श्याम लाल जी और उनकी पत्नी शकुंतला देवी, अपनी बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित थे। उसके निर्णय से परेशान थे, उन्हें डर था, कहीं ये अपनी जिद पूरी करने के लिए, कुछ भी गलत कदम न उठा ले। तभी अपनी पत्नी को समझाते हैं- मुझे लगता है, वह कहीं कुछ कर बैठे ?तुम उसका ख़्याल रखना ,आजकल घर में स्यानी लड़की के माता -पिता होना भी ,यूँ समझो !'तलवार की धार पर नंगे पैर चलने के समान है।' पहले उसे पालते समय, उसकी सुरक्षा का ख्याल रखना ,बुरी नजरों से बचाना। उसके पश्चात विवाह करके उनकी अमानत को ससुराल वालों को सौंपना। वहां भी वह खुश रहे तो, गंगाजी नहाएं किन्तु लगता है ,अभी हमारे गंगाजी नहाने का समय नहीं आया दुखी होते हुए श्यामलाल जी बोले।
कमरे में आकर दमयंती फिर से ज्वाला को फोन लगाती है ,तब वह सोचती है -मुझे लगता है ,वह जानबूझकर मेरा फोन नहीं उठा रहा है ,किंतु उसे मेरा फोन नंबर तो मालूम ही नहीं होगा फिर क्यों नहीं उठाएगा। वह फोन पर दोबारा प्रयास करती है। अबकी बार किसी ने फोन उठाया,उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगीं । उधर से आवाज आई -हेलो ! कौन ?
ह्रदय की धड़कनों को संभालते हुए ,एकदम से बोली -तुम मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे हो ? उतावलेपन और क्रोध से वह बोली।
आप कौन बोल रही हैं ? अपना परिचय तो दीजिए।
क्या तुम' ज्वाला 'नहीं हो ?इससे पहले कि वह कुछ कहता दमयंती ने अपने आपको संभाला। मेरा मतलब है , ''राय बहादुर होटल 'के मलिक के बेटे ''ज्वाला सिंह''जी बोल रहे हैं।
जी कहिए !
मैं दमयंती ! कुछ देर के लिए दोनों तरफ खामोशी पसर गई, तब दमयंती बोली -मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।
अब यह नाम मुझे क्यों बता रही हैं ? अब कोई लाभ नहीं है, कहते हुए उसने फोन रख दिया।
यह क्या बात हुई ?वह बुरी तरह चिढ़ गई, मेरा फोन काट दिया , मुझसे बात नहीं करना चाहता है। गुस्से से फिर फोन करती है वह लगातार फोन करती रही, तब फिर से फोन उठा और वह बोला -अब क्यों मिलना चाहती हैं ?
मुझे बहुत कुछ कहना है, बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई है एक बार मिलना चाहती हूं, प्लीज़ ,प्लीज़ ,प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़ मुझसे एक बार मिल लो !उसकी मिन्नतें करते हुए रोने लगी।
कुछ देर पश्चात स्वरा उभरा। कहां पर मिलना है ?
दमयंती प्रसन्न हो गई और अपने आंसू पोंछते हुए बोली -मेरा यह नंबर अपने फोन में सुरक्षित कर लो ! अभी थोड़ी देर में, मेरा संदेश आएगा कहते हुए उसने फोन रख दिया। फोन रखकर दमयंती सोच रही थी कि मुझे ज्वाला को कहां बुलाना चाहिए ? अब मन ही मन में सोच रही थी यदि यह कदम मैंने पहले उठा लिया होता मेरे जीवन में इतनी बड़ी गलती नहीं होती। तब वह उसे पास के जंगल में ही, आने के लिए कहती है। उस जंगल में, कोई उन्हें देख भी नहीं सकता था और वहां पर सुरक्षा के भी सम्पूर्ण साधन थे। अधिकतर वहां पर पर्यटक घूमने आते हैं। वह स्थल कहने को तो एक' जंगल' था यानि उसका नाम ही 'जंगल' था किंतु उसे, उसकी देखरेख उसकी सुंदरता के लिए पसंद किया जाता था।
जब वह जंगल में पहुंची, तो उसे 'ज्वाला' पहले से ही उसकी प्रतीक्षा करते हुए दिखलाई दिया। उसका मन किया कि वह जाकर ज्वाला से लिपट जाए और तब तक रोती रहे जब तक उसके मन का सम्पूर्ण ड़र,उससे दूर होने की घबराहट सब समाप्त न हो जाये। उससे बात करती रहे ,जब तक मन की सम्पूर्ण बातें उसे बता न दे, किंतु इतने नजदीक से वह ज्वाला से अब दूसरी बार मिल रही थी। ज्वाला ने दमयंती की तरफ देखा ,आज भी ये कितनी सुंदर लग रही है ?किन्तु उसकी मांग में अपने भाई के नाम का सिंदूर देखकर उसने नजरें झुका लीं,गंभीर होते हुए उसकी तरफ देखा और पूछा -मुझे यहां क्यों बुलाया है ?
