गुरु बिना ज्ञान न होई, इस संसार में गुरु ही हमें, आध्यात्मिक उन्नति के लिए अग्रसर करते हैं। वही एहसास दिलाते हैं- कि हम इस संसार में क्यों आए हैं ? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ? इस तन रूपी चोले में कैसी आत्मा निवास करती है ? क्या वह आत्मा भटकी हुई है ? संसार की विषय वासनाओं में लिप्त है? क्या उसके जीवन का उद्देश्य यही है कि यहां आकर वह छल ,दम्भ ,काम ,क्रोध,लोभ इत्यादि विषय वासनाओं में लिप्त रहे ? तब उस आत्मा के सही मार्गदर्शन के लिए, परमात्मा ने इस संसार में गुरु को भेजा ताकि उन्हें सही राह मिल सके। जो बंदे पहले से ही,गुरु के वचनों पर न्योछावर हैं, यह भी उस कुल मालिक की कृपा है। जो गुरु के बताये मार्ग पर चलते हैं ,गुरु अपने बंदों को कभी नहीं छोड़ते।
यदि यह उनका पुनर्जन्म भी है और वह आत्मा पहले से ही भक्ति के मार्ग पर, चलती आ रही है, गुरु उनको आगे बढ़ने में सहायता करते हैं।
गुरु परमात्मा का ही इंसानी रूप है, उनकी देह से मोह नहीं करना है, वरन उनके दिए वचनों का अनुसरण करना है। भक्ति और प्रेम भाव में आत्मा अपने को परमात्मा से विलग नहीं समझती। वह मौन रहकर सब में कुलमालिक को ही देखती है। आत्मा पहले से ही, पवित्र है, किंतु किन्हीं परिस्थितियों के कारण , आत्मा भी परेशान हो उठती है। कई बार इंसान के पाप इतने बढ़ जाते हैं, जिनके कारण आत्मा तक मलिन हो जाती है। वे कर्म आत्मा पर बोझ बन जाते हैं।
इसके विपरीत भक्ति भाव में मन इतना निर्मल हो जाता है , सब में तू ही तू नजर आता है'' मैं ''भाव तो कहीं दिखता ही नहीं। वह तो किसी बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है, किंतु इतनी गहराई में जाना भी सरल नहीं है।
यह संसार बार-बार व्यथित करता है, तोड़ता है, परीक्षा लेता है ,मन भटकाने के साधन जुटाता है गुरु अपने ज्ञान रूपी 'दंड' से उसे भटकने से रोकता है। सही मार्गदर्शन करता है, इस जीवन का उद्देश्य समझाता है।'' यह मानुष तन आत्मा की शुद्धि के लिए मिला है, तू कालचक्र में क्यों फंसा है ?'' तब वह भटकती हुई आत्मा रो उठती है। संसार के बंधनों को तोड़ने का प्रयास करती है। तब उसे एहसास होता है, इतने वर्षों से उसने अपना सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ गंवा दिया। जाने का समय नजदीक है जो समेटना है अब समेट ले ,तुझे अब चलने की तैयारी करनी है। अपनी इस डोलती नैया को सही राह पर ले चल ! क्या पता? पार ही लग जाए।
''मन'' तो किसी बिल्ली के बच्चे की तरह आकर्षक लगता है, बहु भांति खेल, खेलता है और खिलाता है। आत्मा जो इस संसार में आकर भी पाक़ है किंतु यदि उसको भी सताया जाए तो ''आत्मा'' भी रो जाती है, उसकी सुंदरता नष्ट होने लगती है, उसकी सच्चाई को संदेह भरी नजरों से देखने पर उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है। तब ऐसे में व्यथित मन और बेचैन आत्मा गुरु की शरण में जाकर अपने को शांत करने का प्रयास करते हैं और उसे एहसास दिलाते हैं -उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ?उसे किस मार्ग पर चलना है ?
जीवन के पथ को प्रशस्त करने के लिए भी ,गुरु द्वारा ही विद्या अर्जित कर मानव शैक्षिक योग्यताओं से पारंगत होकर ,देश और समाज की भलाई के लिए नैतिक कार्य करता है और एक आदर्श नागरिक कहलाता है।