Bhuton ki gapashap

कुछ भूतों ने मिलकर ,एक गोष्ठी की घोषणा की और सभी भूतों को उस अधिवेशन में आमंत्रित किया गया , वह निमंत्रण देखकर सभी भूत अचंभित रह गए ,यह अचानक से मीटिंग किस लिए हो रही है ? परेशान भूत, प्रेत, जिन्न इत्यादि एक खंडहर में इकट्ठा हो गए और जिस भूत ने निमंत्रण भेजा था उससे पूछा -कि हमें यहां क्यों बुलवाया गया है ?

क्या आप लोग समझते नहीं या समझना नहीं चाहते , उस मुख्य भूत ने कहा। 

हमें क्या समझना है ? तब एक दूसरे भूत ने उठकर पूछा। 


मैं यही कहना चाहता हूं, मुझे लगता है-' धीरे-धीरे हमारा अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है, पहले लोग हमारे नाम से ही थर-थर कांपते थे और डरने लगते थे किंतु अब लगता है, इंसान हमसे भी बड़ा भूत हो गया है। कहने को तो वह वर्तमान में जी रहा है किंतु उससे बड़ा भूत कोई नहीं है, आज के समय में उसके कारण हमारा अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर आ गया है। क्या यह चिंता का विषय नहीं है ? 

मुझे तो ऐसा नहीं लगता है,इंसान हमारा क्या बिगाड़ लेगा ?तब तक उसे खुश होना है होने दीजिये ,उसके पश्चात, वही इंसान मरकर भूत ही तो बन जाता है, जितने भी इंसान मरेंगे वह भूत- प्रेत, और जिन्न की योनि में ही तो आ जाते हैं। 

वह तो मैं समझ रहा हूं, किंतु मरने के पश्चात वह भूत बनेगा लेकिन वह जीते जी,तो हमें समाप्त किये  दे रहा है। 

अब हमारा रहने का ठिकाना भी नहीं रहा, पहले हमारी चुड़ैलें पेड़ों पर लटकी रहती थीं किंतु अब इस इंसान नामक जीव ने, पेड़ ही काट डाले, खुद तो मरेगा ही ,हमें भी मरवाइएगा ।मेरी छमिया पेड़ पर लटके हुए कितनी अच्छी लगती थी ?रोते हुए ,वो भूत बोला,किन्तु 'अब मेरे सीने पर मूंग दल रही है।'  धीरे-धीरे खंडहर भी, गिने- चुने ही बचे हैं। क्योंकि इंसानों की आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और वह अपने रहने के लिए, अब जंगलों तक भी आ गया है जहां भी खाली स्थान देखता है ,वहीं पर प्लाट काट देता है। इससे बुरी स्थिति और क्या होगी? हमारी !चिंतित होते हुए उस मुख्य भूत ने कहा।

 हम पहले मनुष्य को डरा कर भगा देते थे, किंतु आज मनुष्य हमें डरा रहा है। कत्ल करने से वह पीछे नहीं हटता ' खून की दरिया बहा रहा है ', जिसे देखकर कभी-कभी मन में घबराहट होने लगती है। हमारा उद्देश्य तो सिर्फ यही था कि इंसानों को डराए रखें और अपना अस्तित्व कायम रखें किंतु इंसान तो लगता है हमारे लिए रहने के लिए स्थान भी नहीं छोड़ेगा और हमें त्रिशंकु की तरह , धरा और आकाश के बीच में ही लटकना पड़ेगा। 

वैसे तो, यह चिंता का विषय है किंतु कोई 'गल नहीं जी' तभी एक सरदार भूत आगे आकर बोला  -जब सभी इंसान मर जाएंगे और भूत ही हो जाएंगे। आजकल अब इंसानों को इंसानों पर विश्वास ही नहीं रहा है। इंसान अपने आप ही बढ़ता जा रहा है, भले ही आबादी इतनी बढ़ गई हो किंतु इंसान अकेला भी पड़ता जा रहा है। अकेला तो'' चना भी भाड़ में ही फोड़ सकता'' तो इंसान क्या कर लेगा ? इसीलिए मैं कहता हूं चिंता करना व्यर्थ है , 'चिंता, चिता के समान है , 'तुस्सी चिंता ना करो, कुछ दिनों में ये इंसान आपस में ही लड़ मरकर, और अकेले, एकांतवास में रहकर स्वयं ही भूत बन जाएंगे, हो सकता है -कुछ जीवित भी रहे, किंतु उनके उन घरों पर फिर हमारा ही राज होगा। कहो जी कैसी कही ? शराब, गुटका, यह सब खाकर तो इंसान वैसे ही भूतों की श्रेणी में आ जाता है,उसे कहाँ कुछ याद रहता है कि वह भूत है या इंसान ! इसलिए तुस्सी चिंता ना करो ! कहो जी, कैसी कही ? 

मेरी जान खूब कही, कहते हुए सभी भूतों ने ताली बजाई और उस मुख्य भूत को सांत्वना देकर धीरे-धीरे अपने -अपने  निर्जन स्थानों  की ओर प्रस्थान कर गए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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