घर में कुछ मेहमान आए हैं, उनके आने पर, सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए हैं। उनके लिए भोजन बन रहा है, तब दमयंती से तैयार होने के लिए कहा जाता है-तुम्हारे घरवाले आ गए ,तैयार हो जाओ !
क्या पापा आ गए ,उत्सुकता से दमयंती ने पूछा।
नहीं ,
तब वह पूछती है- मुझे तैयार क्यों होना है ? क्योंकि विवाह की यह भी एक रस्म है। विवाह के पश्चात ,लड़की के मायके वाले, उसे लेने आते हैं।
वही तो मैं भी पूछ रही थी ,क्या मेरे पापा आ गए ? उसने आश्चर्य से पूछा।
नहीं, तुम्हारे पापा तो नहीं आए हैं किंतु रिश्ते में जो तुम्हारे भाई लगते हैं ,वे तुम्हें लेने आए हैं। दमयंती का चेहरा उदास हो गया, उसे लग रहा था जैसे- मेरे मां-बाप को भी मेरी चिंता नहीं है। उसे अपने घर वालों पर भी क्रोध आया किंतु साथ ही साथ यह खुशी भी हुई कि अब वह जा तो रही है किंतु अब यहाँ वापस कभी नहीं आएगी। उसने क्या ख्वाब देखे थे ?उसके सपनों का राजकुमार और वो उस होटल के मालिक की बीवी बनकर रहेंगी , उसे क्या मालूम था ? विवाह करके वो ऐसे ठेठ देहात में आ जायेगी ,ऊपर से ये घूंघट ! अभी तक इसी घर में यहाँ -वहां घूम रही हूँ। ऊपर से वो औरत ,जो सास के रूप में मेरे आगे -पीछे घूम रही है।
रात्रि में दमयंती ने घर से बाहर जाने का प्रयास किया भी था किन्तु क़दम -क़दम पर यहाँ आदमी तैनात हैं ,इससे पहले कि किसी को शक हो और शोर मच जाये ,उससे पहले ही वह वापस आ गई। मुँह दिखाई की रस्म के पश्चात, जब उसके पापा नहीं आये थे ,तब वो घबरा गयी और सुनयना जी से बोली -आपने तो कहा था ,रस्में पूरी होते ही,मेरे पापा आ जायेंगे।
अब वे नहीं आये तो हम क्या कर सकते हैं ? हो सकता है ,कहीं व्यस्त हों।
आप मुझसे झूठ बोल रहीं हैं।
हम झूठ नहीं बोलते ,हमने फोन तो करवा दिया था ,अब उन्हें जबरदस्ती उठाकर तो नहीं बुलवा सकते। कठोर शब्दों में सुनयना जी ने उसे घूरते हुए जबाब दिया।
दूसरी रात्रि को ,सोचकर ही दमयंती घबरा गयी उसने मन ही मन सोच लिया अब उस आदमी को अपने क़रीब आने नहीं दूंगी। रात्रि के भोजन के पश्चात उसने अपने कमरे की कुण्डी लगाई और सो गयी,अर्धरात्रि को चुपचाप उठी और बाहर जाने लगी तभी ,किसी की आवाज आई -कौन है ?
दमयंती वहीं ठहर गयी और दीवार के सहारे खड़ी हो गयी ,थोड़ा आगे ही बढ़ी थी ,उसे कोई परछाई दिखलाई दी। घर भी न जाने कितना बड़ा है ? अँधेरे में पता भी तो नहीं चल रहा ,मुझे कहाँ जाना है ? घबराकर वापस अपने कमरे में ही आ गयी।
सारा दिन जगत भी दिखलाई नहीं दिया था ,वो रात्रि में होटल में ही था। उसे दमयंती का वो व्यवहार बार -बार कचोट रहा था ,उसे क्रोध आ रहा था ,ऐसा मैंने उसके साथ क्या किया ?जो उसने पूरे घर के सामने मेरी बेइज्जती की ,अपनी पत्नी को ही तो हाथ लगाया था। वो तो ऐसे व्यवहार कर रही थी , जैसे किसी और की बीवी उठा लाया हूँ ,रात्रि में तो बड़ी लिपट रही थी ,तो क्या उसने मुझे कोई और समझा था ?जगत के मन में भी ,सवाल उठ रहे थे ,वो भी उनका जबाब चाहता था। भाई को लगातार शराब पीते देखकर , तब ज्वाला ने पूछा -भइया !आज घर नहीं जाना है।
नहीं ,
क्यों क्या हुआ ?वहाँ भाभी आपकी प्रतीक्षा कर रहीं होंगी।
व्यंग्य से मुस्कुराया और बोला -कैसी प्रतीक्षा ?तू तो यहाँ था ,उसने मेरा अपमान किया है।
ये आप क्या कह रहें हैं ?
