दमयंती ,उस अनजान व्यक्ति की सहायता करने के लिए तैयार हो जाती है , वह उसे एक जौहरी की दुकान में ले जाती है। वहां पर वह उस व्यक्ति की अनजान दोस्त के लिए, एक हीरे की अंगूठी लेती है। वह सोच रही थी -उस अंगूठी की कीमत देखकर, वह थोड़ा हड़बड़ा जाएगा किन्तु वह अनजान व्यक्ति मुस्कुराया और बोला -एक अंगूठी ही क्यों ?पूरा सेट ले लीजिये ,उनके ऊपर बहुत अच्छा लगेगा।
दमयंती ने ,उस हार का मूल्य देखा और बोली -ये तो बहुत महंगा है ,आपको विश्वास है, उसे यह सेट पसंद आएगा।
जब आपने पसंद किया है, तो क्यों नहीं आएगा ? रही बात मूल्य की ,उनके सामने इसकी क़ीमत कुछ भी नहीं ?मन ही मन दमयंती सोच रही थी -जिससे इसने ज्यादा बात भी नहीं की ,तब ये उसे इतना चाहता है उसके दिल का हाल भी जान गया तो न जाने क्या होगा ?काश !मुझे भी ऐसा ही चाहने वाला मिले।दमयंती को सोचते देखकर उसने पूछा - क्या सोच रहीं हैं ?क्या मैं अपनी सहायता करने वाली का नाम जान सकता हूँ।
मुझे लगता है ,इसकी कोई आवश्यकता नहीं है ,मन ही मन दमयंती को वो पसंद था किन्तु एक अनजानी सी छाया, जो उसके जन्मदिन वाले दिन से ही ,उसके संग है ,न जाने, ये कैसा एहसास है ? जिसे न देखा ,न जाना फिर भी, उससे इश्क़ हो गया। मन में अनेक प्रश्न आते किन्तु सबका एक ही जबाब और इच्छा होती ,एक बार उससे मुलाक़ात हो जाये। दिल गवाही देता ,अवश्य ही वो एक अच्छा इंसान होगा। न जाने कैसा आकर्षण दमयंती को अपनी ओर खींच रहा था ? जब तक वह ,उसके विषय में न जान ले, तब तक किसी अन्य से बात करने में उसकी कोई रूचि नहीं थी।
क्या सोच रहीं हैं ?उसे सोचते देखकर ,वह बोला -आप कुछ ज्यादा ही सोचती हैं ,तब उसने पूछा -आप अपना नाम बताना नहीं चाहतीं कोई बात नहीं ,मेरे लिए आप 'अनाम' ही रहेंगी।
क्या मैं आपका नाम जान सकती हूँ ,अचानक दमयंती ने कहा।
ये बात तो दोनों तरफ से होनी चाहिए ,कहते हुए उसने उस हार का मूल्य दिया और आगे बढ़ गया। तभी वापस आकर बोला -मैं आपको निराश नहीं करूंगा आपने मेरी सहायता की है। मैं ''ज्वाला सिंह ''जिससे आप मिलना चाहती थीं। आपका भेजा, केक मैंने खाया ,बहुत मीठा था कहकर बाहर निकल गया।
उसकी बात सुनकर दमयंती जस की तस खड़ी रह गयी ,ये क्या हो गया ?जिसके लिए मैं इतनी परेशान थी जिससे मिलना चाहती थी ,वो मेरे पास था ,साथ था और मैंने उसे अपना नाम तक नहीं बताया। उसे तो जैसे होश ही नहीं रहा और जब उसे होश आया वो बाहर की तरफ भागी किन्तु वो तब तक जा चुका था। ये क्या कर दिया मैंने ,मुझसे ये क्या हो गया ?बेचैनी और घबराहट से एक स्थान पर बैठ गयी ,लग रहा था -काश !वो समय वापिस आ जाये। एक बार फिर से मिले, उसे जी भरकर देख लूँ ,उसे देखना तो दूर, मैंने उससे ठीक से बात भी नहीं की।
