नितिन ,परीक्षाओं से पहले अपने घर ,अपने परिवार से मिलने जाता है ,और साथ में अपने दोस्तों को भी ले जाता है। सुमित ,नितिन के परिवार ,उन लोगों के व्यवहार ,उनके अपने बेटे नितिन के प्रति प्रेम को देखकर भावुक हो उठता है। वह नितिन की मम्मी के खाने के प्रशंसा से करता है किंतु नितिन को लगता है कि वह झूठी प्रशंसा कर रहा है। तब अपने कमरे में आकर, उससे कहता है -तुझे यह सब नहीं करना चाहिए।क्योंकि अब तक तो दोनों ही,हंसी -मजाक ही कर रहे थे।
नहीं, यार !मैं सच में कह रहा हूं,वह गंभीर होते हुए बोला - इतना साधारण, स्वादिष्ट और सात्विक भोजन मैंने वर्षों पश्चात किया है। सच में ही, बहुत अच्छा लगा। मैं झूठ नहीं बोल रहा था, मुझे तो याद भी नहीं पड़ता, मैंने कब अपनी मां के हाथ का भोजन खाया है ? जब से होश संभाला है, नौकरों के हाथ का भोजन कर रहा हूं, और परिवार में कभी साथ में बैठकर, हमने भोजन किया है यह तो स्मरण ही नहीं पड़ता। सच यार ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं मुझे तेरे घर का माहौल, बहुत ही अच्छा लगा। यहां बड़ों का सम्मान है, छोटों से प्यार है , मां के आशीर्वाद के रूप में स्वादिष्ट भोजन है और जीवन को क्या चाहिए ? यूं तो इंसान की इच्छाएं बहुत है, कभी इंसान संतुष्ट नहीं होता किंतु ऐसा परिवार में, एकजुट प्यार से रहना, अब कम ही देखने को मिलता है।
रोहित भी कहता है -सच में, तेरा परिवार बहुत ही अच्छा है हालांकि मैं तुझे चिढ़ाना चाहता था और तेरी मम्मी से एक डांट भी लगवाना चाहता था किंतु उनके प्रेम और विश्वास को देखकर, मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। यदि ऐसा परिवार हो, तो बच्चा दूर ही क्यों जाएगा ? उन दोनों की बातें सुनकर नितिन बोला ज्यादा भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। दो दिन पश्चात होली है , चलो ! तुम लोगों को बाजार घुमा कर लाता हूं।
अभी थोड़ा आराम तो कर लें कहते हुए , रोहित बिस्तर में पसर गया।
तभी कुछ सोचते हुए रोहित बोला -नितिन ! ये तुम्हारी नौकरानी यहां कबसे काम कर रही है ?
तुझे क्या लेना ?यहां ऐसा कुछ भी मत सोचना ,यहां के लोग जितने सह्रदय, हैं उतने ही कठोर भी।
तू कुछ ज्यादा नहीं सोचने लगा है ,मैं तो सिर्फ उसके विषय में पूछ रहा था।
वो सब तो ठीक है,किन्तु मैं तो वैसे ही पूछ रहा था ,कि तूने कभी उससे दोस्ती नहीं की।
तू जानता नहीं, उस समय तो ये मम्मी का लाडला बेटा था कहते हुए हंसने लगा ,उस समय तो ये वैसे भी कुछ नहीं सोच सकता था ,ये तो जवान ही हॉस्टल में आकर हुआ है ,वहां जाकर इसे पता चला कि ये भी मर्द है।
चुप करो !तुम्हारी किसी भी हरकत से ,घरवालों को नहीं लगना चाहिए कि तुम दोनों वाहियात हो,वे तुरंत ही हथियार लेकर खड़े हो जायेंगे और पूछेंगे -तुमने ऐसे दोस्त बनाये हैं ,आइंदा इन्हें यहाँ मत लाना !मेरे घरवाले अच्छे हैं किन्तु तब तक, जब तक हम भी सही हैं।
क्या हम दोनों ही वाहियात हैं ? उनका अपना बेटा !कहते हुए दोनों हंसने लगे।
इसलिए तो तुम्हें लाना नहीं चाहता था ,जब तक यहाँ रह रहे हो अच्छे बच्चे बनकर रहो !मैंने सोचा था -तुम भी देख लो, घर क्या होता है ?तुम्हें अपने घर गए हुए तो बहुत दिन हो गए होंगे। एक बात और अभी हमारे पास अभी इतने पैसे भी नहीं हैं कि हम इम्तिहान में प्रश्नपत्र निकलवा सकें इसीलिए ही तो हम यहाँ आये हैं इसीलिए आज्ञाकारी बच्चे बनकर रहना। मैं थोड़े मम्मी से थोड़े पापा से निकलवाता हूँ।मेरे घरवालों को इस बात की भनक भी लग गयी तो भूल जाना कि पैसे मिलेंगे।
यार !हम तो अपने आपको ही सोच रहे थे कि हमसे मक्कार कोई नहीं किन्तु लगता है ,तुम भी अब मक्कारी ,बेईमानी में कम नहीं हो ,अपने माँ -बाप को ही चूना लगाना चाहते हो।
इसमें चूना कैसा ?ये मेरा घर है ,मेरे घरवाले हैं।
अच्छा ! तब तू उन्हें सम्पूर्ण सच्चाई बता दे !
