Mysterious nights [part 4]

 मन ही मन ठाकुर साहब खुश हो रहे थे, चलो ! कहीं से तो बात बनी। जब एक बेटे का विवाह हो जाएगा तो अन्य बेटों के भी रिश्ते आएंगे। अब उन्हें जिंदगी ठीक लगते लगी थी ,मन में नया उत्साह जाग उठा था।  उन्हें एक उम्मीद हो गई थी कि अब मेरे बच्चों का घर भी बस जायेगा और जब उनके सिर पर जिम्मेदारियां आएँगी तो काम भी करेंगे ,बुरी आदतों से भी छुटकारा मिल जायेगा। होशियार और सुंदर लड़की,अपनी समझदारी से मेरे टूटते -बिगड़ते घर को भी संवार सकती है। मुझे लगता है ,श्यामलाल की बेटी भी ऐसी ही होगी। उनकी यह प्रसन्नता कुछ देर तक ही रही, तभी उन्हें चिंता सताने लगी -यदि श्यामलाल को यह पता चल गया कि मेरे बेटे एकदम नकारा हैं , आवारागर्दी में नंबर एक पर हैं। कुछ काम- धाम नहीं करते हैं तो क्या होगा ?


अपने पति को फिर से चिंतित देखकर , सुनैना अपने पति से बोलीं -अब तो सब कुछ ठीक है, अब क्यों परेशान हो रहे हैं ?

इसलिए तो परेशान हो रहा हूँ , कल को यदि श्यामलाल को पता चल गया तो क्या होगा ? वहां तो मैं झूठ बोलकर आया हूं कि मेरे बच्चे व्यापार संभाल रहे हैं।यदि उसे पता चल गया कि ये कुछ नहीं करते सिर्फ बाप के पैसे से आवारागर्दी करते हैं ,तब क्या होगा ? 

जब इतनी बात बनी है, तो आगे भी बनेगी, मैं आपके बच्चों को समझा दूंगी , आप बेफिक्र हो रहिये। 

रात्रि में भोजन के समय, प्रसन्न होते हुए सुनयना अपने बेटों से बोली -तुम लोगों के लिए एक खुशखबरी है , तुम्हारे पापा शहर गए थे, वहां पर उनके मित्र श्याम लाल जी मिले।वे उन्हें अपने घर ले गए , वहाँ पर उनकी बहुत सुंदर बेटी भी मिली उसे देखकर तुम्हारे पापा ने, उनसे तुम्हारे विवाह की बात की है। यह सुनकर चारों बच्चे अत्यंत प्रसन्न हुए , 'जगत सिंह' तो जैसे हवा में ही उड़ने लगा क्योंकि वही सबसे बड़ा था। तभी सुनयना बोली- किन्तु तुम्हारे पापा ने,तुम्हारे लिए उनसे एक झूठ बोला है। 

यह सुनकर, हरिराम के तेवर बदल गए और बोला -उनसे हमारी बुराई ही की होगी, एक रिश्ता हाथ आया था मुझे लगता है वह भी हाथ से निकल गया।

तुम पूरी बात तो सुन लो ,भाई !बलवंत बोला -उन्होंने झूठ बोला है ,सच नहीं।  

चुप रहो ! हम तुम्हारे माता-पिता हैं ,कोई दुश्मन नहीं, जब उन्होंने पूछा -तुम्हारे बच्चे क्या काम करते हैं ?कोई भी बाप किसी नाकारा को तो अपनी बेटी नहीं सौंपेगा ,सबसे पहले यही पूछेगा -लड़का क्या करता है ?तुम्हारे पापा ने तुम्हारे लिए यह झूठ बोला है,कि बच्चे व्यापार संभाल रहे हैं,  मेरे बच्चे इतना पढ़ तो नहीं पाए किंतु मेरा हाथ बंटाने के लिए, वह सब संभाल रहे हैं। यह सुनकर, उन चारों ने राहत की सांस ली। तुम जानते हो ,उनकी बेटी विदेश में पढ़ रही थी ,बहुत ही संस्कारी  भी है। 

 किंतु इन सब में बलवंत को कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह बोला -पापा को, यह सब झूठ नहीं बोलना चाहिए था। यह तीनों तो कुछ भी नहीं करते। कल को यदि उन्हें पता चल गया, तो क्या होगा ? रिश्ता टूट जाएगा, चार जगह बदनामी और होगी।

वही तो मैं तुम्हे समझाना चाह रही थी -कि अब तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां को समझ लेनी चाहिए , इससे पहले कि वह लोग तुम्हें देखने आएं  और बातें तय हों , हो सकता है , गांव का ही कोई तुम्हारी बुराई भी कर दे ! तब क्या होगा इसीलिए दिखाने के लिए ही सही,अब काम तो संभालना ही होगा। मैं चाहती हूं, उन लोगों के आने से पहले ही काम संभाल लो ! इसी में तुम लोगों की भलाई है। 