क्या तुम नहीं जानते हो, नजरें नीचे करके दमयंती ने पूछा -आसपास नजर दौड़ाते हुए दमयंती ने एक बेंच पर बैठने के लिए उससे इशारा किया। जब दोनों बेंच पर बैठ गए ,तब दमयंती ने कहना आरम्भ किया -मेरे कुछ प्रश्न है, मैं उनका जवाब जानना चाहती हूं।
कैसे प्रश्न ? ज्वाला ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
आपने मेरे लिए केक क्यों भिजवाया था ?
नज़रें चुराते हुए, ज्वाला बोला -इसमें कोई विशेष बात नहीं है, जब मुझे पता चला, तुम्हारा जन्मदिन है और मैं भी उस दिन पहली बार होटल में आया था मुझे लगा- यह शुभ मौका है, केक काटने के लिए।
क्या तुम हर व्यक्ति के लिए इसी तरह केक भेजते हो, उसकी तरफ देखते हुए दमयंती ने पूछा।
यह क्या बात कर रही हो ? हर किसी को इस तरह केक भेजेंगे , तो हमारे व्यापार का क्या होगा ?जबरन अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए बोला।
वही तो मैं पूछना चाहती हूं, जब मेरे लिए केक भिजवाया था, कुछ तो सोचा होगा।मैं आपको जानती भी नहीं थी। अब ज्वाला उसे कैसे कहे, कि वह पहली नजर में ही उसे पसंद करने लगा था यह केक तो उसके प्रेम कहानी की शुरुआत थी, किंतु अब तो रिश्ता ही बदल गया कुछ कह नहीं सकता।
बात को बदलते हुए बोला-क्या तुमने मुझे यहां ऐसी बातें करने के लिए बुलाया है ?
ऐसी बातें ! मैं कैसी बातें कर रही हूँ ?मैंने कोई गलत बात की है। क्या मुझे एक बात सच -सच बता सकते हो ? क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं हो गया था ?
ये कैसी बातें कर रही हो,मैंने ऐसा कभी सोचा भी नहीं था।
अपने होटल से खड़े होकर मेरी तरफ देखना ,मेरी प्रतीक्षा में रहना ,वो सब क्या था ? मान लिया ,नहीं करते न..... एक बात और पूछनी थी, वह हीरे की अंगूठी तुमने किसके लिए ली थी ? इस सवाल मैं वह थोड़ा चुप हो गया तब वह बोला -वह अंगूठी जिसकी थी, जिसके लिए ली गई थी, वहीं पर पहुंच गई।
यानी कि वह अंगूठी मेरे लिए ली गई थी, क्या तुम जानते थे कि तुम्हारे भाई का विवाह मेरे साथ हो रहा है।
नहीं, क्या तुमने मेरी कोई तस्वीर नहीं देखी या मेरा नाम भी नहीं सुना।
तस्वीर देखने की मुझे क्या आवश्यकता थी ? वह तो भाई के लिए रिश्ता आया था तो भाई को ही देखना था, मैं नहीं जानती जानता था जिस दमयंती से भाई का विवाह हो रहा था , वो तुम हो !
यदि जानते तो....... एक नजर ज्वाला ने दमयंती की तरफ देखा और वो चुप हो गया।तब शांत स्वर में बोला - हो सकता है, उस दिन तुम अपना नाम बता देतीं , तो शायद मैं समझ जाता।
बेंच पर हाथ मारते दमयंती बोली -वही गलती तो...... मुझसे भी हो गई, पापा ने होटल के मालिक का बेटा बताया था, और मैंने तुम्हें समझा। मैं तो तुम्हें बिन देखे ही ,न जाने कैसे, तुम्हारी ओर खिचने लगी थी और जब मॉल में हमारी मुलकात हुई तो लगा,' मेरे सपनों का राजकुमार मिल गया।'