सरपट दौड़ता,हिरणिया कुलांचे भरता।
कभी ठहरता सा, तो कभी उड़ जाता।
कभी उड़ ,आसमानों की सैर कराता।
कभी धरा को छू ,प्रकृति में खो जाता।
कभी अनजान,अज़नबी दुनिया में होता।
रहस्य्मयी पाताल के रहस्यों में खो जाता।
बादलों में छुप,'चांदनी' का पता लगाता।
पहुंचता कभी अंधकूप में,ढूंढ़ ख़जाने लाता।
दौड़ता बैरागी 'मन रूपी'जादुई घोड़ा''।
लोेहपथ गामिनी संग, तीव्र दौड़ लगाता।
वह पहुंचे, वहां ,जहां न पहुंच पाए, रवि !
मन बावरा पहुंचें वहां ,कहलाये वो कवि !
कवि के हृदय पर बिन लगाम ही,टाप लगाए।
पंखों बिन, कल्पना की ले उड़ान!उड़ता जाए।
मन आये तो राजा -रानी के सपनों में खो जाये।
जी चाहता तो.आधुनिकता के रंगों में रंग जाये।