शहरी लोगों के लिए गांव बनता एक आकर्षण ! कैसा होगा, जंगल ?
गांव में जाना घूमना ,गांव के बच्चों का उन्हें तकना,
एहसास करा देता ,हम उनसे कुछ विशेष हैं।
जानना चाहते, गांव की वो भोली -प्यारी बातें।
गुजरती जहां, बातों ही बातों में सारी रातें।
जंगल में टहलना,शुद्ध वायु अंदर भरना,तरोताज़ा हो जाना।
घूमना,बहन -भाइयों संग जंगल में गन्ने और मटर की कच्ची फलियाँ तोड़........
जेबों में भर इठलाना ,क्या होता जंगल का सुख ?चहुँ और हरियाली....
बाँहों में मेरे जैसे, संपूर्ण जहान था, रिश्तो से भरा -पूरा सदन था।
नये रिश्तों से पहचान होती रही, प्रतिदिन जंगल में नई यादें बनती रहीं।
एक दिन जंगल में देखा -
बहुत ऊंचाई पर एक लकड़ी का मकान था,ऊपर खुला आसमान था।
पूछा यह ,किसका जहाँ है ? जिसके लिए बनाया ये मचान है।
मुस्कुराते हुए किसी ने कहा -अब यहीं घर बनवाया है।
नहीं रहना ,अब उस घर में जहाँ बंधनो का साया है।
ये खेत !जिसकी फ़सल है, खाते हो तुम, जो भुट्टे !ये वही हैं।
पशुओं से सुरक्षा के लिए ही ,ये रास रचाया है।
खा न जाये कोई पशु, इसलिए रातभर रहने के लिए ये घर बनवाया है।
उस फूंस और लकड़ी के घर को देख बड़ा मजा आया।
रहूंगा मैं भी, रातभर यहीं , मन ने कहा और चाचा से फ़रमाया है ।
सुनकर कनीज़ के ख़्वाहिशें ! चाचाजी हंस दिए ,
चार दिन के लिए आये हो ,गांव में क्या है ?सभी जान गये हो।
ज़िद की मचान में रहने की ,ज़िद थी सुहानी चांदनी में रात्रि बिताने की।
कुछ समय ही बीता था ,मच्छर ने जो कसकर काटा था।
नींद भी खराब हो गयी ,मच्छहरी लगाओ ! मेरी हालत खराब हो गयी।
हंसने लगे सभी ,ग्रामीण जीवन कठिन बहुत है।
कुछ दिन का आकर्षण कुछ नहीं कर पाता।
गांव में रहकर देखो !तभी तो लोग,अब गांवों को कह रहे, टाटा !
मैंने भी' नहले पे मारा दहला' बोला -गांव में कठिनाई बहुत है।
''हमारे कृषकों से ही ,अर्थव्यवस्था की रीढ़ खड़ी है।''
चिंता न करें ,एक दिन यहीं आऊंगा ,
देश की अर्थव्यवस्था में अपना हाथ बटाउंगा।