दमयंती की सहेली, शिवानी को लगता है ,कि दमयंती कुछ परेशान है किन्तु अभी उसे अपने घर जाना था। शायद दमयंती भी, उस समय बात करने में अपने को तैयार नहीं कर पा रही थी इसीलिए उसने शिवानी को जाने दिया। वह यही सोच-सोचकर परेशान हो रही थी। उसके मन में ,प्रश्न उभर रहे थे ,क्या ज्वाला को इस बात का पता था। जब ज्वाला को ये सब पता चला तो..... वह चुपचाप बाहर क्यों चला गया ? आखिर उसके दिमाग़ में क्या चल रहा होगा ?शाम को जब शिवानी, दमयंती के पास आती है। तब दमयंती उससे बहुत कुछ कहना चाहती है -तब दमयंती शिवानी से कहती है -मेरा विवाह उसी जगह हुआ है किन्तु सही नहीं हुआ।
मतलब !
मतलब ,जिसकी मुझे चाहत थी ,जिसके सपने देखती थी ,वो, वो नहीं है।
वो ,वो नहीं है ,मुझे सब स्पष्ट रूप से बता !इतनी देर से पहेलियाँ बुझाये जा रही है।
वही तो बता रही हूँ ,जिससे मेरा विवाह हुआ, वह'' ज्वाला सिंह ''नहीं है।
शिवानी ने उसके शब्दों को दोहराया-ज्वाला नहीं है, तो फिर कौन है ?
वह उसका बड़ा भाई 'जगत सिंह' है।
यह तू क्या कह रही है ? ऐसा कैसे हो सकता है ? तूने तो उसे देखा था और उसने भी तुझे देखा था। तब यह गलती कैसे हुई ?
मुझे पापा ने बताया था-कि वह लड़का'' राय बहादुर होटल'' के मालिक का बेटा है किंतु यह नहीं बताया था-कि वह उनका बड़ा बेटा है मुझे भी पता नहीं चला और न ही मैंने, जानने का प्रयास किया।
इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई ?
गलतफहमी, ज्वाला मुझे एक दिन, मॉल में मिला था और उसने मेरी पसंद की हीरे की अंगूठी ली थी उस समय मैं ,ये नहीं जानती थी कि वह अंगूठी मेरे लिए ले रहा है किंतु जब सगाई में मेरे लिए अंगूठी आई तो मै उसे देखते ही पहचान गई कि यह ज्वाला के यहां से आई है , मैं मन ही मन प्रसन्न हो रही थी, कि उसने यह अंगूठी मेरे लिए ही ली थी।
क्या तुमने एक दूसरे को अंगूठी नहीं पहनाई ?
उसकी मम्मी मुझे देखने आई थीं , और तभी उन्होंने मुझे यह अंगूठी पहनाई थी तब मुझे लगा था कि यह ज्वाला ने ही भेजी है मुझे क्या मालूम था ? कि यह ज्वाला के बड़े भाई की तरफ से आई है।
तूने यह कैसे जान लिया ? कि ज्वाला तुझे पसंद करता है,हो सकता है ,अपने भाई से विवाह के लिए ही तुझ पर नजर रख रहा हो।
हम पहली बार, होटल में ही, एक केक के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से मिले थे, उस समय हम मिले नहीं थे यह तो तू भी जानती है किंतु मन ही मन मेरी इच्छा उस व्यक्ति को जानने की हो रही थी कि आखिर वह कौन व्यक्ति है ?जिसने मुझे यह केक मेरे जन्मदिन पर भेजा है।
मॉल में ,एक दिन अचानक ही उससे मुलाकात हो गई, उसे देखकर मुझे लग रहा था कि काश ! यह मेरे सपनों का राजकुमार होता , उसने मेरा नाम जानना चाहा किंतु मैंने उसे अपना नाम नहीं बताया। हां उसका नाम अवश्य पूछ लिया और उसने स्पष्ट बताया- कि तुम्हारा भेजा केक मैंने खाया है ? मुझे उसे देखकर तुरंत ही लग गया कि हाँ ,यही मेरे सपनों का राजकुमार है, मेरा विवाह इससे होना चाहिए। अब तो मेरी नज़रें उसकी तलाश में रहती, अक्सर वह अपने होटल की खिड़की से मुझे आते -जाते देखता , मुझे काम भी नहीं होता तब भी मैं, किसी न किसी बहाने से घर से निकल जाती ताकि मैं उसे देख सकूं। यह सिलसिला अभी चल ही रहा था तभी, पापा ने आकर बताया -''राय बहादुर होटल'' के मालिक के बेटे का रिश्ता आया है वह उनके अच्छे दोस्त भी हैं। मैं समझ गई, कि यह रिश्ता ज्वाला ने ही भेजा है। शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। हमने एक दूसरे को देखा हुआ था मैंने तुरंत ही हां कर दी।अब तू ही बता !क्या एक लड़की उन नजरों को नहीं पहचान पायेगी जो मेरी एक झलक के लिए तड़पती थीं।
जब रिश्ते की बात होती है, तब लड़की का फोटो भिजवाया जाता है और लड़के का भी फोटो आता है क्या तूने उस समय लड़के का फोटो नहीं देखा था ?
