का अभिनय करता रहा, अब मैं चलता हूं ,कहकर वो उठने का प्रयास करने लगा।  

इतनी जल्दी ,निरीह भाव से ,बेचैन होकर दमयंती बोली। 

अब इन मुलाक़ातों से कोई लाभ नहीं। 


क्यों नहीं है ?मैं तुमसे प्यार करती हूँ ,तुम मुझसे प्यार करते हो। तुमने मुझे अपने घर अपने सामने  देखकर एक बार भी यह नहीं कहा या सोचा- इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई है ?

 अब इन बातों से कोई लाभ नहीं है, गलती तो हुई है किंतु उसका कोई सुधार नहीं है। 

सुधार है, मैं उनसे तलाक ले लूंगी। मैं ज़िंदगी भर इस रिश्ते को अब और नहीं ढ़ो सकती। यदि तुम मेरे साथ हो तो सब संभव है एकाएक दमयंती ने  ज्वाला का हाथ अपने हाथों में ले लिया।  

 तुम क्या समझती हो ?बड़े भाई से तलाक लेकर, छोटे बेटे की बहू बनकर क्या उस घर में पुनः आ जाओगी ,ऐसा नहीं होता है और न ही घरवाले इस बात को समझ पायेंगे।मेरा घर तो बस जायेगा ,भाई का क्या ?जिसमें उनकी कोई गलती नहीं ,न ही कोई गलतफ़हमी। तुम जानती हो, तुम्हारे शोर मचाने के कारण, भाई को कितना दुख पहुंचा , अगले दिन में होटल में, वहीं बैठे, शराब पीते रहे और मैं सोच रहा था, न जाने ये  क्यों घर नहीं जा रहे हैं ? काश !कि तुम उस दिन अपना नाम बता देतीं। वो हीरे की अंगूठी और हार मैंने तुम्हारे लिए ही लिए लिया था ,तुम्हें उपहार में देना चाहता था किन्तु तभी भाई के विवाह की बात चली। हमारे घर का पहला विवाह था इसलिए मम्मी मुझसे बोलीं -बहु के लिए हीरे का सेट आएगा। तब मैंने कहा ठीक है ,एक दिन शहर जाकर ले आएंगे किन्तु उन्हीं दिनों संयोग से मम्मी मेरे कमरे की अलमारी से कुछ सामान लेने गयीं और उन्होंने वह सेट देख लिया और निकाल लिया। उन्हें लगा ,मैं वो सेट लेकर आ गया हूँ ,उन्हें भी वह डिजाइन पसंद आया और 'जगत भइया ''की होने वाली पत्नी के लिए रख लिया। 

एक दिन मैंने अपनी अलमारी में उस डिब्बे को नहीं देखा तो घर में पूछा -तब मम्मी बोलीं ,जिसके लिए लाया है ,वहीं जायेगा। बात ये नहीं है, कि उन्हें औरत के ज़िस्म की कमी है या पैसे की कमी है। कमी है ,तो सच्चे प्यार की ,जो उन्हें तुमसे मिलता।एक विश्वास ,एक ठहराव उनके जीवन में आ जाता। 

इस सबके लिए मैं, अपने प्यार की कुर्बानी नहीं दे सकती दमयंती स्पष्ट बोली।  

अभी सब चीजें सुलझी हुई हैं , तुम उन्हें और क्यों उलझाना चाहती हो ?

तुम्हारी नजरों में सब चीजें  उलझी हुई होगी, किंतु मेरी जिंदगी तो उलझ कर रह गई है न.....  अब मैं क्या करूं ?

