घुमड़ -घुमड़कर बादल आये।
शोर करें ,संख्या इनकी बढ़ती जाये।
रोक सकें न, अब तो अपने को ,
'विषाद 'ह्रदय का ,खूब शोर मचाये।
व्याकुल हो , मन का पंछी ,
घूमे, इधर -उधर भटके ,टेर लगाए।
ह्रदय के इस गगन में ,कई तूफाँ आये।
हो बरसात, 'आंधी 'इसे ले उड़ जाये।
भावों के बदरा ,घुमड़ -घुमड़ रह जाएँ।
अब बरसेंगें ,तब बरसेंगें ,
सोच यही ,'चातक' प्यासा रह जाये।
घुमड़ -घुमड़कर फिर से बदरा छाये।
चमके बिजुरी ,ज्ञान की झलक दिखाए।
ये बरसें ,तब ही 'गगन' निर्मल हो पाए।
समय की आंधी ले ! बदरा उड़ जाये।
पुनः -पुनः गगन पर बदरा छाये।
''जिज्ञासु पंछी'' ,प्यासा ही मर जाये।
२ [ कृषक मन -
देख ! बादलों से भरा आसमान !
''कृषक'' मन हरषाये।
अबकि हो बरसात !फ़सल लहलहाए।
जीवन के न जाने कितने क्लेश मिट जाएँ।
लिए आशा,बरसात की ,
बैठा, देखे ऊपर ,टकटकी लगाए।
सूखी थी नदियां ,ताल -तलैयां ,
बिन मौसम भी, कभी बरसात आ जाये।
तो कभी ,बादलों से भरा गगन दिखलाये।
उम्मीदों के दीप जलाये ,
बैठा हूँ मेड़ों पर ,न जाने कब बरसात आये ?
