कमरे में सभी के चेहरे उदास थे,'' श्याम लाल जी''जो अभी कुछ देर पहले इत्मीनान से 'समाचार पत्र 'के साथ बैठे चाय की चुस्कियों का मजा ले रहे थे। अब वो चिंतित नजर आ रहे हैं ,उन्होंने भी महसूस तो किया था कि दमयंती के व्यवहार में कुछ परिवर्तन तो आया है किन्तु उसका कारण ये होगा ,वे सोच भी नहीं सकते थे।जब शकुंतला जी ने उन्हें ,दमयंती के ससुराल न जाने का कारण बतलाया। वे सोच रहे थे-यह अचानक क्या हो गया ? संपूर्ण बातें सुनने के पश्चात भी वह निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि क्या सही है और क्या गलत है ? ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी से रिश्तेदारी होने के पश्चात, उन्हें लगता था कि उनका स्तर और अधिक बढ़ गया है लोग उन्हें अब ज्यादा जानने लगे हैं। वह तो उम्मीद लगाए बैठे थे, आगे जो भी होगा सब फायदे का ही होगा किंतु यहां बेटी इस रिश्ते को तोड़ने के लिए बैठी है। बहुत सोचने के पश्चात वह बोले -इसमें हमारी कोई गलत ही नहीं है।
तो क्या मेरी गलती है ?तुनकते हुए दमयंती बोली।
गलती तुम्हारी भी नहीं है, किंतु क्या कर सकते हैं ? अब उनसे यह तो नहीं कह सकते कि तुम्हारे छोटे बेटे से हमारी बेटी का विवाह करवाइए ! अभी तो उससे बड़े भी दो और हैं।
तब मैंने निर्णय किया है कि मैं अब वहां नहीं जाऊंगी।आपने विवाह करने से पहले यह भी देखा कि वो ''जगत ''मुझसे कितना बड़ा है ? वैसे ही आँख मूंदकर विवाह करा दिया।
तुमने भी तो उसे देखा था ,जब हम कपड़े खरीदने गए थे वो वहीं था ,शकुंतला देवी ने स्मरण करते हुए कहा।
वहां ज्वाला भी तो था ,मैंने उसे ही देखा था ,मैंने कभी उससे बात नहीं की वरना वहीं पूछ लेती इसीलिए इस गलतफ़हमी को सुधारने के लिए मैंने सोचा है ,अब मैं उस गांव में फिर से नहीं जाउंगी।
क्यों नहीं जाओगी ? अब वही तुम्हारा ससुराल है,श्यामलाल जी बोले -तुम्हारी ससुराल वाले पूछेंगे , बेटी को विदा कब कर रहे हो ? समाज में चार लोग पूछेंगे , विवाह के पश्चात लड़की को घर में ही बिठाकर क्यों रखा है ? वह ससुराल क्यों नहीं जा रही है ? तुम्हारा क्या है? तुम्हें न समाज की परवाह है, ना परिवार की परवाह है। हमें तो बाहर जाकर, चार लोगों से मिलना पड़ता है , उनके सवालों के जवाब भी देने पड़ते हैं।
आप लोग समझते क्यों नहीं है ? वहीं पर ज्वाला भी होगा मैं कैसे उसके सामने, 'जगत' को अपना पति मान पाऊंगी ?
यदि वह नहीं होगा, तब क्या ?
आप लोग कहना क्या चाहते हैं ? उसे क्या मेरी नजरों के सामने से, दूर कर देंगे ?
नहीं, हम ऐसा कुछ भी नहीं करना और कहना चाहते हैं किंतु तुम एक बार वहां चली जाओ ! उसके बाद देखेंगे कि क्या स्थिति होती है ?
स्थिति कुछ भी नहीं होगी, और बिगड़ जाएगी ऊपर से वो सुनयना देवी, उन्होंने जबरदस्ती ही, मुझसे सभी रस्में करवाईं जबकि मैं करना नहीं चाहती थी, किंतु उन्होंने अपने घर के मान- सम्मान के लिए मुझ पर दबाव बनाया।
दोनों पति -पत्नी ने एक -दूसरे की तरफ देखा और शकुंतला देवी ने पूछा -क्या वो ये सब बातें सब जानती हैं ?
हां, मैंने उनसे कह दिया था, कि यह मेरा पति नहीं है।
दमयंती की बात सुनकर दोनों पति पत्नी आश्चर्य से उसके मुंह की तरफ देख रहे थे तब उन्होंने उससे पूछा-क्या उन्होंने कुछ नहीं कहा।
उन्होंने तो बस इतना ही कहा, कि अभी विवाह की सभी रस्में होने दो ! तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है, अपने पिता से जाकर पूछ लेना !
