अगले दिन उठकर, दमयंती अपना फोन देखती है, उसमें कुछ नंबर देखती है,ये तो सिर्फ़ मन बहलाने का बहाना था ,दरअसल वह जानना चाहती थी क्या मेरे लिए कोई संदेश तो नहीं आया ?उसके मन ने उसे समझाया -ऐसा कैसे हो सकता है ? उसके पास मेरा नंबर ही कहाँ होगा ? एक बार 'ज्वाला' से बात करना चाहती है किंतु स्वयं फोन करते हुए ,मन में अजीब सी घबराहट होने लगती। निराश होकर, वापस उस फोन को रख देती है।
ऐसा लगता है जैसे, उसे किसी के फोन के आने की उम्मीद हो। निराश होकर बार-बार वह फोन देखती है, शायद उसे किसी के फोन के आने का इंतजार है किंतु निराश होकर वापस अपने को व्यस्त करने का प्रयास करती है। न जाने, वह क्या सोच रहा होगा ?
खिड़की के पास आकर बैठ जाती है, कितनी हंसी खुशी में दिन बीतते थे ? जब मैं पहली बार कॉलेज में गई थी। वहां उसे पहली बार में ही, सकारात्मक लोग मिले। जिन्होंने, अपनी भाषा में उसकी प्रशंसा भी की। ओह !भारतीय सुंदरता ! तुम वास्तव में बहुत सुंदर हो, एक अंग्रेज ने उसके करीब आकर कहा था। उसे बड़ा अच्छा लगा था, कि वह अंग्रेज होकर भी, हिंदी में उससे बात करने का प्रयास कर रहा था।
''व्हाट इज योर नेम ''दमयंती ने उससे पूछा था।
मेरा नाम 'जॉन 'है कहते हुए उसने अपना हाथ आगे कर दिया किन्तु दमयंती ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए ,वो मुस्कुराया और उसने भी अपने दोनों हाथ जोड़ दिए।
धीरे-धीरे उन दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं, उनमें अच्छी दोस्ती हो गई। वह उसे अपनी भारतीय सभ्यता संस्कृति के विषय में बताती ,वो ध्यान से उसकी बातें सुनता,जैसे कि उसकी बातों में खो जाता।
दमयंती ! बेटा जरा इधर आना ! शकुंतला देवी ने भोजन के लिए दमयंती आवाज दी थी।
जी, मम्मी आई, शकुंतला देवी बोली-मैं 2 दिनों से देख रही हूँ, हमारी बेटी दमयंती जब से ससुराल से आई है। खुश नहीं है, गुमसुम सी रहती है। तब वे उससे पूछती है- दमयंती ! तुम्हारी तबीयत तो ठीक है।
गंभीर मुद्रा में दमयंती बोली-हां, मैं ठीक हूं।
मुझे तो नहीं लगता, तुम कुछ गुमसुम सी हो। कुछ बात हुई है क्या? किसी ने कुछ कहा है।
नहीं, किसी ने भी कुछ नहीं कहा है।
कल तुम्हें तुम्हारी ससुराल वाले लेने आ रहे हैं, जो कुछ भी खरीदारी करनी है, या कुछ सामान लेना है, ले लो !और हमारी तैयारी में सहायता कराओ !
नहीं, मुझे किसी सामान की अभी कोई आवश्यकता नहीं है और न ही मैं, अपनी ससुराल जा रही हूं।
क्यों, तुम ऐसा क्यों कह रही हो ?क्या बात है ?वो चिंतित होते हुए बोलीं।
नहीं जाना है, बस इतना समझ लीजिए ,रूखे स्वर में दमयंती बोली।
वही तो मैं भी पूछ रही हूं, क्यों नहीं जाना है ? तब तो तुमने खुशी-खुशी विवाह कर लिया , अब क्या कुछ हुआ है ? क्या ससुराल वालों ने कुछ कहा है ? ऐसा लगता तो नहीं है , ठाकुर साहब !तो बहुत अच्छे आदमी हैं।
मैंने कब मना किया? कि वे बुरे आदमी हैं।
तब क्या बात है ? जो तुम अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती हो।
वहां जाकर मैं क्या करूंगी ? कहते हुए दमयंती रोने लगी। मां सोफे से उठकर उसके करीब आई और बोली -जब तक हमें तो कुछ बताएगी नहीं, तो हम कैसे समझेंगे ? क्या दहेज को लेकर उन लोगों ने कुछ कहा है ? हमारा तो जो कुछ भी है, तेरा ही तो है। क्या 'दामाद जी' ने कुछ कहा है ?
