Mysterious nights [part 12]

दमयंती मन ही मन सोच रही थी -आखिर यह गलती कैसे हुई ? पहली बार मैंने जब  उस अंगूठी और उस हार को देखा तो समझ गई थी, यह ज्वाला ने मेरे लिए ही खरीदा है,इसीलिए मुझसे ही मेरी पसंद पूछी जा रही थी।वह मुझसे अपने दिल की बात छुपाना चाहता था ,तो मैं भी अनजान बनी रही।  तब मुझसे  इतनी बड़ी गलतफ़हमी कैसे हो सकती है ? इन सब बातों से लगता था कि ज्वाला को भी मैं पसंद थी और वो मुझे जानता था इसलिए मुझसे मिलने का प्रयास कर रहा था। हो भी क्यों न, उसके पापा और मेरे पापा मित्र जो रहे हैं। उसके पश्चात तो मैं निश्चिंत ही हो गई थी, मुझे किसी और बात की कोई परवाह ही नहीं थी।


 जब हम खरीदारी करने गए थे तब भी मैंने, वहां पर पहले से ही,ज्वाला को देखा था हालांकि वह मुझे नहीं देख पाया था क्योंकि अब मुझे उसके साथ लुका- छुपी खेलने में मजा आ रहा था, मैं खुश थी, मैं उसे अचानक उसके सामने आकर अचंभित कर देना चाहती थी। उसके चेहरे की वह खुशी उसके वह भाव में अपने इन्हीं नेत्रों से देखना चाहती थी किंतु मुझे क्या मालूम था ?मेरी ये लुका -छुपी मुझे ही भारी पड़ जाएगी। किन्तु मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ ही नहीं , और न जाने यह कौन ! मेरी जिंदगी में मेरा पति बनकर आ गया ?

 सोच कर वह फिर से रोने लगी, तभी उसे दरवाजे पर कुछ आहट सी सुनाई दी उसने दरवाजे की तरफ देखा सुनयना जी अंदर आईं और बोलीं - तुम ठीक हो !

मैं ठीक कैसे रह सकती हूं, जब मेरी जिंदगी में बहुत कुछ उथल-पुथल हो गई है। 

वही तो हम लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं, आखिर ऐसा क्या हुआ है ? क्या तुम्हारे पापा ने तुम्हारा विवाह जबरदस्ती किया है ?

 नहीं ,उन्होंने मुझसे पूछा था। 

फिर बात क्या है ? जो तुम उसे अपना पति क्यों नहीं मान रही हो ? 

मैं उस इंसान को अपना पति मान ही नहीं सकती , जब वह मेरा पति है ही नहीं। मुझे मेरे घर जाना है, मुझे अपने पापा से मिलना है अब मैं यहां और नहीं रहूंगी। 

देखो !अब तुम्हारा विवाह हो गया है, एक दो इंसान के सामने नहीं, बारह सौ  लोगों के मध्य तुम्हारा विवाह हुआ है। इसको झूठलाया नहीं जा सकता लेकिन तुम्हारे साथ क्या धोखा हुआ है ? उसे हम भी जानना चाहते हैं , इसलिए हमने तुम्हारे पापा को यहीं पर बुलवाया है। जब वह आ जाएंगे तो उनसे मिलकर कुछ बातें होंगी। तब तक तुम्हें हमारा सहयोग करना होगा ,सुनयना जी गंभीरता से बोलीं। 

कैसा सहयोग ? मैं कुछ समझी नहीं। 

इसमें समझने वाली बात ही कुछ नहीं है, अब तुम्हारी'' मुंह दिखाई'' के रस्म होगी। देवता पूजन के लिए भी तुम्हें जाना होगा अब हम तुमसे यही प्रार्थना करते हैं जब तक तुम्हारे पापा नहीं आ जाते हैं तब तक तुम किसी भी बात का कोई मुद्दा नहीं बनाओगी बाहर के लोग आने वाले हैं। उनके सामने चुपचाप  रहकर यह रस्म निभाओगी। 

मैं कोई भी रस्म नहीं निभाऊंगी, जब यह विवाह ही झूठा है। 

विवाह झूठा नहीं है, न ही, यह धोखा है, इतने लोगों के सामने तुम्हारा विवाह हुआ है, हम लोग भी वही हैं और दूल्हा भी वही है फिर कैसा धोखा ! लगभग उसे डांटते  हुए बोलीं -यदि तुम, इस परिवार की और अपने परिवार की इज्जत को बचाए रखना चाहती हो तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा ही करना होगा। 

