पद्मिनी जी, अपने बेटे की के भविष्य को लेकर परेशान थीं। वे सोच रही थीं कि यदि लड़का आज शराब पीकर आया है, आगे भी इस तरह पीने का प्रयास करेगा। वह इतना तो जानती ही हैं कि एक बार व्यक्ति गलत राह पर चल दिया तो उसे ,उस नशे की लत से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है किंतु उनके पति नरेंद्र जी उन्हें समझाते हैं -कि हमें अपने बच्चों पर भरोसा और विश्वास होना चाहिए और यह तो त्यौहार का समय है और बच्चे की उम्र भी ऐसी है ,कभी -कभार एक बार मस्ती में इंसान ऐसा कर जाता है।वे दोनों क्या जानते थे ,जिसे वो लड़के की पहली गलती समझ रहे हैं ,ऐसी गलतियां तो वह न जाने कितनी बार कर चुका है ?
पति के समझाने पर भी पद्मिनी जी संतुष्ट नहीं हुई और उन्होंने निर्णय लिया, कि बेटे के जाने से पहले उसे समझाना होगा।
नितिन और उसके मित्र, तैयार होकर बाहर आते हैं, उनकी नज़रें घर वालों से नहीं मिल रही थीं क्योंकि नितिन ने पहले ही बता दिया था ,कि घरवालों को उनके नशे में होने का पता चल गया था। वह जानता है कि उसे कुछ न कुछ नसीहत तो सुनने को मिलेगी। इसके लिए वह पहले से ही तैयार हो गया था। पद्मिनी जी ने उसे देखते ही कहा -जा रहे हो, सारी तैयारी हो गई।
हां, तैयारी क्या करनी है? अब तो जाकर इम्तिहान की तैयारी करनी है ,उसने अपनी परीक्षाओं के माध्यम से बात को बदलने का प्रयास करते हुए कहा ,ताकि घरवालों को एहसास हो कि उसे अपने उत्तरदायित्वों का पता है।
अच्छा !जरा इधर तो आना, मां ने इशारा किया, नितिन समझ रहा था, कि मां उसे अकेले में ले जाकर समझाना चाहती है, वह खड़ा सोच ही रहा था तभी उसकी मां बोली -अरे इधर आता क्यों नहीं ? कहते हुए हाथ के इशारे से उसे बुलाया।
मां ने समझदारी से काम लेते हुए , बेटे से कहा -देख ! अब तू बड़ा हो गया है, समझदार भी है अपना भला -बुरा समझ सकता है किंतु माता-पिता का कर्तव्य तो अपने बच्चों को समझाना ही है। यह जो कल हरकत हुई है, यह मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। तेरे दोस्त, तेरे साथ है इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा किंतु मैं तुझे समझाना चाहती हूं यदि यह लोग भी खाते -पीते हैं तो इनसे दोस्ती तोड़ लेना, इनसे दूर ही रहना। अच्छी आदतें आदमी जल्दी नहीं सीख पाता है लेकिन बुरी लत जल्दी लग जाती है, उसमें समय नहीं लगता।
पद्मिनी जी की बातों को सुनकर, नितिन को थोड़ी झुंझलाहट हुई, वह पहले से ही जानता था कि मां उसे समझाने के लिए ही बुला रही हैं , पर यह भी अच्छा ही हुआ कि सुमित और रोहित उसके संग हैं ,वरना लम्बा भाषण सुनना पड़ता ,दोस्तों के सामने ज्यादा कुछ नहीं कहा। तब वह बोला मैं सब समझता हूं, अब मैं बड़ा हो गया हूँ ,आप मुझे जाने दीजिए।
''बच्चे चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ, किन्तु माँ -बाप के लिए वो बच्चे ही रहते हैं। ''हां तू चला जा!कुछ स्मरण करते हुए बोलीं - अच्छा यह बता !तुझे कुछ पैसों की आवश्यकता तो नहीं है।
इसीलिए तो नितिन घर पर आया था किंतु कल वाली हरकत के कारण ,उसका साहस नहीं हुआ था कि घर वालों से कुछ पैसे मांग ले, मां के कहने पर, उत्साहित होकर बोला -आवश्यकता क्यों नहीं है ? इम्तिहान होंगे, नोटस भी लेने हैं अबकी बार मैं बीमार हो गया था तो, बना भी नहीं पाया, मुझे नोट्स खरीदने ही होंगे।
