नितिन जैसे ही खुश होते हुए अपने कमरे से बाहर आया, उसके मम्मी- पापा ने उसे देखा और हंसने लगे।आश्चर्य से, वह उनकी तरफ देखने लगा और पूछा -आप इस तरह क्यों हंस रहे हैं ?
क्यों, क्या होली में हंसना मना है ? तुम भी हंसोगे ,जब तुम्हारा तुम अपना चेहरा आईने में देखोगे।
अपनी मम्मी की बात सुनकर ,नितिन दौड़कर आईने में अपना चेहरा देखने गया और देखते ही, वह समझ नहीं पाया कि वह हंसे या दुखी हो, वह तो सोच रहा था - कि उसने अपने दोस्तों की होली मनाई है उनके चेहरे अच्छे से रंगीन कर दिए थे। किंतु उसे क्या मालूम था ? कि वह उसके भी उस्ताद है, न जाने कब उन्होंने उसके चेहरे पर कलाकृति बना दी थी ? दोस्तों के उठने से पहले शीघ्रता से अपना मुंह धो लेता है ऐसे तैयार हो जाता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
दोस्तों के उठने पर, वह ही नहीं सभी घरवाले हँसते हैं। इसे कहते हैं -'नहले पे दहला ''सभी नाश्ता करते हैं और नितिन उन्हें साथ लेकर, घूमने निकल जाता है वह रचित के घर की तरफ से भी जाता है किंतु चुपचाप वापस भी आ जाता है क्योंकि वहां पर कोई नहीं था जो होली खेल रहा है। एक बार इच्छा भी हुई उसके घर वालों से जाकर मिले किंतु साहस न कर सका यदि उसे मालूम न होता कि उसका दोस्त अभी वापस नहीं आया है, तो शायद वह चला भी जाता उसके मम्मी- पापा के सवालिया नजरों का कैसे सामना करेगा ? दोपहर तक दोनों घूमते, और खेलते रहे।
अब तक तो कई गिलास शराब उनके गले में उतर चुकी थी। ऐसे में नितिन भूल गया था कि वह अपने घर पर आया हुआ है। होली के रंगों में, रंगने के पश्चात किसी ने उस पर पानी से भी रंग डाला। थोड़ा नशा कम हुआ तब उन्हें एहसास हुआ कि उन लोगों ने क्या गलती कर दी है ? इस बात को कैसे छुपाया जाए ? सड़क के किनारे हल्की धूप थी, और हवा भी थी,तीनों वहीं बैठकर अपने गीले कपड़ों को सुखा रहे थे और सोच रहे थे कि घर कैसे जाया जाएं ? तब नीतिन अपने दोस्तों से कहता है -तुम चुपचाप घर के अंदर चले जाना, और नहाकर ही बाहर निकलना और यदि नशा नहीं उतरता है तो वहीं सो जाना।
अपनी योजना के तहत यही सोच कर दबे पाँव वे लोग, घर के अंदर प्रवेश कर रहे थे , किंतु माता-पिता तो पहले से ही उनकी प्रतीक्षा में थे, उनकी बुरी हालत देखकर, पद्मिनी जी बोलीं -तुम लोग अब आये हो, बहुत समय कर दिया किन्तु तीनों में से कोई नहीं बोला,चुपचाप अंदर की तरफ बढ़े रहे थे। जबाब क्यों नहीं दे रहे ?मुँह में क्या दही जमा है ?
अभी... हम नहाकर.... बात करेंगे कहते हुए नितिन आगे बढ़ा। माँ को शक़ हुआ और वो आगे बढ़ीं, उसका चेहरा और आँखे देखकर बोलीं -तू नशे में लग रहा है ,उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरा बेटा शराब भी पी सकता है ,उन्हें लगा -यह किसी की शरारत है ,तब उन्होंने पूछा -यह तेरे साथ किसने कर दिया ?
