आज ही मैंने एक लेख पढ़ा कि किसी छोटी बच्ची के साथ बलात्कार हुआ ,पढ़कर बहुत ही दुःख हुआ ,इस दुनिया में कितने वहशी लोग हैं ? एक छोटी बच्ची तक को नहीं छोड़ते ,उस बेचारी बच्ची पर, उस इंसान को क्या तनिक भी तरस न आया होगा ? तब अंदर से आवाज आई ,यदि उसे तरस आता तो वो ऐसी हरकत ही क्यों करता ?
हे ,ईश्वर ! तेरी बनाई इस दुनिया में भांति -भांति के लोग हैं , किसे दोष दें ? किससे शिकायत करें ?न जाने कब ,कौन शैतान के रूप में बैठा नजर आ जाये ? बाहरी रूप तो सभी का एक जैसा ही होता है किन्तु यहां विचारों, सोच या फिर परवरिश का अंतर् है। जिस माँ ने उसे पैदा किया होगा ,उसने ये तो नहीं सोचा होगा कि वह किसी शैतान को पैदा कर रही है या उसकी संतान बड़ी होकर' राम' निकलेगी या फिर 'रावण' !वो नहीं जानती।
हमारे देश की परम्परा में, महिलाओं का अपमान नहीं होता था ,उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है ,तभी उन्हें 'अन्नपूर्णा' ,'लक्ष्मी ',सरस्वती ,के नाम से सम्मान दिया जाता रहा है किन्तु विपरीत परिस्थिति में उसमें ही' दुर्गा' और' काली 'के रूप भी देखा गया है। ऊपर के नाम देकर,उस नारी को कमजोर नहीं समझा गया था ,न ही उससे सहानुभूति जतलाई गयी थी बल्कि ये उसके लिए आदरणीय शब्द रहे। महिलाओं ने भी ,अपने उस सम्मान को बनाये रखने के सतत प्रयास भी किये ,अपने प्रेम ,त्याग ,सहयोग जैसे कार्यों से किन्तु जबसे बाहरी लुटेरे भारत में आये। तब औरत के उस स्तर का पतन होने लगा। महिलाओं की स्थिति बद से बदत्तर होती चली गयी।
उनकी दृष्टि में औरत वस्त्रों और गहनों से सजी हुई नाजुक, कोमल, गुड़िया कहो !या फिर पुतली मात्र थी ,भोग -विलास की वस्तु से अलग उसका कोई वजूद नहीं था।लड़कियों को उठाकर ले जाना ,ये उनके बाएं हाथ का कार्य था। किसी को प्रसन्न करने के लिए ,महिला को उसके सामने भोजन की तरह परोस देना, ये तो आजकल भी गुपचुप तरीके से हो रहा है। उनके लिए वो महिला सिर्फ स्वार्थ पूर्ति की वस्तु मात्र रह गयी है।
इस संसार में , हमेशा से ही ,दो तरह के इंसान रहे हैं। सकारात्मक सोच वाले प्राणी जो नारी को सम्मान की दृष्टि से देखते ,उसे पुज्य्नीय समझते ,तो दूसरे वे जिन्हें महिला का तन ही नजर आता है। उनके व्यवहार से उनकी ''मानसिक विकृति'' का आभास होता है। आजकल कलयुग चल रहा है ,कलयुग में ,ऐसे जीव बहुतायत मात्रा में घूम रहे हैं। वे कोट -पेंट में भी हो सकते हैं ,कुर्ते -पायजामे में भी ,या फिर किसी जरूरतमंद के रूप में ,उस जीव की कोई पहचान नहीं है। उसके मन की विकृति कब बलवती हो उठे ,पता ही नहीं चलेगा ,कब वो अपने शिकार को दबोचेगा ? उसके चेहरे से पता नहीं चल सकता। ये कोई दूर का ही नहीं ,बल्कि अपना ही कोई सगा भी हो सकता है ,किसी दफ्तर अथवा विद्यालय में शिक्षक का रूप धारण किये भी हो सकता है ।
