अर्धरात्रि थी, ऐसे समय में, नितिन को महसूस होता है कि दूर कहीं घंटी बज रही है, वह उस घंटी की दिशा में बढ़ता जा रहा है। न जाने कौन उसे अपनी ओर खींच रहा है ? उस घंटी की गूंज लगातार उसको अपनी ओर खींच रही है। उसके माध्यम से उसे कोई अपनी ओर बुला रहा है। वह आगे बढ़ते हुए, अपने कॉलिज के हॉस्टल के पीछे, उसी मिट्टी की झोपड़ी में अपने को पाता है। आज भी वही सन्यासी, वहां पर हवन कर रहा है। उसकी लाल आंखें हैं, वह नितिन को देखता है और मुस्कुराता है और उसे फिर से वहां बैठने के लिए, इशारा करता है ,नितिन चुपचाप उसके सामने बिछे आसन पर बैठ जाता है।
तेरे मन के भाव क्या है? तू क्या चाहता है ? क्या तुझे सौम्या की याद नहीं आती ? तुझे उसने धोखा दिया है,तेरी जगह मैं होता तो उसे कभी क्षमा नहीं करता। क्या तुझे दर्द नहीं होता ? तू कितना बड़ा अभिनय कर लेता है ? उस सन्यासी की बातें सुनकर, नितिन की आँखों से अनायास ही ,झरझर अश्रु बहने लगे। मैं जानता हूँ , आज भी तेरे जहन में उसकी स्मृति समाई है ,तू रो उठता है, इस मन को शांत क्यों नहीं करता ? यह तो तभी शांत होगा, जब उससे बदला ले लेगा।रोने से कुछ नहीं होगा ,इस मन को क्यों जला रहा है ? मैं तेरे साथ हूं, तू जो चाहता है ,कर.......
तुम मेरे लिए सोचने वाले कौन होते हो ? तुम कौन हो ? ऐसा लगता है,जैसे मैंने तुम्हें कहीं देखा है, कहां देखा है ? वह मुस्कुराता है और जोर-जोर से हंसने लगता है। कुछ समझ नहीं आ रहा, तभी हंसते-हंसते उसने हवन कुंड में, सामग्री डाली उसके डालते ही वहां पर, धुआं -धुआं हो गया। वह धुआँ नितिन की आंखों में भर गया , तुम कौन हो ,बताते क्यों नहीं ? तुम क्या चाहते हो ?आँखें मलते हुए ,जबरन ही आँखें खोलने का प्रयास करता है।
जब तक वह धुआँ वहां से छंटता है , तब वहां पर उसे कोई दिखलाई नहीं पड़ता है । अभी भी नितिन की आंखों में जलन हो रही है और उसकी आंखें खुल जाती हैं। वह आँखें फाड़ -फाड़कर देखता है, वह तो अपने बिस्तर पर ही था उसके साथ ही उसके दोस्त थे। यह मुझे क्या हो रहा है ? मेरे साथ कोई ऐसा क्यों कर रहा है ? आखिर वह सन्यासी कौन है ,मुझसे क्या चाहता है ? कुछ समझ नहीं आ रहा। वह चेहरा, देखा हुआ सा लगता है। आखिर कौन हो सकता है ? नितिन और सुमित अभी भी गहन निंद्रा में सो रहे थे नितिन उठकर पानी पीता है और अपने पलंग पर बैठकर सोचने लगता है -इस स्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है ? मेरे फोन पर घंटी भी तो इसी तरह से बजती है, यह घंटी कौन बजाता है ?कौन मुझे अपनी और खींचता है ?अनेक प्रश्न नितिन के मन में घूम रहे थे लेकिन उसके पास, उन प्रश्नों का कोई भी जवाब नहीं मिल रहा था घड़ी में समय देखता है , सुबह के 4:00 हुए थे। इतनी सुबह बाहर भी नहीं जा सकता ,दोबारा सोने का प्रयास किया किंतु नींद नहीं आ रही थी। कुछ देर लेटा रहा फिर वह अपने कमरे से निकलकर, घर के बगीचे में ही टहलने लग गया।
इस घर में सबसे पहले उसके दादाजी ही उठते हैं, लगभग 5:00 बजे होंगे, वे भी उठकर इस बगीचे में पहुंच गए। तू यहां कैसे ? अचानक नितिन को बगीचे में देखकर उन्होंने पूछा।
कुछ नहीं नींद नहीं आ रही थी ,नितिन ने जबाब दिया।
जब मन में कोई परेशानी होती है तो, सबसे पहले वह नींद को ही हर लेती है। सुकून की नींद नहीं आती मुझे बता, क्या कोई परेशानी है ?
