Uskai muskaan

''मुस्कान उसकी'' देख लगा, चाँद निकल आया। 

चेहरा जो आँचल में छुपाया, लगा बादलों का साया।

मिटा देती ,उसकी मुस्कान मेरे ग़म सारे,भरती उमंगें , 

हटा, जो रुसवाईयों का साया, लगा ईद का चांद आया। 



 रोज़ ही उनके दीदार को तरसे,तड़पते इश्क़ ए यार में ,

आज जब दीदार -ए- यार हुआ,लगा ईद का चाँद आया। 

''उसकी मुस्कान ''हर ग़म मिटा ,बनी उमंगों की छाया।

हटाई जो उसने चेहरे से जुल्फें !लगा चाँद निकल आया।


 बातें उसकी, मुस्कान याद कर हटा ,रंजो ग़म का साया।   

लगा ,जैसे बुझते दीयों में ,किसी ने स्नेह दीपक जलाया।

 उनकी हंसी की खनक मुझमें, मेरा रोम -रोम हरषाया। 

देख ,उसकी मुस्कान,मेरा भी चेहरा मुस्कान से भर आया। 


ये चाँद -

न जाने ,यह चांद कैसा है ?

'ईद' पर उसकी मुस्कान, याद दिलाता है। 

'करवा चौथ' पर पतियों का हमदर्द बन जाता है। 

कभी' पूनम' का चांद बन, खिल उठता,

तो कभी' अमावस्या' की अंधेरी रात में सताता है। 

माओं के लिए बन जाता, आशीषों का साया है। 

आशिकों के लिए, खूबसूरती का महज़ एक साया है। 

मुझे तो चांद में ही, अपना यार नजर आया है। 

उसके गम में भी,जलते दिलों को इसी ने रास्ता दिखलाया है। 

  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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