वे सब क्यों कुछ कहेंगे ? सारी गलती तो मेरी है।
दो दिन में,ऐसी क्या गलती हो गई, अभी वहां गए हुए तुझे 2 दिन ही तो हुए हैं। यह सब पापा की गलती है , पापा ने ही मेरे मन में गलतफहमी पैदा कर दी।
अब तेरे पापा ने क्या किया ? उनसे क्या गलती हो गई ?
उन्होंने यह क्यों नहीं बताया, कि' ठाकुर साहब' के चार बेटे हैं।
यह बात तो उन्होंने हमें पहले ही बता दी थी , हमें क्या मालूम, तू किस गलतफहमी की बात कर रही है ?
गलती किसी की भी नहीं है, ''मेरी किस्मत की गलती है, मेरी अकल की गलती है,'' दमयंती रोते -रोते लगभग चिल्लाने लगी, और चिल्लाते- चिल्लाते ही, सारी बात अपनी मम्मी से कह सुनाई ।
वह माथा पकड़ कर बैठ गई, और बोली -इसमें 'ठाकुर साहब' की कोई गलती नहीं है उन्होंने तो हमें पहले ही बता दिया था उनके बड़े बेटे से ही तुम्हारा विवाह हुआ है, तुम्हें उसका फोटो दिखाया तो था।
दिखाया था, किंतु उसमें उनके सारे बेटे साथ में थे।
तब तो गलतफहमी की कोई गुंजाइश ही नहीं रही।
मैंने तो ज्वाला को ही देखा था और फोटो में भी उसे ही पसंद किया था , मैं उस इंसान को अपना पति नहीं मानती।
तेरे मानने या न मानने से क्या होता है ? समाज और दुनिया के सामने उसी से तेरा विवाह हुआ है, अब वही तेरा पति है।
ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं तो 'ज्वाला' को पसंद करती हूं।
यह कोई गुड्डे- गुड़िया का खेल नहीं है, कि मुझे मेरी पसंद का ही खिलौना चाहिए। दूल्हे दुकान पर नहीं मिलते हैं ,ये रिश्ते एक बार बन जाते हैं, तो जीवन भर उन्हें साथ निभाना पड़ता है। मैं तेरे पापा से बात करूंगी।
पापा से कहने से ही क्या हो जाएगा? जब आप ही मेरी बात को न हीं मान रही हैं और न ही समझना चाहती हैं।
तेरी बात मानने का प्रश्न ही नहीं उठता, अब जो हो गया सो हो गया, निभाना तो होगा , क्या तुझे पूरा यकीन है ? कि ज्वाला भी तुझे पसंद करता है या तुझसे प्यार करता है।
शकुंतला देवी के इस प्रश्न पर दमयंती शांत हो गई अभी तक वह ज्वाला के मन की बात को भी तो नहीं जानती थी।अब तुम चुप क्यों हो ?विवाह तो उसी घर में हुआ है फिर चाहे छोटे भाई से या बड़े से..... शकुंतला देवी के शब्द ,दमयंती के ह्रदय को चीर गए। माँ होकर ऐसा बोल रहीं हैं ,उसने गुस्से से उन्हें देखा और अपने कमरे में चली गयी।
वैसे दमयंती को उम्मीद तो नहीं थी, कि उसके घर वाले उसके साथ होंगे, मां के जवाब को सुनकर, पूरी तरह से हताश हो गई , अब उसने मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया था वह ज्वाला से बात करके ही रहेगी। चलिए !आगे बढ़ते हैं और जानते हैं ज्वाला के मन में क्या है ?