Judava

'' जुड़वाँ,''यानि दो का जोड़ा ,दो भाइयों का अथवा दो बहनों का जोड़ा ,किन्तु इन शब्दों में भी अंतर् है। मैं बात कर रही हूँ ,'जुड़वां' की यानि दो का जोड़ा तो होता ही है किन्तु ऐसे दो भाई अथवा बहन जो एक साथ पैदा हुए हों,उन्हें जुड़वां कहकर सम्बोधित किया जाता है। एक माता के लिए कितना बड़ा वरदान हो सकता है ?एक बार में ही उसे दो फल की प्राप्ति हुई।माँ बनना भी सरल कार्य नहीं है ,एक औलाद की प्राप्ति के लिए ,जिनके संतान नहीं होती,वो  न जाने कितने पीर -फकीर से मिलते थे अब डॉक्टर के धक्के खाते हैं।  ताकि उन्हें उनके प्यार का फल प्राप्त हो सके।


कहते हैं -औलाद ,भी किस्मत से मिलती है और जिसको मिलती है ,उसके लिए एक विशेष अनुभूति लेकर आती है।  वो अपने आने वाले बच्चे के लिए कितना कष्ट सहती है ?आज के समय में तो बच्चे पालने के लिए किसी के पास समय ही कहाँ है। इसने व्यस्त जीवन में एक साथ ही यह कार्य भी पूर्ण हो। 

वैसे तो मैंने कभी जुड़वाँ बच्चों को नहीं देखा, किन्तु जुड़वां फ़िल्म अवश्य देखी है ,जिसमें एक कमजोर है तो दूसरा बहुत शक्तिशाली है। एक को चोट लगती या पीटता तो उसका असर दूसरे पर पड़ता है। ऐसे हालात देखते हुए तो लगता है। 'जुड़वां' होने के कुछ लाभ हैं तो हानि भी हैं। यदि एक बहुत चालाक है तो दूसरे के सीधेपन का लाभ उठा सकता है। जब दोनों एक जैसे ही हैं, तो उन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है कौन सा सीधा है या कौन सा चालाक !इससे एक लाभ, तो दोनों भाई अवश्य उठा सकते हैं ,एक का यदि कार्य करने का मन नहीं है तो दूसरा काम पर जाकर उसके कार्य को सफल बना सकता है।

 जहाँ एक बच्चे का पालन -पोषण करना ही कठिन हो रहा है ,ऐसे में दोगुना खर्चा बढ़ जाता है। यदि परिवार में अन्य लोग हैं उनका सहयोग है तो बच्चे आराम से पल सकते हैं किन्तु यदि माँ अकेली है तो परेशान हो जाएगी किन्तु अपने बच्चों के लिए माँ सब झेल जाती है। कोरियोग्राफर के रूप में प्रसिद्ध फराह खान उसके तो तीन एक साथ हुए थे। उसकी तो जैसे एक बार में ही लॉटरी सी लग गयी। आरम्भ में कष्ट सहे होंगे किन्तु आज निश्चिन्त घूमती हैं । 

मैंने तो सुना है ,जुड़वाँ होने पर एक बच्चा कमजोर रह जाता है ,कई बार उनके तन जुड़े रह जाते हैं ,ऐसे केस भी देखे गए हैं जिनमें दोनों भाईयों के आधे हिस्से एक दूसरे से जुड़े हुए थे अथवा दो लड़कियों के आपस में सिर जुड़े हुए थे जिसके कारण उनका ऑपरेशन कराना पड़ा।' जुड़वां' में दो सुंदर प्यारी बेटियां आ जाती हैं या फिर दो हँसते -खेलते बेटे ,यह तो कुदरत की माया है, किसको, किसके घर भेजना है ?

किन्तु इस शब्द से एक सुंदर फ़िल्म अवश्य बन गयी ,जो बड़ी ही मजेदार थी। अच्छा भी है ,एक भाई जो दुश्मनों के दाँत खट्टे कर देता है तो दूसरा रिश्तों को संभालता है। दोनों भाई मिलकर ,अपने पिता के दुश्मनों से  बदला लेते  है। अंत में यही कहूंगी ,बच्चा एक हो या 'जुड़वां 'माता -पिता के लिए अपना वही बच्चा प्यारा है। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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