उन्होंने उचित निर्णय लिया, यह परिवारों के मान- सम्मान की बात बन गई है, श्याम लाल जी बोले।
और मेरा क्या ? मैं कहां जाऊं ? तुम लोगों के मान- सम्मान के चक्कर में,अपने प्यार को भूल जाऊँ।
भूल जाओगी तो अच्छा ही होगा, वरना अपनी जिंदगी में मुसीबतें ही पैदा करोगी और इससे किसी को लाभ नहीं होगा।
मैं ऐसा नहीं करूंगी , मैं जाऊंगी ही नहीं, जिद करते हुए दमयंती बोली।
क्यों नहीं जाओगी ?खीझते हुए ,श्यामलाल जी बोले -अपनी बेटी दमयंती की जिद पर क्रोध आ रहा था तब वह बोले -प्यार तो तुम उस 'जॉन' से भी करतीं थीं , विदेश में न जाने क्या-क्या गुल खिला रही थीं ?मेरा मुंह मत खुलवाओ ! तुम वहां विदेश में थीं इसीलिए किसी को पता नहीं चला वरना कितनी बदनामी होती ? वो तो अच्छा हुआ ,तुम्हें यहां बुलवा लिया गया। तुम क्या समझती हो? कि हमें कुछ मालूम नहीं है। मां-बाप है, तुम्हारे ! अब जो भी किस्मत ने लिख दिया, वह सब तुम्हें, अब खुशी-खुशी स्वीकार करना होगा। यह तो अच्छा हुआ अमर प्रताप सिंह जी का, जो उन्होंने बिना किसी छानबीन के, दोस्ती के नाते, हमारा रिश्ता ले लिया वरना लड़के ढूंढते -ढूंढते, हमारी जूतियां घिस जातीं , बिरादरी में कोई भी बात ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकती है।अभी किसी को पता नहीं है ,तुम्हारी डिग्री भी अधूरी है ,तुमने पढ़ाई भी पूरी नहीं की। अब जो हो गया, सो हो गया, इससे ज्यादा की उम्मीद करना व्यर्थ है। कल वह लोग आएंगे और तुम्हें जाना ही होगा श्यामलाल जी ने अपना अंतिम निर्णय सुनाया।
आप लोग मुझे मेरी पिछली जिंदगी की बातें सुन कर किसी काम के लिए मजबूर नहीं कर सकते , मैं नहीं जाऊंगी, कह कर वह गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई। पता नहीं, यह लोग अपने को क्या समझते हैं ?किसी के प्यार को प्यार नहीं समझते ,यदि मैंने जॉन से प्रेम किया तो क्या बुरा किया ? वहां की सभ्यता ही ऐसी है ,वहां ऐसे दकियानूसी विचार नहीं रखते हैं ,इससे तो मैं वहां ही सही थी। मेरी ये संपूर्ण सुंदरता, क्या उस गांव में यूँ ही नष्ट हो जाएगी ? सोचा तो यही था, ज्वाला से विवाह करके उस होटल की मालकिन बन जाऊंगी देश-विदेश घूमा करूंगी। यहां आकर न जाने, किन झमेलो में फंस गई। मैं इस तरह बंधन में नहीं रह सकती। अब माँ -बाप भी मेरी परेशानी नहीं सुन रहे ,तो मैं कहाँ जाउंगी ?
तब वह क्रोध में, ज्वाला को फोन लगाती है , बहुत देर तक कोई भी फोन नहीं उठाता है। मन ही मन बुदबु दाई -यह मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहा है? जब बुरा वक्त आता है ,तो अपने भी साथ छोड़ देते हैं। मन में अजीब सी बेचैनी बढ़ गई थी।
वह फुर्ती से उठी, उसने अपनी चप्पल पहनी, और बाहर निकल गई , वह देखना चाहती थी, कि ज्वाला क्या आज भी वहीं खिड़की के पास बैठा होगा ? जब वह बाहर गई, उसने खिड़की की तरफ देखा, खिड़की बंद थी। बहुत देर तक उस खिड़की को निहारती रही, उसके पश्चात, वापस अपने कमरे में आ गई।
देखना ,यह लड़की क्या कर रही है ? बिना बताये बाहर क्यों गयी है ? श्याम लाल जी ने, शकुंतला देवी से पूछा।
अपनी किसी सहेली के पास गई होगी, उसकी जिंदगी में इतना बड़ा बदलाव आया है और वह भी उसके मन मुताबिक नहीं हुआ है,बोरा सी गयी है।