आज शोभित, पहली बार रेलगाड़ी में बैठा है। वह गर्मियों की छुट्टी मनाने,अपने मम्मी -पापा के साथ जा रहा है। रेलगाड़ी में बैठकर वह लोग, घूमने जा रहे हैं। आज उसने पहली बार इतने सारे डिब्बों वाली, रेलगाड़ी देखी है। उसके मम्मी- पापा ने उसके लिए, खिड़की वाली सीट पर उसे बैठा दिया ताकि वह बाहर के नजारे अच्छे से देख सके। नजदीक ही, उसके पापा भी बैठे हैं। उसने रेलगाड़ी के डिब्बे से बाहर झांक कर देखा। कुछ लोग चाय बेच रहे हैं, बहुत से लोग इधर-उधर जा रहे हैं। कुछ लोग, चांट खा रहे हैं और नई-नई चीजें बेच रहे हैं। खिड़की के सामने बैठकर उसे बहुत अच्छा लगा। उसे लग रहा था, जैसे वह एक ऐसी दूरबीन लिए बैठा है जहां पर, उसे सम्पूर्ण दुनिया नजर आ रही है। जहां तक उसकी नज़रें जा रही हैं , वह उन नजारों को देखकर बहुत प्रसन्न है, उसकी मम्मी ने उसके लिए चिप्स और आइसक्रीम खरीदी है।
थोड़ी ही देर में वह रेलगाड़ी अपने स्थान से खिसकने लगती है, यह नजारा शोभित को बहुत अच्छा लगा. उसने देखा -कि वह आगे बढ़ रहा है और लोग पीछे छूटते जा रहे हैं। एक बार वह खड़े होकर खिड़की से बाहर देखने का प्रयास तो करता है किंतु एक सीमा तक वह नहीं देख पाता। तब उसकी मम्मी ने कहा -ऐसे बैठकर ही आराम से, बाहर के नजारों का आनंद लो ! धीरे-धीरे रेलगाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। सीटी बजाती हुई तेजी से, वह रेलगाड़ी आगे बढ़ने लगी। धीरे-धीरे, शोभित को अब जंगल दिखने लगे, दूर-दूर तक पेड़ पौधे और जंगल ही दिखाई दे रहे थे। धीरे-धीरे शोभित उन नजारों में रमने लगा और बोला -मम्मी, देखो ! हम आगे बढ़ रहे हैं, और पेड़ पीछे छुटते जा रहे हैं।
तुम सही कह रहे हो, जैसे-जैसे इंसान तरक्की कर रहा है, वैसे ही, जंगल भी पीछे छुटते जा रहे हैं। यानी जंगल कम हो रहे हैं। जहाँ कहीं ,आसपास पेड़ दिखलाई देते भी हैं, तो वह इंसान की तरक्की के सामने, पीछे जा रहे हैं। ऐसा लगता है, कि वह इंसानों से बचना चाहते हैं, अपना अस्तित्व बचा लेना चाहते हैं।
ये पेड़- पौधे, इंसान से इतने क्यों घबराए हुए हैं ?शोभित ने पूछा।
क्या तुम नहीं जानते? पेड़ों से हमें क्या मिलता है ?
पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है, पेड़ों से दवाइयां मिलती हैं , पेड़ों से फर्नीचर बनते हैं, फल और फूल,सब्जियां मिलतीं हैं, पेड़ों के हमें बहुत लाभ हैं। शोभित ने अपनी पुस्तक में जो पढ़ा था वो अपनी मम्मी को बताया।
तुमने बहुत सही कहा , पेड़ों से हमें बहुत लाभ हैं फिर भी इंसान को, इतनी भी समझ नहीं है कि जिस चीज से हमें लाभ है उसी को नष्ट किये दे रहे हैं। बचपन में बच्चों को सिखाया जाता है कि पेड़ों से हमें क्या लाभ है ? और हमें पेड़ काटने नहीं चाहिए किंतु जैसे-जैसे वह बच्चा बड़ा हो जाता है, वैसे-वैसे ही उन पेड़ों का महत्व भूलता चला जाता है और अपनी उन्नति के लिए, अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए पेड़ों को काटने लगता है। बचपन में जो चीज सिखाई जाती है , उसे भूल जाता है। जैसे-जैसे हमारी रेलगाड़ी आगे बढ़ती जा रही है तो लगता है, पेड़ पीछे जा रहे हैं। इंसान से घबराए हुए हैं , क्योंकि इंसानों ने इन्हे काटने में ,नष्ट करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।
रेलगाड़ी चलते -चलते एक ऐसे स्थान पर पहुंची ,जहाँ दूर-दूर तक देखने पर,कोई जंगल नहीं था। इक्का -दुक्का पेड़ ही नजर आ रहे थे। अब हरा-भरा जंगल नहीं रहा। दूर से पहाड़ और धूल मिट्टी नजर आ रही है। गर्मी बढ़ती जा रही थी।
तब उसके पापा बोले -ये पेड़ हमें छाया भी देते हैं और ठंडक भी देते हैं , यहां पर देखो ! यहां दूर-दूर तक कोई एक- दो पेड़ ही होगा इसलिए इस स्थान पर बहुत गर्मी महसूस हो रही है ,तुम देखोगे, जहां पर भी हरियाली है, हरे -भरे पेड़ हैं। वहीं पर ठंडक और छाया भी मिलती है इसीलिए लोग इस बात को जानते हैं और दूसरों को कहते भी हैं किन्तु स्वयं पेड़ नहीं लगाते। तुमने देखा है ,हमारे घर के सामने जो बेल का पेड़ है। उससे कितनी ठंडक और छाया मिलती है ?उस पर प्रातःकाल की पहली किरण फूटने से पहले ही कितने पंछी आकर बैठते हैं ?चिड़ियों की चहचहाट वातावरण को कितना मोहक बना देती है ?इन पेड़ों से पंछियों को भी तो बसेरा मिलता है। इंसान ,पेड़ ,पंछी ,पशु सभी एक -दूसरे से जुड़े हैं किन्तु तब भी इंसान सबकुछ जानते हुए भी भूलता जा रहा है।
तब तो पापा ,मैं वापस जाकर बहुत सारे पेड़ लगाऊंगा।
हाँ ,लगाने भी चाहिए किन्तु यह कार्य सिर्फ एक आदमी के सोचने या करने से नहीं ,सभी को सोचना और करना चाहिए। यह हमारा देश भी तो एक परिवार की तरह ही है ,जिस तरह परिवार में सभी लोग मिलजुलकर कार्य करते हैं ,हमें भी अपना सहयोग देना चाहिए।
बातों ही बातों में शोभित को ठंडी हवा के झोंको का आभास हुआ ,तब उसकी मम्मी बोलीं -अब दिन भी ढल रहा है और अब यहाँ जंगल भी है इसीलिए ठंडी हवा लग रही है। उस ठंडी हवा में ,शोभित को धीरे -धीरे निंद्रा देवी ने अपनी बांहों में ले लिया।