कैसी सच्चाई ?तभी नितिन की मम्मी ने कमरे में प्रवेश किया।
तीनों पद्मिनीजी को देखकर घबरा गए,अपने को संभालते हुए नितिन बोला -मम्मी !आप, कैसे आना हुआ ?मुझे बुला लेतीं।
होली पर गुझिया बनाई थी ,उस समय नहीं दे पाई तो इसीलिए ये लेकर आई हूँ यह कहकर उन्होंने गुझियों की प्लेट उनके आगे कर दी।
आंटी ये क्या है ?
यही तो गुझिया है ,क्या तुम लोगों के यहाँ नहीं बनती ?
हमारे यहाँ नहीं बनतीं कहते हुए दोनों एक - एक गुझिया उठा लेते हैं ,वाह !आंटीजी !ये मिठाई तो बहुत अच्छी है।
माँ किसकी है ,नितिन को अपनी माँ गर्व होता है ,अपने दोस्तों के किस्से सुनकर लगता है ,मेरी माँ कितनी अच्छी है ?इसीलिए प्रसन्नता में कह उठता है।
यही तो अफ़सोस है ,कहते हुए रोहित बोला -काश !हमारी माँ ऐसी होती।
सभी की माँ अच्छी होती हैं ,सबका तरीका भी अलग होता है ,जैसे बच्चे भी अलग -अलग स्वभाव और व्यवहार के होते हैं। उनकी माँ अपने हिसाब से अपने बच्चों को पालती है। तब वो नितिन से बोलीं -तुम जरा थोड़ी देर के लिए बाहर आना।
अपनी मम्मी की बात सुनकर नितिन घबरा गया ,कहीं इन्हें कुछ पता तो नहीं चल गया,आप चलिए !मैं आता हूँ नितिन ने जबाब दिया।
कुछ देर पश्चात नितिन अपनी मम्मी के सामने खड़ा था ,उस समय वे उसी की शर्ट के टूटे बटन ठीक कर रहीं थीं। उसे देखकर बोलीं -क्या सब ठीक है ?
मतलब !मैं कुछ समझा नहीं।
इसमें मैंने ऐसा क्या पूछ लिया ?जो तुम समझे नहीं ,मेरा कहना है -'तुम्हारे कॉलिज में सब सही चल रहा है किसी बात की कोई परेशानी तो नहीं।
नहीं ,कोई परेशानी नहीं है घबराते हुए नितिन ने जबाब दिया।
तब तुम्हारे दोस्त किस सच्चाई को कहने की बात कर रहे थे ?अब नितिन समझ गया मम्मी ने उनकी बातें सुन लीं हैं।
ऐसी कोई बात नहीं है ,दरअसल मैं कॉलिज में बहुत बिमार हो गया था और मैंने आप लोगों को बताया नहीं था इसीलिए यहाँ फोन भी नहीं कर पाया। उस समय मुझे आप लोगों की याद बहुत सताती थी और ये दोनों कहते रहते थे -'तुम्हारे घरवालों को तुम्हारी बीमारी के विषय में पता होना चाहिए ,उन्हें बता देते हैं किन्तु मैंने मना कर दिया ,आप लोग नाहक ही परेशान होते और यहाँ दादाजी का भी तो आपको ही ख़्याल रखना पड़ रहा था इसीलिए वो मुझसे कह रहे थे -कि अपने बीमार होने की सच्चाई अब तो अपने घरवालों को बता दे।
अपना सामान एक तरफ रखकर ,वो उसके क़रीब आकर बोलीं -तुझे हमें बताना तो चाहिये था, कुछ ज्यादा परेशानी हो जाती तो..... तभी तो कहूं ,मुझे इतना कमजोर क्यों लग रहा है ?खाने -पीने पर भी ध्यान नहीं गया होगा।
हाँ, वो तो है ,पैसे भी उस बिमारी में खर्च हो गए तो खाता कैसे ?बस, कॉलिज में ही जो रुखा -सूखा बनता है वही खाना पड़ता है ,कभी -कभी तो इतना बेकार भोजन बनता है ,खाने का मन ही नहीं करता।