Mysterious nights [ part 16]

 वंदना को आश्चर्य होता है और ज्वाला से पूछती है -तुम कैसे लोग हो ? जो लड़की तुम्हारे घर विवाह करके आ रही है तुमने उसकी एक तस्वीर तक नहीं देखी और न ही यह जानने का प्रयत्न किया कि वह कैसी है ?

मुस्कुराते हुए ज्वाला बोला -यह तो 'जगत भाई' को सोचना चाहिए था। भाई के लिए लड़की मैं, क्यों देखूँगा ? यह जिज्ञासा तो उन्हें होनी चाहिए थी। अब भी उन्होंने भाभी का मुँह देखा है या नहीं।

 हंसी -मजाक में वंदना तो भूल ही गई थी, कि दमयंती उन लोगों से नाराज है और वह अपने घर जाने की जिद कर रही है अब उसे यहां नहीं रहना है। एक मन हुआ  कि वह ज्वाला को कल जो भी बातें हुईं वे सारी बात बताएं किंतु सोचा -अभी मन अच्छा है, जब भी जानकारी होनी होगी तो अपने आप ही हो जाएगी या अन्य लोगों से पता चल जाएगा अभी तो, इस रस्म का लाभ उठाते हैं। तब वह दमयंती से बोली -भाभी !बताइए !मुंह दिखाई में क्या लेंगीं ?


 दमयंती की तरफ से कोई आवाज नहीं आई , न ही दमयंती में कोई इशारा किया। तभी वंदना, ज्वाला से बोली -कम से कम अपने लिए तो बहु ढूंढकर लेना, उससे पहले मिल लेना और उसे देख भी लेना वरना भाई की तरह न हो जाए कि  लड़की अपने पति को पहचानने से ही इनकार कर दे हालांकि वह कहना नहीं चाहती थी, लेकिन फिर भी मुंह से निकल गया। 

तुम क्या कह रही हो ? क्या भाभी ने भैया को नहीं पहचाना ?

पता नहीं, इन लोगों की आपस की बातें हैं, मुझे भी कुछ बात समझ में नहीं आई एक तरफ भाभी कहती है कि यह मेरे पति नहीं है। दूसरी तरफ परिवार वाले कहते हैं -कितने लोगों के सामने विवाह करके लाए हैं, उठाकर तो नहीं लाए हैं, फिर यह तुम्हारा पति कैसे नहीं है ? कल से यही झगड़ा चल रहा है। 

वंदना की बात सुनकर, ज्वाला गंभीर हो गया और बोला -और यह बात, मुझे किसी ने बताई भी नहीं , ऐसा क्या हो गया है ? क्या इन्होंने भैया को पहले नहीं देखा था या उनकी तस्वीर नहीं देखी थी। 

वही तो....... तुम लोगों की बात पर मुझे आश्चर्य होता है , तुम लोगों ने लड़की की तस्वीर नहीं देखी तुम्हें कैसे मालूम हो सकता है किसी ने लड़की बदल दी हो तो..... और इतना ही नहीं ,इन्होंने भी लड़के  को देखने का प्रयास नहीं किया और रिश्ते के लिए हामी भर दी। ऐसे में तो गलतफहमी होना स्वाभाविक है। दो मित्र हैं, जो अपने बच्चों का रिश्ता तय करते हैं किंतु उनके बच्चे एक दूसरे को जानते भी नहीं,उन्होंने आपस में एक -दूसरे को देखा तक नहीं ,इधर पिता के कहने पर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं। दूसरी तरफ ये कहतीं हैं -ये मेरा पति नहीं ,ये कैसा संयोग है इन्होने भी उस लड़के नहीं देखा और न ही उसकी तस्वीर देखी थी।  

ऐसा कैसे हो सकता है ?हमने तो भाई की तस्वीर भेजी थी ,तब ये कैसे कह रहीं हैं ?कि वे इनके पति नहीं क्या भाभी को,भैया पसंद नहीं आए हैं। 

पसंद -नापसंद का तो प्रश्न ही नहीं उठता, भाभी का कहना है -यह उनके पति ही नहीं हैं।

यह ऐसा क्यों कह रही हैं  ? तब ज्वाला को एहसास हुआ कि भैया क्यों परेशान थे कल होटल में ही ठहर गए थे। 