तो तूने पहले क्यों नहीं कहा ?नाराज होते हुए वे बोलीं।
आप बोलने दें, तब न...... इतनी देर में उसका सारा भय समाप्त हो गया था। तब उसकी मम्मी ने अलमारी खोलकर, उसे कुछ पैसे दिए और बोली -अपना ख्याल रखना, पढ़ाई पर ध्यान देना, और पैसे की आवश्यकता हो तो मुझसे मांग लेना, और ध्यान से रहना, और शराब और नशे से दूर ही रहना , यह बात मैं तुझे दोबारा समझा रही हूं। एक बार आदमी को इसकी लत लग गई तो फिर आसानी से छुटती नहीं।
अपने बेटे को ,दोबारा समझाना चाहती थीं, किंतु उनकी बात पूरी होने से पहले ही वह बाहर निकल गया। नरेंद्र जी समझ रहे थे कि अवश्य ही, इसे अंदर बुलाकर पद्मिनी जी ने डांटा होगा। उसे कुछ पैसों की आवश्यकता है या नहीं यह तो पूछा ही नहीं होगा। उसे कुछ परेशानी तो नहीं है , बस उसे भाषण दे दिया होगा यह सोचकर वे बच्चों को छोड़ने के बहाने, बाहर आए। पद्मिनी जी , वे मुख्य द्वार तक उन सब को छोड़कर चली गई किंतु नरेंद्र जी आगे तक गए। तब वह नितिन से बोले -तुम्हारी मम्मी ने जो कुछ भी कहा है तुम्हारी चिंता के कारण ही कहा है। मैं नहीं जानता ,उसने क्या कहा है? किंतु कल रात्रि से तुम्हारे लिए ही बहुत परेशान थी तो मुझे लग रहा था ,उसने तुम्हें कुछ समझाया ही होगा। नितिन ने हां में गर्दन हिलाई, तब नरेंद्र जी बोले -उसे तुम्हारी चिंता लगी रहती है, और यह भी सोचती है कि कहीं तुम किसी गलत राह पर ना निकल जाओ ! तुम्हारे सामने तो संपूर्ण भविष्य पड़ा है , अब इतनी बात करने का समय नहीं है ,तुम्हारी गाड़ी आ गयी ,तुम्हें कुछ पैसों की आवश्यकता तो नहीं है उसने तो पूछा ही नहीं होगा। नरेंद्र जी ने नितिन से पूछा।
हां, कुछ पैसों की आवश्यकता तो है , हम लोग ट्रिप पर गए थे, तब वहां भी मेरा खर्चा हो गया था और अब इम्तिहान फीस अलग से जाएगी।
क्यों वह तो सारे साल की फीस होती है , एक साथ ही जमा कर देते हैं।
आप नहीं जानते हैं, कॉलेज वालों ने तो बिजनेस बना रखा है, आए दिन कोई न कोई खर्चा बता ही देते हैं।प्रोजेक्ट ,प्रैक्टिकल !
ठीक है, कोई बात नहीं, कहते हुए उन्होंने पांच -पांच सौ के कुछ नोट धीरे से बेटे के हाथ में खिसका दिए। मन ही मन नितिन बहुत खुश हुआ। अब तो, जितने भी पैसों की आवश्यकता पड़ती उससे कुछ ज्यादा ही मिल गए हैं। अब तक माता-पिता ने जो भी अपने प्रेम से, अधिकार से, अपने बेटे को समझाया था वह उसके लिए एक दिनचर्या सी बन गई थी। वह ये बातें तो वह बचपन से सुनता रहा है इसलिए उन बातों का उसके हृदय पर अब कोई असर नहीं रह गया था। वह तो बस प्रसन्न था जिसके लिए वह यहां आया था वह कार्य हो गया।
माता-पिता परिश्रम करते हैं एक सुखी और अच्छे परिवार की कल्पना में, परिश्रम भी करते हैं और अपने बच्चों को उचित शिक्षा देने का प्रयास भी करते हैं। किंतु उनकी उस शिक्षा को ,वह बच्चा कितना ग्रहण कर रहा है ? जब तक वह माता-पिता के साथ रहता है तो वह उनका आज्ञाकारी पुत्र बनकर रहता है किंतु जैसे ही उसका वातावरण परिवर्तित होता है,वह भी बदल जाता है। तब उसकी असल प्रकृति उभर कर आती है। असल में वह आज्ञाकारी बच्चा ही था या फिर कुछ और था।
