Bhav

भाव -यानी विचार,ख़्याल , मूल्य, भावना, कीमत, दाम,अथवा स्नेह,व्यवहार इसके कई अर्थ हो सकते हैं ,यह कई रूपों में ,मानव के अंदर स्थित रहता है किंतु यहां मैं उस'' भाव'' की बात कर रही हूं जिसकी एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अपेक्षा रखता है। प्रेम और स्नेह की भावना , यह एक ऐसा भाव है, जिसको पत्थर के  भगवान भी समझ जाते हैं -कि उनके भक्त में कैसा' भाव '' है ?यह मेरी स्वार्थ पूर्ण भाव से पूजा कर रहा है, या फिर भक्ति भाव से। यह भाव ही तो है जो हमें, दूसरे के व्यवहार से दर्शा देता है कि वह हमें कितना महत्व दे रहा है ? अथवा हम उसके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं ? यदि हृदय में स्नेह भाव है, तो इंसान उसी प्रकार स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है। आदर है तो आदर का भाव आएगा। आदर से वह दिखला देता है कि उसके मन में उस इंसान का कितना सम्मान है ?


 यूं तो कई बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई है , किंतु यह भाव ही, रिश्तों  को बनाए रखता है और तोड़ता भी यही है। इस भाव की कीमत दूसरे के मन में, कितनी है? इस बात को तो, जानवर भी समझते हैं। यदि उन्हें भी प्रेम भाव से, अपनी गोद में बिठाया जाए या उन्हें प्यार से बैठाकर भोजन खिलाया जाए तो वह भी समझ जाते हैं कि हमारे मालिक का हमारे प्रति कितना ''भाव ''है ?

 इंसान भी इंसान को महत्व देता है, किंतु उसके अंदर का भाव विभिन्नता को दर्शाता है।मान लीजिये , यदि कोई अमीर व्यक्ति है, दूसरे व्यक्ति उसको सम्मान दे रहे हैं , तो वह समझ जाता है, कि यह भाव उसका नहीं है, उसके लिए नहीं है बल्कि यह उसकी धन -दौलत के कारण यह'' भाव'' है या फिर उसकी ''कुर्सी''के कारण। यह तो दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे इस झूठे भाव से बहकना नहीं है बल्कि अपना कर्म करते हुए आगे बढ़ जाना है।  

इसी प्रकार पिता- पुत्र के व्यवहार से उसके भाव से समझ जाता है कि वह उचित दिशा में चल रहा है या गलत दिशा में,  उसका पुत्र ,उसकी बातों को कितना महत्व देता है ? यह बात पिता- पुत्र के रिश्ते में ही नहीं होती बल्कि यह बात, हर उस रिश्ते में होती है जो एक दूसरे को जोड़ता है ,जोड़े रखता है। मान लीजिए, हम किसी के मेहमान बन कर जाते हैं , उसके आदर सत्कार से हमें पता चल जाएगा कि वह हमारे आने को कितना महत्व दे रहा है ? हो सकता है, वह शब्दों से, बातचीत से बहुत मीठा बोल, बोल रहा हो किंतु उसके अंदर का भाव, दूसरे इंसान को एहसास करा  देता है कि यह जो कुछ भी कह रहा है यह उसकी अपनी सोच नहीं है। 

अब आप यही देख लीजिए ! जिस ईश्वर को हमने देखा भी नहीं, हम उसकी कल्पना करते हैं, उसे महसूस करते हैं ,उसके प्रति हमारा' प्रेम भाव '' एहसास कराता है ,वो हमारे साथ है ,हमारे पास है। उसके प्रति हम प्रेम भाव ही नहीं  सम्मान भी रखते हैं, उससे शिकवा- शिकायतें भी करते हैं, भक्ति से उसे पूजते भी हैं। हमारे कार्य अच्छे हों , इसके लिए हम मंदिर भी जाते हैं। कई बार हमारा मन डांवाडोल हो जाता है, तब हम साधु- संतों के पास भी जाते हैं और तब वे हमें बतलाते हैं कि तुमने ईश्वर की जो पूजा- अर्चना की है, वह प्रेम भाव से नहीं की इसलिए ईश्वर तुमसे प्रसन्न नहीं है। समर्पण भाव से नहीं की, भक्ति भाव से नहीं की कारण कोई भी हो सकता है। हम डर जाते हैं और प्रयास यही रहता है कि ईश्वर हमसे प्रसन्न रहें और हमारे सभी कार्य अच्छे और पूर्ण हों।यह हमारा ड़र भी हमसे ये सब करवाता है।  

अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि'' भाव'' एक ऐसी व्यावहारिक और वैचारिक क्रिया और प्रतिक्रिया है जिसमें बातचीत से और व्यवहार से,एक इंसान को दूसरे इंसान के भाव के विषय में पता चल जाता है। कई बार हम उस इंसान को उसकी गलती का एहसास कराना चाहते हैं किंतु वह नकार देता है। वह जिस तरह भगवान के कोप से डरता है। उसी  तरह इंसान से डरता तो नहीं है भगवान से इतना डरता है तब कुछ ना कुछ गलतियां कर ही बैठता है जबकि इंसान तो इंसान ही है ,उससे भय कैसा ? यदि किसी दूसरे व्यक्ति से उसका स्वार्थ सिद्ध नहीं हो रहा है , अथवा वह उसके स्तर के बराबर का नहीं है तो वह उसे सम्मान नहीं देगा उसकी भावनाओं की कदर नहीं करेगा उसका यही भाव दर्शा  देता है कि आज मैं गरीबी में था मेरे दोस्त ने मेरा साथ नहीं दिया अथवा मेरे रिश्तेदारों ने मेरा साथ नहीं दिया। समय आने पर वह जब जवाब मांगता है , तो वह उन्हें समझाने का प्रयास करते हैं। 

 नहीं ,तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है , मैंने  तुम्हारे साथ ऐसा किया ही नहीं , तुम्हें अवश्य ही कुछ गलत लगा होगा मेरी सोच तो ऐसी थी ही नहीं। 

दुखी हृदय, वह व्यक्ति सब कुछ होते हुए भी, अकेला हो जाता है। कई बार ऐसा होता है ,माता -पिता अपने बच्चों के पास रहते हैं ,वे लोग, रखते भी हैं ,ज़माने को दिखाने के लिए किन्तु तब भी माता -पिता प्रसन्न नहीं हैं। क्यों ?क्योंकि बच्चे जो व्यवहार करते हैं ,जो भाव रखते हैं ,उन्हें वो महसूस करते हैं ,उन्हें पता होता है कि किस' भाव' से हमारी सेवा का स्वांग हो रहा है। केवल माता -पिता ही नहीं ,रिश्ता तो कोई भी हो ,एहसास सभी में होता है। 

 वह न ही भगवान है और न ही कोई पशु ! अब आप ही यही समझ लीजिए जब पत्थर के भगवान इंसान के उस 'भाव' को समझ जाते हैं। पशु भी इंसान की फितरत उसके व्यवहार उसके' प्रेम भाव' को समझ जाते हैं तब क्या इंसान ही इंसान का 'भाव' नहीं समझेगा ? किस तरह मेरे मित्र ने, रिश्तेदारों ने ,परिवार वालों ने मेरा साथ नहीं दिया ? मैं गरीब था अथवा मैं जिंदगी में असफल रहा, अथवा मैं  उनके स्तर का नहीं था। यह व्यवहार और' भाव' सब कुछ बतला देता है किंतु इंसान उसे झूठलाने का प्रयास करता है। नकार देना चाहता है, शायद वह स्वयं ही नहीं जानता कि उसके अंदर का' भाव' चीख -चीख कर जवाब दे रहा है इसे न कारने का प्रयास न करें फिर चाहे प्रेम हो या घृणा !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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