Jadui ghoda

 सरपट दौड़ता,हिरणिया कुलांचे भरता। 

 कभी ठहरता सा, तो कभी उड़ जाता। 

 कभी उड़ ,आसमानों की सैर कराता।  

 कभी धरा को छू ,प्रकृति में खो जाता।



 कभी अनजान,अज़नबी दुनिया में होता। 

 रहस्य्मयी पाताल के रहस्यों में खो जाता। 

  बादलों में छुप,'चांदनी' का पता लगाता। 

 पहुंचता कभी अंधकूप में,ढूंढ़ ख़जाने लाता।  

 

दौड़ता बैरागी 'मन रूपी'जादुई घोड़ा''। 

लोेहपथ गामिनी संग, तीव्र दौड़ लगाता।

वह पहुंचे, वहां ,जहां न पहुंच पाए, रवि !

मन बावरा पहुंचें वहां ,कहलाये वो कवि !


 कवि के हृदय पर बिन लगाम ही,टाप लगाए।

 पंखों बिन, कल्पना की ले उड़ान!उड़ता जाए। 

मन आये तो राजा -रानी के सपनों में खो जाये। 

जी चाहता तो.आधुनिकता के रंगों में रंग जाये। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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