Badlon se bhara asamaan

 घुमड़ -घुमड़कर बादल आये। 

शोर करें ,संख्या इनकी बढ़ती जाये। 

रोक सकें न, अब तो अपने को ,

'विषाद 'ह्रदय का ,खूब शोर मचाये। 


व्याकुल हो , मन का पंछी ,

घूमे, इधर -उधर भटके ,टेर लगाए।

ह्रदय के इस गगन में ,कई तूफाँ आये। 

हो बरसात, 'आंधी 'इसे ले उड़ जाये। 

भावों के बदरा ,घुमड़ -घुमड़ रह जाएँ। 

अब बरसेंगें ,तब बरसेंगें ,

सोच यही ,'चातक' प्यासा रह जाये। 

घुमड़ -घुमड़कर फिर से बदरा छाये। 

चमके बिजुरी ,ज्ञान की झलक दिखाए।

 ये बरसें ,तब ही 'गगन' निर्मल हो पाए। 

समय की आंधी ले ! बदरा  उड़ जाये।

पुनः -पुनः गगन पर बदरा छाये। 

''जिज्ञासु पंछी'' ,प्यासा ही मर जाये।  


२ [ कृषक मन - 

देख ! बादलों से भरा आसमान !

''कृषक'' मन हरषाये। 

अबकि हो बरसात !फ़सल लहलहाए। 

जीवन के न जाने कितने क्लेश मिट जाएँ। 

लिए आशा,बरसात की ,

बैठा, देखे ऊपर ,टकटकी लगाए।

सूखी थी नदियां ,ताल -तलैयां , 

बिन मौसम भी, कभी बरसात आ जाये। 

तो कभी ,बादलों से भरा गगन दिखलाये। 

उम्मीदों के दीप जलाये ,

बैठा हूँ मेड़ों पर ,न जाने कब बरसात आये ?  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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