जैसे जिंदगी चल रही है ऐसे ही, चलाती रहो , हमारा मिलन ही कितना हुआ है ? हम अभी अपने को संभाल सकते हैं। 

ज्यादा मिलने से, प्यार कोई गहरा नहीं हो जाता , कभी-कभी एक दो मुलाकात ही जीवन भर का साथ भी हो जाती हैं। मैं कुछ भी नहीं जानती, यदि मैं अब वहां जाऊंगी, तो तुम्हारे संग ही जाऊंगी और तुम्हारी पत्नी बनकर ही रहूंगी। 

यह कैसी जिद है ? अपनी ज़िद के कारण तुम मुझे दोराहे पर लाकर खड़ा कर रही हो। मैं न ही  इधर का रह पाऊंगा, न उधर का। 

मेरी भी तो यही हालत है, अब मैं अपने घर भी नहीं रह सकती, और ससुराल मैं जाना नहीं चाहती।

तभी ज्वाला ने फोन करके किसी से कुछ कहा। कुछ देर पश्चात ही ,एक व्यक्ति वहां आया और खाने के लिए कुछ  लेकर आया था। उसने वहीं से लेकर एक मेज लगाई और कुछ पीने ओर खाने का सामान सजा दिया। तुमने ये सब कैसे मंगवाया ?मुझे बहुत भूख भी लगी है ,कल से ठीक से कुछ खाया भी नहीं था। कहते हुए उसने वे लिफाफे खोले ,ज्वाला ,दमयंती को देख रहा था और सोच रहा था ,इसने स्पष्ट रूप से इस बात को स्वीकार तो कर  लिया कि यह मुझसे प्रेम करती है किन्तु मैं तो वो भी न कर सका। अब ऐसा क्या किया जाये ?जो इज्जत भी बनी रहे और ये भी घर आने के लिए तैयार हो जाये। 

क्या सोच रहे हो ?आ जाओ ! तुम भी खा लो !नाश्ता करते समय अचानक ही दमयंती ने पूछा -अब तुमने क्या सोचा ?

किस विषय में ?परेशान होते हुए ज्वाला ने पूछा। 

लो !सम्पूर्ण रामायण समाप्त हो गयी और इन्हें पता ही नहीं चला कि सीता कौन थी ?व्यंग्य से दमयंती बोली। मम्मी -पापा कह रहे थे,कि कल मुझे लेने आ रहे हैं ,अब मैं क्या करूं ?

तुम क्या चाहती हो ?जाना चाहती हूँ, किन्तु तुम्हारे संग !  मैं तुम्हारी होकर रहना चाहती हूँ। 

ऐसा कैसे सम्भव है ?कल तुम्हें लेने भइया ही आएंगे ,वैसे जो हालत तुमने उस दिन पैदा किये थे ,मुझे तो नहीं लगता वो आसानी से वो रस्म निभाने आएंगे। 

न आएं ,मुझे क्या ?वो लापरवाही से बोली। 

तुमने एक बार भी सोचा है ,यदि तुम मेरे साथ चली भी गयीं तो रहोगी तो भाई की पत्नी बनकर ही ,इससे क्या हो जायेगा ?अभी ऐसा भी नहीं हो सकता ,तुम उनसे तलाक लो !सबकी नजरें तुम्हारी ओर उठेंगी और कारण जानना चाहेंगी। दूसरा रास्ता भी सम्भव  नहीं है। 

वो कैसे ?

दूसरा रास्ता ,यही है मेरा विवाह तुमसे हो ,तो यह भी सम्भव नहीं है ,यदि तुम उस घर में नहीं गयीं तो मेरा साथ कैसे सम्भव है ?

ये भी नहीं ,वो भी नहीं ,तब इस जंजाल से कैसे बाहर निकला जा सकता है ?परेशान होते हुए दमयंती ने पूछा।

ज्वाला और दमयंती की जिंदगी में, अब क्या बदलाव आने वाला है ? क्या दमयंती अपनी ससुराल वापस जायेगी या फिर जगत सिंह से तलाक ले लेगी। अब यह निर्णय उसका होगा , ज्वाला को तो कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा था। क्या दोनों का विवाह हो पाएगा या नहीं ?आपको कहानी कैसी लग रही है ?अपनी समीक्षाओं से अवगत कराते चलिए ! आगे बढ़ते हैं।  


 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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