Mysterious nights [part 7]

जन्मदिन के पश्चात ,जब दमयंती घर पहुंची तो बेहद प्रसन्न थी। मन ही मन उस अनजान शख्स के विषय में सोच रही थी। न जाने, वो कैसा होगा ? उसने न जाने क्यों ऐसा किया होगा ? कहीं शिवानी की बात सही तो नहीं ,उसने मुझे देखा हो और मुझ पर लट्टू हो गया ,सोचते हुए ,दमयंती आईने के सामने खड़ी हो गयी और विभिन्न मुद्रा बनाते हुए अपने आपको निहारने लगी। काश !वो बाहर आता और आकर ,कदमों में झुककर कहता -दमयंती !ये तुम्हारा आशिक़ तुम पर फिदा हो गया है। मैं इस होटल का मालिक क्या तुम मेरी मालकिन बनना पसंद करोगी ?


मैं शर्म से नजरें झुकाते हुए ,कहती -जी......हाँ.....  तब वो अचानक ही मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे सबके सामने डांस करने के लिए कहता और तब हम दोनों एक -दूसरे की तरफ देखते हुए ,एक -दूसरे को महसूस करते हुए ,एक दूसरे में खो जाते। उस समय दमयंती ने ,अपने हाथों में दुपट्टे को ऐसे पकड़ रखा था जैसे -उसने किसी की बाहें थाम रखीं हों।

वाह ! क्या बात है ?आज हमारी बिटिया आईने में देख ,नाच रही है ,अपनी माँ को देखकर दमयंती ने तुरंत ही दुपट्टे को बिस्तर पर फेंका किन्तु उनकी नजरों से वह भी नहीं बचा। तब वो बोलीं -ये साहब कौन थे ?जिन्हे तूने अभी मेरे आने से बिस्तर पर पटक दिया। देखो ! बेचारे को कहीं चोट तो नहीं लगी। कहते हुए हंसने लगीं और बोलीं -क्या आज कुछ हुआ है ? ये ज़नाब कौन हैं ?

मम्मी आप भी न...... क्या -क्या सोचती हो ?ये कोई नहीं ,मेरा दुपट्टा है ,वो तो मैं अपनी इस ड्रेस को देखकर स्वयं ही नाचने लगी ,कितनी अच्छी लग रही है ?

तभी तो हम इसे लाये हैं ,बहुत ढूंढा ,तब जाकर ये ड्रेस पसंद आई और बताओ !तुम्हारी दावत कैसी रही ?

बहुत बढ़िया ?आज तो मम्मी जैसे कमाल ही हो गया। 

अच्छा ऐसा क्या हुआ ?वे पलंग के करीब रखी कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं। 

होना क्या था ? हम लोग , खाना खा रहे थे ,तभी वेटर हमारे पास केक लेकर आया ,वो इतना बड़ा और महंगा केक था ,उसे देखकर पहले तो मैं घबरा ही गयी और उस वेटर से कहा -मैंने तो कोई केक नहीं मंगवाया ,घबराहट इस बात की भी थी कि मैं इतने पैसे भी साथ लेकर नहीं गयी थी। 

कोई बात नहीं ,तुम्हारे पापा उसके पैसे दे देते। 

नहीं ,पैसे तो पापा ने ही दिए थे किन्तु केक की तो बात ही नहीं थी ,खाने का ही इतना बिल आ गया था।तब मैंने उस वेटर को डांटा कि ये केक तो हमने मंगवाया ही नहीं। तब उसने बताया -यह केक आपके लिए होटल के मालिक ने मुफ़्त में भिजवाया है। 

क्यों ,उसने ऐसा क्यों किया ?उसने सोचा होगा ,सुंदर ,जवान लड़की को प्रभावित करता हूँ नाराज होते हुए बोली -तुम इंकार कर देतीं ,या अपने पापा को फोन करके पैसे उसके मुँह पर मारती। क्या हम केक नहीं खरीद सकते नाराज होते हुए वे बोलीं। 

पहले आप पूरी बात तो सुन लीजिये,मुझे लगता है ,वो उसी दिन पहली बार अपने होटल में आया था ,आज ही मेरा जन्मदिन था। हो सकता है ,इसी ख़ुशी में उसने मुझे उपहार के रूप में केक भेजा। 

कौन है ,वो !तूने पता किया ?दीखता कैसा है ?