क्रोधित होते हुए बोला -तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ?
वे भला आपका अपमान क्यों करेंगी ?
मुझे कहती है -उन शब्दों को सोचकर, उसके मन में कड़वाहट भर गयी ,दो घूंट मुँह में और भरे। तू जा !सो जा !
आज किसी को मत बुलाना ! आप घर चले जाओ !
ज्वाला की बात सुन वो और शराब गिलास में उड़ेलने लगा ,उससे तो वही अच्छी हैं ,जो पैसा लेती हैं ,अपमान नहीं करतीं।ज्वाला समझ गया था,आज घर में तो कुछ हुआ है ,तभी पापा ने कहा था -श्यामलाल जी को लेकर आना। उन्होंने कल के लिए कहा है ,अब कल ही जाऊंगा ,तभी कुछ पता चलेगा।
जब मेहमानों ने भोजन कर लिया, तब वह उससे मिलने आए उसकी मौसी और बुआ के बच्चे थे जिनकी वह दीदी लगती थी, उन्हें देखकर, बोली -पापा नहीं आए।
नहीं, वह तो नहीं आए अब जाकर उनसे घर पर ही मिल लेना, अपना सामान बांध लो ! कल चलेंगे।
नहीं, मुझे आज ही जाना है अब मैं यहां एक पल भी नहीं रहूंगी।
क्यों, क्या कुछ हुआ है शंका से विनय ने पूछा।
संभलते हुए, दमयंती बोली -नहीं, मुझे अपने घर जाने की शीघ्रता है, इसीलिए कह रही हूं।
अच्छा, यह बताओ ! यह लोग कैसे हैं ? उसने करीब आकर रहस्यमय तरीके से पूछा, वह समझ नहीं पाई यह बात वह क्यों पूछ रहा है ? क्या मुझे इनके विषय में इसे बताना चाहिए या नहीं ? हो सकता है ,ये कोई बखेड़ा खड़ा कर दें। अब तो अपने घर जाकर ही पूछूँगी, मेरे साथ ये क्या हुआ ? दमयंती इस बात से प्रसन्न थी, कि अब वह अपने घर जाएगी, अब एक रात और यहां रुकना नहीं चाहती थी। गांव की बंदिशों में बंधन में नहीं रहना चाहती थी। वह पहले से ही जानती थी ,ज्वाला का परिवार गांव में रहता है किन्तु 'ज्वाला' होता तो उसके लिए सब करती किन्तु ये कोई और है।
कहां वह शहर में रहकर पढ़ने वाली लड़की, एक धोखे के चक्कर में यहां आ गई। अब और धोखा नहीं , जगत को सोचकर, मन ही मन सोच रही थी -उसने जो कुछ भी मेरे साथ किया, मैं उसे कभी भूलूंगी नहीं।अँधेरे का लाभ उठा ,मेरे कमरे में मेरे करीब आ गया। वह खिड़की में बैठी बाहर की तरफ देख रही थी, उस खिड़की में भी पर्दा लगा हुआ था किंतु वह बाहर के सभी दृश्य देख सकती थी। तभी उसे एक जानी पहचानी सी परछाई दिखलाई दी। उसके हृदय की धड़कन तीव्र हो गईं , मन ही मन सोचा -यह तो यहीं है , जी चाहा दौड़कर, उससे लिपट जाये और उससे पूछे -अब तक वह कहां था ? किंतु एक बार देखने के पश्चात वह फिर से दिखलाई नहीं दिया।
क्या यह मेरा भ्रम है ? बेचैनी से उठ खड़ी हुई और साड़ी के पल्लू को हाथ में बार-बार लपेटते हुए सोचने लगी -उसके विषय में किससे पूछा जाए ? जिसके लिए मैं इतनी परेशान थी वह तो यही हैं किंतु मेरे पास नहीं है।