घबराते हुए, नितिन को लगा, उसके चेहरे का रंग देखकर कह रहीं है ,वह बोला -बाहर बहुत छोटे-छोटे बच्चे थे,बड़े भी थे,यह सब उनमें से ही किसी ने किया है।
ये आजकल के बच्चे भी न.... उन्हें बहुत ही होली सूझ रही है,कहते हुए वापस जाने लगी। नितिन को लग रहा था, कि वह संभलकर बोल रहा है किंतु ऐसा नहीं हुआ।पद्मिनी जी वापस लौटीं, जैसे ही, उसके नजदीक आई, उन्हें एक तेज़ दुर्गंध का झोंका आया और वे चिल्लाने लगी - हे राम ! यह तुमने क्या किया ?घर में शराब पीकर आए हो। क्या तुम्हें पता नहीं है ,हमारे यहाँ आज तक किसी ने शराब नहीं पी।
घबराकर ,रोहित और सुमित वहीँ के वहीँ ठहर गए। नहीं नहीं, हमने ऐसा कुछ नहीं किया, न जाने किसने हमारी ठंडाई में कुछ नशा मिला दिया? कहते हुए तीनों जल्दी-जल्दी अंदर गए और पलंग पर लेट गए, थके हुए थे,उन्हें लग रहा था ,अब जान छूटी , बिना नहाए हुए ही,बातें करते -करते सो गए।
पता नहीं, आजकल के लोगों को क्या हो गया है ?इतनी भी शर्म नहीं आती, छोटे बच्चे हैं ,कुछ भी मिलाकर पिला देते हैं। इसे होश में आने दो! तब इससे पूछूँगी ,उसके साथ ये सब किसने किया ? जिसने भी ये किया होगा ,उसे छोडूंगी नहीं ,पद्मिनी जी नाराज होते हुए बोलीं।
तुम क्यों ख़्वामहखाह परेशान होती हो ?ऐसे समय में मस्ती में थोड़ा बहुत चल जाता है ,हंसी -मज़ाक भी चलता है।
ये हंसी -मज़ाक है ,दूसरे के बच्चे को भांग पिला दी ,उसे होश में आने दो !
अब ये तुम्हारा बच्चा ,छोटा बच्चा नहीं रहा ,इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है ,कोई जबरदस्ती उसके मुँह में नहीं डाल देगा,उसने स्वयं पी होगी ,मना भी तो कर सकता था। ऐसे तीज -त्यौहार पर चल जाता है। तभी तो कहते हैं -''बुरा न मानो ,होली है।'' अब बुरा केेसा मानना , जो हो गया सो हो गया। अब वो बड़ा हो गया है ,उसके दोस्तों के सामने उसे डांटना अच्छा नहीं लगेगा।
मुझे उसके दोस्तों के सामने डांटना होता तो तभी डाँटती किन्तु मैंने इतना धैर्य तो रखा ही,अब उससे कल बात करूंगी। अब तो किसी ने उसे धोखे से त्यौहार के बहाने पिला दिया ,किन्तु आगे के लिए तो उसे समझाना होगा। आजकल जमाना बहुत खराब है ,पता नहीं कब कौन ,किस रूप में बुरी सोच लिए बैठा हो ?बाहर किसी के कहने से भी वह किसी नशे को हाथ नहीं लगाएगा। ऐसे ही तो धीरे -धीरे आदत बन जाती है। एक -दो बार मजे के लिए ,फिर धीरे -धीरे आदत बन जाती है। उसके पश्चात ,अपनी ही नहीं ,माँ -बाप की जिंदगी पहले बर्बाद होती है।
तुम भी न जाने क्या -क्या सोचने लगती हो ? अब इसमें उसके साथ -साथ हमारी जिंदगी कैसे बर्बाद होगी ?
क्या आप इतना भी नहीं समझते ?अरे, जब नशे की लत उसे पड़ जाएगी तब लोग हमारी परवरिश ,हमारे संस्कारों पर सवाल उठायेंगे ,तब आपको क्या लगता है ? क्या कहने वाले हमें छोड़ देंगे ?यही कहेंगे ,न..... ऐसे ही संस्कार दिए होंगे इसके माता -पिता ने ,यदि ये बिगड़ गया तो ये परेशान होगा ,इसे परेशान देखकर क्या हम खुश रह सकेंगे ? हमारा जीवन भी तो व्यर्थ गया। हम अपने एक बच्चे को भी वो न सिखा सके ,जो कई -कई बच्चों के माता -पिता उन्हें समझा देते हैं।
माता -पिता तो अच्छे के लिए ही सोचते हैं अपने बच्चे को भी अच्छा ही समझते हैं किन्तु सबसे पहले दूसरों को देखने से पहले ,अपने आस -पास देखना चाहिए या फिर अपने अंदर ही झांककर देखें तो शायद ,इतनी परेशानी न उठानी पड़े