Mysterious nights [part 11]

 दमयंती के जीवन में न जाने क्या लिखा है? जिसके सपने देखे, जिसको चाहा, वह समीप था किंतु उसका न हो सका। दमयंती के जीवन का यह ''काला पन्ना' वह शायद जीवन भर नहीं भूल पाएगी उसने कभी भी सोचा नहीं था उसके साथ ऐसा धोखा हो जाएगा।

दमयंती जब प्रातः काल उठी और उसने अपने पति का चेहरा देखा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ, उसे लगा- कि उसके कमरे में कोई अन्य इंसान घुस आया है। वह रात्रि में भी उसे नहीं देख पाई थी इस बात को सोचकर ही उसकी रूह कांप उठी। आखिर यह इंसान कौन है ? जो उसे अपनी पत्नी कह रहा है। उसकी चीख़ सुनकर 'जगत सिंह' उठ गया था। अपनी पत्नी को इस तरह बेतहाशा चिल्लाते हुए देखकर उसे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था  कि आखिर यह चाहती क्या है ? क्यों इस तरह चिल्ला रही है ? उसने उसे बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था और न ही वह समझना चाहती थी। 


उनके इस हालात के कारण, उनके कमरे के बाहर परिवार के लोग इकट्ठा हो रहे थे, स्वयं ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी को भी इस बात की भनक लग गई थी। स्वयं सुनयना जी, अपने घर के सभी कार्य छोड़कर, बहु -बेटे के कमरे के सामने आ खड़े हुए और बोले -अंदर क्या हो रहा है, हमें भी तो पता चलना चाहिए और जब उन्हें पता चला कि बहू तो' जगत' को ही नकार रही है वह उसे अपना पति ही नहीं मान रही है और कह रही है- कि मेरा विवाह इससे नहीं हुआ।

 'जगत' भी बहुत शर्मिंदा हुआ, और वहां से चला गया।

 जब यह बात अमर सिंह जी को पता चली, तब वह अंदर आए और उन्होंने पूछा  -यहां क्या हो रहा है ?

तब सुनयना जी उन्हें एक अलग स्थान पर लेकर गईं , और उन्होंने धीरे-धीरे उन्हें संपूर्ण बात समझाइ। उस बात को सुनकर एक बार को तो ''अमर सिंह जी'' का दिमाग ही चकरा गया फिर उन्हें लगा ,कहीं ऐसा तो नहीं, इस लड़की को कोई गलतफहमी हो गई है लेकिन गलतफहमी भी कैसे हो सकती है ? कुछ समझ नहीं आ रहा है , क्या इसके माता-पिता ने इसका कहीं और रिश्ता तो तय नहीं किया था ? यह सब कैसे हो गया ? हरिराम खेतों पर गया हुआ था और बलवंत अपने अखाड़े में था और ज्वाला सिंह शहर में अपने होटल पर था। तब उन्होंने ज्वाला सिंह को ही फोन लगाया और उन्होंने श्याम लाल जी को अपने साथ लेकर आने के लिए कहा। 

पापा ! क्या हुआ है ? आप कुछ परेशान लग रहे हैं। 

अभी कुछ नहीं कह सकता, बस तुम जाकर श्याम लाल को लेकर आ जाओ !

पर मैं उनसे क्या कहूंगा ? कल ही तो उनकी लड़की विदा होकर हमारे घर आई है और आज उनका बुलावा आया है। 

कह देना, उनकी बेटी उन्हें याद कर रही है, यह तो कोई जवाब नहीं हुआ। 

ज्वाला के सवाल -जवाब के कारण, ठाकुर साहब को क्रोध आ गया और क्रोधित होते हुए बोले -जितना कह रहा हूं, उतना करो ! ज्यादा सवाल -जवाब करने की आवश्यकता नहीं है। यह जो कोई भी उलझन है, उनके द्वारा ही सुलझाई जायेगी। 