कोई जबरदस्ती है, मैं नहीं करूंगी। 

जबरदस्ती तो हमने विवाह के समय भी नहीं की थी, अब तो जबरदस्ती का प्रश्न ही नहीं उठता किंतु यह बात अब 'आन' पर आ गई है इसलिए  ये रस्में तो तुम्हें निभानी ही होगीं ,अब तुम चुपचाप तैयार हो जाओ ! हो सकता है, ये रस्में होते-होते तुम्हारे पापा भी आ जाएं। अब उनके सामने ही बातें होंगीं। समझाते हुए वो बोलीं  -तुम क्या चाहती हो ? आराम से, तुम्हारी बात को सुना जाए, समझा जाए और उसका हल भी निकल जाए या फिर जोर जबरदस्ती की जाए इस चीज से कोई लाभ भी नहीं है। यह तुम सोच लो ! जब तक तुम्हारे पापा नहीं आ जाते हैं तुम तैयार  होकर, चुपचाप सभी रस्में निभाओगी। चेतावनी देते हुए वे बोलीं -भगवान एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल भी देता है। यदि तुम ठाकुर साहब की इज्जत से खेलना चाहोगी, तो तुम्हें यह सुनयना तुम्हारे साथ दिखाई नहीं देगी इसीलिए जो भी करना, बहुत समझदारी के साथ करना।

 मैं भी इसकी इस घर की बहू रह चुकी हूं, इन्हें तुम्हें 'पागल' साबित करने में तनिक भी समय नहीं लगेगा। हो सकता है, तुम्हारे पापा के मिलने से पहले ही, तुम्हें 'पागल खाने 'भेज दें  सुनयना जी दमयंती को डराना चाहती थीं ताकि सम्पूर्ण रस्में सहजता से हो जाएँ । इस बात का असर उस पर हुआ भी,अब दमयंती थोड़ा शांत हो गयी।  तब वे  बोलीं  -अच्छे से तैयार हो जाओ ! गांव की महिलाएं आने वाली हैं, उससे पहले' देव पूजन' होगा कोई सहायता की आवश्यकता हो तो तुम अपनी ननद वंदना से कह सकती हो , कहकर वे  बाहर आ गईं। 

दमयंती, उन्हें जाते हुए देख रही थी, उनके जाने के पश्चात उसकी नजर बिस्तर पर पड़े कपड़ों पर पड़ी। जरी की भारी साड़ी और गहने उसके बिस्तर पर पड़े हुए थे , वह रोते हुए उन्हें देखने लगी। वह उन गहनों में और साड़ी में ज्वाला को ढूंढ रही थी यदि यह ज्वाला के दिए नहीं है, तो फिर यह कौन है ? ज्वाला सिंह कहां गया ? वह कौन था? क्या वह उस होटल  के मालिक का बेटा नहीं था। अनेक प्रश्न दमयंती के मन में उमड़ रहे थे। विवाह पर मंडप में भी वह अपने दूल्हे का चेहरा नहीं देख पाई यदि देख पाती तो उसी समय, इस विवाह से इनकार कर देती किंतु इतना भारी सेहरा लगा हुआ था उसमें किसी को क्या पता चलता है, कि इस चेहरे के अंदर कौन छुपा है ?

 क्या यह बात ज्वाला भी नहीं जानता, वह कहां है ? सोचते हुए रोते हुए वह तैयार हो रही थी। 

सुनयना घर की बड़ी और जिम्मेदार महिला हैं ,वे बहुत प्रसन्न थीं कि अच्छे परिवार से पढ़ी -लिखी लड़की का उनके बेटे के लिए रिश्ता आया है उन्होंने अपने बेटे जगत की तस्वीर भी भेजी थी किन्तु न जाने, इस लड़की को क्या हुआ है ?ऐसे समय में उन्हें अपने घर की मान -मर्यादा को भी बनाये रखने के लिए ,दमयंती की जिद को देखते हुए ,कुछ कठोर शब्द भी दमयंती से कहने पड़ते हैं ताकि  उनके घर की मान -मर्यादा बनी रहे। एक जिम्मेदर व्यक्ति को कैसे और किन परिस्थितियों में कौन से कदम उठाने हैं ?यह उसके  निर्णय और कार्यकुशलता से पता चलता है कि वह किस तरह से अपने उत्तरदायित्वों के प्रति समर्पित है।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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