इस बात से उसका मन इतना हताश हो गया ,उसने खरीददारी भी नहीं की। अब तक उसके मन में जो भी शंकाएं थीं वे सभी निर्मूल नजर आ रहीं थीं। घर पहुंची और सीधे अपने कमरे में गयी और बिस्तर पर निढाल सी पड़ गयी।
चार महीने पश्चात -
नयनों में अनेक सुंदर ,प्यारे से स्वप्न सजाये,दमयंती अपनी' सुहाग सेज' पर बैठी है ,अपने साजन की प्रतीक्षा में थी। मन ही मन उसके विषय में सोचती और मुस्कुरा देती ,कभी दांतों में अंगुली दबाती तो कभी अपने पैरों से ही खेलने लगती जिसके कारण उसकी पायल उसकी बेचैनी का इज़हार करती नजर आतीं। तभी कमरे में ,सुनयना जी ने प्रवेश किया और बोलीं -बहु ! भोजन कर लिया।
दमयंती ने शरमाते हुए हाँ में गर्दन हिलाई ,तब वो बोलीं -तुम थोड़ा आराम कर लो ! ये ठाकुर हैं ,ख़ुशी का वातावरण है,ये लोग ख़ुशियाँ भी पूरे जोर -शोर से मनाते हैं। इनके दोस्त भी आये हुए हैं ,उन्हें अभी न जाने कितना समय लग जाये ? उनके लिए भी ख़ुशी का मौका है ,कहते हुए सुनयना जी मुस्कुराईं और बाहर जाते हुए बोलीं -अब आगे से तुम्हें ही उसका ख्याल रखना होगा। बराबर में ही दूध का गिलास ढककर रखवा दिया है। मैं,उसे शीघ्र ही अंदर भेजने का प्रयास करती हूँ।
उनके जाने के पश्चात ,दमयंती निश्चिन्त हो गयी कि अभी उसके पति को आने में समय लगेगा। वह बिस्तर से उठी ,अपने आपको आईने में निहारा।तब उस कमरे को ध्यान से देखा, उस कमरे की सज्जा बहुत ही सुंदर थी। सफेद और लाल फूलों से उसकी सेज़ सजी हुई थी। कुछ देर टहलती रही ,खिड़की से बाहर झाँकने का प्रयास किया किन्तु अँधेरे में कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आया। तब वह अपने बिस्तर पर जा बैठी ,घड़ी में समय देखा ,घड़ी की सुइंयाँ ग्यारह बजा रहीं थीं ,धीरे -धीरे खामोशी बढ़ती जा रही थी। तब वह सोचने लगी -आखिर जो वो चाहती थी, वही हुआ ,उसी होटल के मालिक के बेटे से ही तो उसका विवाह हुआ है। हालाँकि उनको ज्यादा देखने और मिलने का समय नहीं मिला किन्तु उस दिन तो दमयंती ने उन्हें देखा ही है। वो उसके सपनो का राजकुमार ,बिल्कुल वैसा ही था।
आज भी वो बातें स्मरण हो आती हैं ,तो ह्रदय में एक गुदगुदाती सी लहर उठने लगती है। जब वो मॉल से घर आई थी और बिना भोजन किये ही सो गयी थी।
श्यामलाल जी ने आकर पूछा था -आज हमारी दमयंती इस समय कैसे सो रही है ?
पता नहीं ,क्या हुआ ?बाहर से आई और आते ही सो गयी।
मुझे लगता है ,शायद थक गयी है ,बाहर धूप भी तो बहुत ज्यादा है।
क्या वो गाड़ी लेकर बाहर गयी थी ?
नहीं ,स्कूटर से गयी थी।
तुम भी कमाल करती हो ,तुमने उसे इस तरह बाहर क्यों जाने दिया ?जब गाड़ी है तो गाड़ी से जा सकती थी।
वो किसी की सुनती ही कहाँ है ?मैंने कहा था -गाड़ी लेकर जाना किन्तु बोली -ज्यादा दूर का काम नहीं है शीघ्र ही आ जाऊंगी ,अपने मम्मी पापा की बातों को स्मरण कर दमयंती मुस्कुरा रही थी ,न जाने कब उसे नींद आ गयी ?