अब यह तो वही जाने। 

तभी ज्वाला ने अपनी जेब से एक लिफाफा निकाला, और दमयंती के आगे करते हुए बोला -मैं भी अपनी भाभी का मुँह देखना चाहूंगा और उनसे बातें करना चाहता हूँ । 

चलो भाभी ! अब आप अपना घूंघट खोल ही दो! ये तो तब भी आपसे रिश्ते में छोटे हैं। 

दमयंती की धड़कनें बढ़ गई थीं, वह समझ नहीं पा रही थी, क्या करें ? दोनों के बार-बार कहने पर उसने अपना घूंघट नहीं हटाया , तब वंदना ने आगे बढ़कर दमयंती का घूंघट हटा ही दिया ,उसके हटते ही , ज्वाला ,अपलक  उसे देखता रहा और एकाएक बोल उठा- तुम !उसके पांव थरथराने लगे। 

है न......  भाभी सुंदर ! आगे आते हुए वंदना ने पूछा। 

हां, बहुत सुंदर है, उसने दमयंती की तरफ देखा उसकी आँखों में आंसू थे। अब भी वह ठीक से समझ नहीं पाया ,ये लड़की यहाँ कैसे ?वंदना से कुछ भी कहे बगैर वह कमरे से बाहर आ गया। उसकी दुनिया लुट चुकी थी वो भी अपनों के ही हाथों ,इसमें किसका दोष है ? उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था,उसकी नसें सुन्न पड़ चुकी थीं। अब वह क्या करे ?आसपास की दुनिया से उसका कोई मतलब नहीं ,रास्ते में आगे बढ़ता  जा रहा था ,वह कहाँ जा रहा था ?वह स्वयं भी नहीं जानता। 

भाई कहाँ जा रहे हो ?वंदना उसके पीछे दौड़ी ,अच्छा -ख़ासा हंसी -मज़ाक चल रहा था ,उयसने दमयंती की तरफ देखा उसकी आँखों में भी आंसू थे। ये तो कल से ही घर में कोहराम मचाये है इसीलिए वंदना ने उससे कुछ भी नहीं पूछा और बाहर आ गयी। पता नहीं भाई को क्या हुआ ?अचानक न जाने कहाँ चले गए ?ऐसा उस नई बहु के चेहरे में क्या है ?जो भी देखता है ,वही अपनापा भूल जाता है। मुझे लगता है ,ये भाभी ही इस घर के मर्दों के लिए शुभ नहीं है। अभी जाकर मौसी से बताती हूँ। 

मौसी ! मौसी ! अरे कहां हो ? क्या कर रही हो ?

तू, इस तरह क्यों चिल्ला रही है, क्या तू देख नहीं रही है ?मैं काम में व्यस्त हूं ,मेहमान जाने वाले हैं, बहू भी जाएगी ,वही तैयारी कर रही हूं। 

आप तो बस इन्हीं कामों में लगे रहना ! आपको कुछ पता भी है कि क्या हुआ है ?

कहां, क्या हुआ है ? जब यह लोग चले जाएंगे तब आराम से बैठकर, बातें करूंगी। 

बातें तो बाद में करेंगे, पहले यह सोचो ! क्या , बहु वापस आएगी ,जिस तरह से कल से कोहराम मचाया हुआ है , क्या वह वापस आएगी ?

क्यों नहीं आएगी, वह इस घर की बहू है, 'श्याम लाल जी' उसे समझा कर भेजेंगे, उसे कोई गलतफहमी हो गई होगी उसके पिता सब ठीक कर देंगे, वो विश्वास से बोली। तू बता ! तू क्यों परेशान है? काम  में  हाथ तो बटाती नहीं है , इधर-उधर बातें बनाती घूम रही है , जब तेरा विवाह होगा तब तुझे पता चलेगा कि  गृहस्थी क्या होती है ?

यह सब क्या हो गया ? जिंदगी न जाने, अपने क्या रंग दिखाने वाली है ? जिससे प्यार हुआ, उसके पास रहते भी हुए भी वो दूर चला गया। जिंदगी को जितना आसान समझते हैं ,उतनी आसान नहीं है। हर दिन, हर पल कोई न कोई पहेली छोड़ जाती है। दमयंती और ज्वाला के जीवन में भी, एक नई विषम परिस्थिति पैदा कर दी है अब वह इस स्थिति से कैसे निकालेंगे ? आइये ! आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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