वैसे तो मैंने जरूरत ही महसूस नहीं की थी, किंतु एक बार वह फोटो देखा भी था उसमें तीन-चार लोग बैठे हुए थे उसमें मैंने ज्वाला को पहचान लिया था बाकी को मैं नहीं जानती थी। उसके पश्चात जब उसकी मम्मी गोद भराई के रस्म में, वही हीरो का हार और अंगूठी लेकर आई तब मुझे पूर्णतः विश्वास हो गया कि मेरा विवाह ज्वाला से ही हो रहा है। किंतु न जाने कहां किस्मत धोखा खा गई ? मेरे विश्वास को गहरी ठेस लगी। रात्रि में उसकी प्रतीक्षा में थी किंतु वह नहीं आया और जब आया मैं नींद में थी। सुबह उठकर देखा, वहां पर ज्वाला के स्थान पर कोई और था।
यह सब कैसे हुआ ?
यही तो मैं नहीं जानती, उन लोगों का कहना है -कि मेरा विवाह 'जगत सिंह' से ही हुआ है मैं तो यह भी नहीं जानती थी कि ज्वाला के और भी तीन बड़े भाई हैं। मैं उसे होटल के मालिक का, अकेला लड़का समझ रही थी।
यह तो बहुत ही गलत हुआ , अब तू क्या करेगी ? क्या तुझे ज्वाला ने देखा है ?
हां, मुंह दिखाई की रस्म में मैंने ज्वाला को देखा था, मुझे देखकर वह भी आश्चर्यचकित रह गया और बोला -तुम ! यह कहकर घर से बाहर निकल गया। मैं समझ नहीं पाई, कि मेरे साथ क्या हो रहा है ?अब मैं अपनी ससुराल कभी वापस नहीं जाऊंगी।
यह इस बात का हल नहीं है, तुम्हें एक बार ज्वाला से मिलकर पूछना तो चाहिए , कि विवाह उसके साथ, हुआ था तो फिर जगत कैसे इस कहानी में आ गया ?
वही मैं भी सोच रही थी, किंतु अभी मम्मी- पापा से क्या कहूँगी ? जब उन्हें पता चलेगा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? कुछ भी समझ नहीं आ रहा।
यह सब बातें तो तुझे खुलकर करनी ही होगीं। माना कि एक गलती हो गई है किंतु क्या उस गलती का बोझ तमाम् उम्र उठाती रहेगी ? तुरंत ही तुम्हें, आपस में बात करके कुछ निर्णय लेना होगा।
मेरे मन में एक डर भी समाया हुआ है , सोचते हुए दमयंती बोली।
कैसा डर !
आते-जाते ज्वाला मुझे देखता था, हम मिले भी हमने बातें भी कीं किंतु उसने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया ,कहीं ऐसा न हो ! वह प्यार से ही इनकार कर दे ! तब क्या होगा ? हम दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते थे उन्हीं दिनों में वह रिश्ता आ गया और यह गलतफहमी हो गई। मुझे लगा ,ज्वाला ने ही यह रिश्ता भेजा है।
मैं तेरी बात समझ सकती हूं, किंतु रोने से इस तरह काम नहीं चलेगा। तुझे बात तो करनी ही होगी तभी आगे कुछ निर्णय हो पाएगा। अच्छा चल, अब बता ! तूने सुबह से कुछ खाया है या नहीं।
मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है।
किंतु मुझे तो भूख लगी है मुझे तो कुछ खिला दे ! जानबूझकर शिवानी ने कहा।