विवाह तो भाई का होना है ,अभी मेरा विवाह तय नहीं हुआ है ,वो अपनी जिम्मेदारी संभाले ! हरिराम ने जवाब दिया। 

यह क्या बात हुई ? काम तो तुम सभी को संभालना है , सुनयना ने इस बात को सुना और सोचने लगी -बात तो यह सही कह रहा है, किंतु तभी उसे समझाते हुए बोली -जब ''जगत सिंह'' का विवाह होगा, तो उसके  विवाह में बहुत सारे रिश्तेदार और मेहमान भी आएंगे। हो सकता है, लड़की वालों की तरफ से, उनके भी रिश्तेदार आएंगे और जब देखेंगे कि इसके अन्य भाई भी जिम्मेदार हैं,कमाकर खा रहे हैं ,अपने'' पैरों पर  खड़े हैं '' तो हो सकता है साथ के साथ तुम लोगों का विवाह भी तय हो जाए या बात चले।  विवाह की तो तुम चारों की ही उम्र हो गई है तो अब तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों को संभालना ही होगा। कल अपने पिता के पास जाकर अपना-अपना काम पूछ लेना और समझदारी से कार्य करना ताकि उन्हें अपने झूठ बोलने का पछतावा न हो।  तुम जानते नहीं हो ,हमारे गांव में, पहली बार विदेश से अंग्रेजी पढ़ी हुई, सुंदर बहू आएगी। अपने पुत्र की बलाऐं  लेते  हुए  बोली -जगत सिंह ! तेरे तो भाग्य खुल गए,पहली बार रिश्ता आया ,वो भी विदेशी बहु का। 

माँ की बातें सुनकर 'जगतसिंह' का ह्रदय गदगद हो उठा।

 अगले दिन तीनों भाई, अपने पिता के पास पहुंच गए, अब उनके मन में एक नई आकांक्षा जाग उठी थी उन्हें लग रहा था, अब जीवन को उचित दिशा मिली है ,अब हमें आगे बढ़ना ही होगा। अमर प्रताप सिंह जी, जानते थे ,उनकी पत्नी बहुत ही होशियार है ,वह अपने पुत्रों को ठीक से समझा लेगी ,हुआ भी ऐसा ही, अगले दिन तीनों अमर प्रताप सिंह के सामने जाकर खड़े हो गए, और बोले -हमें हमारा काम समझा दीजिए। 

यह देखकर अमर प्रताप सिंह जी आश्चर्य चकित हो उठे ,उन्हें लग रहा था ,सुनयना को , बच्चों को समझाने में अभी दो -चार दिन लग ही जायेंगे किन्तु ये बात इतने शीघ्र असर करेगी ,इसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी,तब वो बोले -मैं सबका काम बाँट दूंगा, अब तुम्हें साबित करना होगा, तुम में से कौन सबसे होशियार है ?कौन अत्यधिक जिम्मेदार है ? ताकि उसको मैं, संपूर्ण कार्य सौंप कर निश्चिंत हो जाऊं।

ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी, बहुत ही प्रसन्न थे, विशेष रूप से अपनी सुनयना से, जिसने ऐसा कार्य कर दिखाया था, जो आज तक नहीं हुआ था। वे  तो हतोत्साहित होकर ,गांव छोड़कर शहर चले गए थे। प्रसन्न होते हुए सुनयना के समीप आए और बोले -तुमने यह कैसा जादू किया ? बच्चे, लाइन पर आ गए। 

मैंने क्या किया ? सुनैना अनजान बनते हुए बोली। 

तुमने ऐसी कौन सी घुट्टी पिलाई , कि बच्चे काम करने के लिए तैयार हो गये , आज सुबह-सुबह मेरे समीप  आकर कह रहे थे -कि हमें क्या करना है ?बता दीजिए !

मैंने कुछ भी नहीं किया, शुरुआत तो आपने ही की थी ,मैंने तो बस उन्हें समझाया था। उनके मन में जीवन को नए तरीके से देखने का, अंदाज बतलाया था , उनके जीवन में नई इच्छाएं जगाई थीं। 

काश! यह कार्य हम पहले कर पाते, तो इतने परेशान ना होते।

 हर चीज का एक समय होता है, झूठ बोलकर भी तो यह कार्य नहीं करवाया जा सकता था। अब वो भी इस  जीवन में आगे बढ़ना चाहते होंगे ,इसलिए उत्साहित हो रहे हैं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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