वो मेरे सामने नहीं आया ,यदि मिलता तो उसे पैसे दे देती किन्तु वो मिला ही नहीं। अब आप जाइये !मुझे कपड़े बदलने हैं कहते हुए उसने अपनी मम्मी को कुर्सी से उठाया और बाहर की तरफ जाने का इशारा किया। उसका उस ड्रेस को बदलने का मन तो नहीं कर रहा था किन्तु बदलना पड़ा। बिस्तर पर लेटकर नजदीक ही रखी किताब पढ़ने का प्रयास करने लगी किन्तु वो होटलवाली घटना उसे पढ़ने  ही नहीं दे रही थी। तभी मन में विचार आया -न जाने किस विचार से ,क्या सोचकर उसने यह सब किया ?यदि उसे मुझे शुभकामनायें देनी ही थी तो मिलकर सामने आकर कहकर भी तो शुभकामनायें दे सकता था।

रात्रि के अंधियारे में ,उस होटल की रौनक कुछ अधिक ही बढ़ जाती है ,जब वह रौशनी जगमगा उठता ,उस समय यदि कोई अंदर जाता भी है तो उसकी जाँच होती है रातभर उसकी रौनक कुछ और ही होती है। जगतसिंह और हरिराम इस होटल में आते हैं किन्तु आज तक अमर सिंह जी को पता नहीं चला। अमर सिँह जी जानते हैं उनके बेटे आवारागर्दी करते हैं किन्तु ये नहीं जानते थे कि इस होटल में दोनों बहुत दिनों से आ रहे हैं और यहाँ कि रातें बहुत रंगीन होती हैं। पैसा और शराब यहाँ बहता है किन्तु दिन में इसका कुछ अलग ही नजारा होता है।    

 एक दिन,दमयंती मॉल में , कुछ खरीददारी करने गई। उसने बहुत सारे कपड़े और सामान दिया। तभी एक व्यक्ति में उससे जाकर पूछा -क्या आप मेरी, खरीदारी में सहायता कर सकती हैं।

 दमयंती ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा ,लगभग छह फुट का लम्बा गौर वर्ण ,हाथों में सोने की अंगूठियां , एक हाथ में सोने का कड़ा ,स्लेटी रंग की शर्ट ,काली पेंट ,आँखों पर चश्मा, कंधे पर कोट टंगा था ,देखने से किसी बड़े ख़ानदान का अमीर लड़का लग रहा था। उसे देखते ही दमयंती को उस होटलवाले की याद हो आई ,काश !वो ऐसा हो तो.... अपने विचारों को झटका देते हुए ,कठोर स्वर में बोली - क्यों? और किस लिए ?

मुझे किसी के लिए उपहार खरीदना है। 

 देखिए! मेरे पास समय नहीं है, आप जिसके लिए उपहार खरीदना चाहते हैं , उसे साथ में ले आइये !

यह क्या बात हुई ? जिसे मुझे उपहार देना है , उसे चुपचाप ही तो देना है , यदि उसे उसकी पसंद का ही उपहार दूंगा, तो वह बात नहीं बनेगी। देखिए मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूँगा, उसके पीछे-पीछे चलते हुए , बोला। 

दमयंती सोच रही थी -शायद !यह मुझसे बात करने का बहाना ढूंढ रहा है इसीलिए उपहार के बहाने से बातचीत करना चाहता है किंतु जब उसको लगा इसकी बात में थोड़ी सच्चाई है तब वह बोली -ठीक है, मैं आपकी सहायता कर दूंगी , आपको उसे उपहार में क्या देना है ? उसे क्या चीज पसंद है ?

यह तो मैं नहीं जानता। 

मतलब ! उसकी तरफ देखते हुए दमयंती ने पूछा। 

दरअसल बात यह है ,उनकी हमारी मुलाकात एक दो बार ही हुई है।वे अभी इतनी बातें नहीं करतीं हैं। 

कमाल है ,आजकल तो लड़कियां अपने प्रेमी से खूब बातें करती हैं ,मन ही मन सोचा -मुझे क्या ?उसे अच्छी सी और महंगी चीज दिलवाती हूँ। तब वो बोली -उन्हें एक हीरे की अंगूठी भेंट कीजिये !खुश हो जायेंगीं। 

क्या ये सही होगा ?

हाँ -हाँ कहते हुए ,वह जौहरी की दुकान की तरफ बढ़ चली। 

[पिता ने बच्चों के भविष्य को सोचकर ,उनके लिए जो सम्पत्ति जुटाई ,उसका वे लोग सदुपयोग करेंगे या दुरूपयोग करेंगे आखिर रात्रि में ये लोग यहाँ क्या करने आते हैं ?क्या दमयंती और ज्वालासिंह मिलेंगे ?आगे बढ़ते हैं ] 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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