''मुस्कान उसकी'' देख लगा, चाँद निकल आया।
चेहरा जो आँचल में छुपाया, लगा बादलों का साया।
मिटा देती ,उसकी मुस्कान मेरे ग़म सारे,भरती उमंगें ,
हटा, जो रुसवाईयों का साया, लगा ईद का चांद आया।
रोज़ ही उनके दीदार को तरसे,तड़पते इश्क़ ए यार में ,
आज जब दीदार -ए- यार हुआ,लगा ईद का चाँद आया।
''उसकी मुस्कान ''हर ग़म मिटा ,बनी उमंगों की छाया।
हटाई जो उसने चेहरे से जुल्फें !लगा चाँद निकल आया।
बातें उसकी, मुस्कान याद कर हटा ,रंजो ग़म का साया।
लगा ,जैसे बुझते दीयों में ,किसी ने स्नेह दीपक जलाया।
उनकी हंसी की खनक मुझमें, मेरा रोम -रोम हरषाया।
देख ,उसकी मुस्कान,मेरा भी चेहरा मुस्कान से भर आया।
ये चाँद -
न जाने ,यह चांद कैसा है ?
'ईद' पर उसकी मुस्कान, याद दिलाता है।
'करवा चौथ' पर पतियों का हमदर्द बन जाता है।
कभी' पूनम' का चांद बन, खिल उठता,
तो कभी' अमावस्या' की अंधेरी रात में सताता है।
माओं के लिए बन जाता, आशीषों का साया है।
आशिकों के लिए, खूबसूरती का महज़ एक साया है।
मुझे तो चांद में ही, अपना यार नजर आया है।
उसके गम में भी,जलते दिलों को इसी ने रास्ता दिखलाया है।