तब ठाकुर साहब अपनी पत्नी सुनयना से बोले -मुझे तो लगता है, श्यामलाल को पता चल गया होगा कि मेरे बेटों के रिश्ते नहीं आ रहे हैं इसलिए उसने अपनी' पागल लड़की 'का विवाह हमारे बेटे के साथ कर दिया। उन्होंने यह बात कह तो दी थी किंतु मन ही मन सोच रहे थे -जब मैंने इस लड़की को देखा था तब तो यह कहीं से भी पागल नहीं लग रही थी फिर अचानक इसके साथ ऐसा क्या हुआ है ? जो यह इस तरह चिल्ला रही है। 

सुनयना  जी ने अपनी चिंता व्यक्त की और बोलीं -गांव, मोेहल्ले की महिलाएं, मुंह दिखाई की रस्म में आने वाली हैं , अब मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी ? सारे गांव में थू -थू हो जाएगी।सब हसेंगी , ठाकुर साहब ! की एक तो बहू आई है और वह भी पागल है, न जाने क्या अंट -संट बक रही है ?

  शांत मन से काम करो ! तुम रसोई घर से निकलकर बहू के कमरे में जाओ और उसे प्यार से समझाओ! और उससे जानने का प्रयास करो कि आखिर वह यह सब क्यों कर रही है ? 

किसी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,ठाकुर साहब वातावरण को सामान्य बनाने के लिए,बाहर आकर गांव के लोगों के साथ बैठ जाते हैं किंतु अपनी चेहरे की चिंता को नहीं छुपा पाते हैं।

 तेतर सिंह ने पूछा -ठाकुर साहब ! चिंतित लग रहे हैं, क्या कुछ हुआ है ?

जबरन ही मुस्कुराने का प्रयास करते हुए ठाकुर साहब बोले -अरे, कुछ नहीं, घर में एक चूहा था उसके लिए बच्चों ने शोर मचाया हुआ था। 

किंतु आपके चेहरे को देखकर तो नहीं लगता कि यह चिंता, चूहे के कारण है, उनमें से एक व्यक्ति बोला -यदि कोई परेशानी है, तो आप हमें बताइए। 

नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं है , आप लोगों के लिए अभी चाय आती ही होगी उसके बाद मुझे शहर जाना है।  हो सकता है, कुछ मेहमान भी आ जाएं , तो अब मैं ,आप लोगों से इजाजत चाहूंगा। कुछ समय पश्चात, चाय और मिठाई आ जाती है हालांकि गांव के लोग समझ रहे थे कि अवश्य ही घर में कुछ हुआ है किंतु ठाकुर साहब बताना नहीं चाहते हैं। चाय- पीने में भी, उनकी रुचि नहीं रही थी, किंतु अब जतला भी नहीं सकते थे और बिना चाय पिए गए तो उन्हें बुरा लगेगा यही सब सोचकर वह चुपचाप चाय पीकर धीरे-धीरे उठ कर चले गए। 

दमयंती सोच रही थी -मैं न जाने, यहां आकर कैसे फंस गई ? क्या यह लोग वही हैं ? या मैं कहीं और आ गई हूं। मुझे पापा से इस बारे में बात करनी होगी फिर अपने इर्द-गिर्द देखती  है किंतु वहां पर कोई फोन भी नहीं था , अपनी बेबसी पर, आंसू बहाने लगती है ,अपने उन दिनों को सोच रही थी -जब वह ज्वाला से मिली थी। किस तरह उसने मेरे जन्मदिन पर मेरे लिए केक भेजा था, उस समय सिर्फ मैं उसकी कल्पना कर सकती थी मैंने उसे देखा नहीं था फिर भी न जाने क्यों वह मेरे सपनों में समा गया था और जब उसे जौहरी की दुकान पर देखा , तो मेरा सपना हकीकत में बदल गया था।

 बाद में मुझे पता चला, मेरा विवाह जिसके साथ तय किया गया है वह और कोई नहीं ''राय बहादुर होटल ''के मालिक का बेटा है। तभी तो मैंने , लड़के की तस्वीर को बिना देखे ही,इस विवाह के लिए हां कर दी थी. मैं जानती थी, इस होटल के मालिक का बेटा और कोई नहीं 'ज्वाला सिंह' ही तो है। वह तो मुझे पहले से ही पसंद है , इनकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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