नहीं, परेशानी तो कोई नहीं है।
तब क्या कोई बुरा स्वप्न देखा ?
आपको कैसे मालूम ?
इसमें मालूम करने की क्या बात है ?बुरे स्वप्न से भी ,कभी -कभी हमारी नींद खुल जाती है।
हाँ कुछ ऐसा ही समझ लीजिये।
क्या मन में कोई बात है ?जो तुम्हें बार -बार हैरान -परेशां कर रही हो।
पता नहीं ,ये मन की परेशानी है या कुछ और....... ख्यालों में खोते हुए नितिन बोला।
कभी -कभी हमारे स्वप्न ,हमारे ख्याल ,विचारों का ही एक हिस्सा होते हैं ,जिनको हम जागते हुए भी नहीं समझ पाते या फिर कभी -कभी आने वाले कल की सूचना दे जाते हैं।
अपने सपनो पर विचार कर नितिन मुस्कुराते हुए सोचता है ,मेरे मन में तो ऐसा कोई विचार नहीं ,इनसे भविष्य में क्या होगा ?दादाजी भी न कुछ भी बोलते हैं।
अचानक दादाजी बोले -तेरा मित्र रचित की आज तक भी कोई सूचना नहीं मिली ,पता नहीं उसका क्या हुआ होगा ?जिन्दा भी है या नहीं
दादाजी !ऐसा मत कहिये !कहीं तो होगा ही ,आ जायेगा।
क्या आ जायेगा ?दो वर्ष होने को जा रहे हैं,तेरे संग गया था ,तब से उसे देखा ही नहीं।
आप कहना क्या चाहते हैं ?आपको क्या लगता है ?उसे मैंने गायब किया है।
नहीं ,मैं ऐसा नहीं कह रहा किन्तु उसी दिन उसको आख़िरी बार देखा था इसीलिए पूछ रहा था ,कहीं उससे तेरी बात हुई हो या फिर उसने तुझे फोन किया हो।
वो मुझे क्यों फोन करेगा ?अपने घरवालों को फोन करेगा।
वैसे उस दिन तुम लोग कहाँ गए थे ?उन्होंने अपनी शंका का निवारण करने के उद्देश्य से जानना चाहा।
बस रहने दीजिये ,दादाजी !आप तो पुलिसवालों की तरह मुझसे पूछताछ कर रहे हैं ,अचानक ही नितिन क्रोधित होते हुए बोला।
इसमें क्रोधित होने वाली क्या बात है ?मैं तो आराम से बात कर रहा हूँ।
आप बात नहीं कर रहे ,मुझ पर शंका कर रहे हैं ,जैसे मैंने ही उसका खून कर दिया हो।
किसने, किसका खून कर दिया ?वहां आकर नरेंन्द्र जी ने आकर पूछा।
कुछ नहीं ,मैं इससे कुछ बातें कर रहा था और बताओ !तुम कैसे हो ?आज ''होलिका दहन ''का मुहूर्त कब है ,उन्होंने बातों का रुख़ ही बदल दिया।
शाम के साढ़े साथ बजे का बता रहे हैं ,तब वो नितिन से बोले -तुम्हारे मित्र नहीं उठे और तुम इतनी जल्दी कैसे ?तुम तो आठ बजे से पहले उठते ही नहीं थे।
बहुत दिनों पश्चात ,आया हूँ ,नींद नहीं आ रही थी ,जल्दी ही आँख खुल गयी। कल रंग के पश्चात हम लोग चले जायेंगे ,चलकर उन्हें उठाता हूँ। नितिन वहां से किसी बहाने से जाना चाहता था ,तभी उसके दोनों मित्र भी आ गए और बोले -तू यहाँ है ,आज तो बड़ी जल्दी उठ गया। क्या? अंकल जी ,को दिखाने के लिए सुबह उठा है कहते हुए हंसने लगे।