कौन माँ चाहेगी ?कि उसका बेटा ,बड़ा होकर कोई 'गुंडा' या फिर' बलात्कारी 'बने किन्तु इस कलयुग में संस्कार भी एक कोने में पड़े सिसक रहे हैं ,जब पैदा करने वाले ही' वृद्धाश्रम' में अपने आखिरी दिन व्यतीत कर रहे हैं।आजकल माता -पिता बच्चे को एक चपत भी लगा दें तो आखिर में वो ही सॉरी बोलते नजर आते हैं। क्या इस सबका कारण ,माता -पिता का जरूरत से ज्यादा बच्चों को छूट देना भी हो सकता है। उसकी गलती को गलत कहना और उसे गलती का एहसास भी करवाना चाहिए कि हाँ उससे गलती हुई है।
कुछ महिलाएं ही कहती हैं ,हमें महिला बनाकर ईश्वर ने ही ,हमारे साथ अन्याय किया है ,हमसे पूछा तक नहीं ,किन्तु उन्होंने ये नहीं सोचा -''नारी जीवन के साथ, कितना बड़ा उत्तरदायित्व उनको सौंपा गया है ?''इसमें अन्याय कैसा ?''प्रकृति ने इतना सुंदर रूप दिया ,सृजन की शक्ति दी ,ह्रदय में प्रेमभाव दिया अपनी इस कोमल संरचना में उसने कोई कमी नहीं छोड़ी।'' दुनिया की सबसे बड़ी ताकत उस औरत में ही है ,वो चाहे तो अपने प्रेम से पत्थर को पिघलाकर मोम बना दे !उसमें नवजीवन सृजन की शक्ति दी, फिर भी वो इन पुरुषों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गयी है ,क्यों ? ये स्वयं अपने आपसे पूछे।
यहां प्रश्न बलात्कार क्यों होते हैं ?और इसका क्या कारण है? जो बलात्कार बढ़ रहे हैं। वैसे तो मेरी इस सोच पर आपको हंसी भी आ सकती है और सच्चाई भी नजर आ सकती है। विकृत मानसिकता वाले जीव कलयुग में बढ़ रहे हैं।वैसे देखा जाये तो' रावण' भी ब्राह्मण कुल से था किन्तु उसके कर्मों ने उसे राक्षस बना दिया ,कुछ कुल -परिवार का भी असर होता है क्योकि उसकी माता' कैकसी' राक्षस कुल से थी। जिसका असर उस पर अधिक पड़ा। तभी तो हमारे बड़े -बुजुर्ग बच्चों का विवाह तय करने से पहले लड़की हो या लड़का उनके कुल और ख़ानदान को देखते थे किन्तु आजकल बच्चे आधुनिक हो गए हैं ,इन चीजों को मानते ही नहीं ,जहां भी कोई सुंदर सजीली नार देखी, माता -पिता विरोध के पश्चात भी 'लव मैरिज 'करते हैं। किसको क्या मालूम ?वो लड़की अथवा लड़का किस परिवार से है ?
इस देश से मुगल ,अफ़गान ,अंग्रेज तो चले गए किन्तु लगता है ,अपने कुछ 'बीज' यहां छोड़ गए हैं जिनकी इस कलयुग में बढ़ोत्तरी हो रही है।जो इंसानी रूप में ,''बलात्कारी बम'' के रूप घूम रहे हैं। इनमें न ही इंसानियत ,न ही कोई सद्विचार होते हैं ,ये मौके की तलाश में अपने पंजे छुपाये घूमते रहते हैं। वे हमारे आस -पास किसी भी रिश्ते के रूप में घूमते रहते हैं। उनके लिए क्या बालिका ,क्या युवा ,अथवा वृद्ध महिला ही क्यों न हो ? इसीलिए ही तो हमारे समाज ने ,अपनी इस अमूल्य धरोहर[ नारी ] के लिए कुछ नियम बनाये थे ताकि किसी की कुदृष्टि हमारी इस अमूल्य निधि पर न पड़े वो सुरक्षित रहे किन्तु नारी ने इसे बंधन समझ लिया बात भी सही है -''नारी होना कोई जुर्म तो नहीं ,उसे क्यों डरना है ?डरे वो !जिसके मन में पाप पल रहा है।''
किन्तु नारी ने भी अपना सम्मान खोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ,अपनी गरिमा को बनाये रखने के लिए उसे सोचना होगा ,वो कोई वस्तु नहीं ,उसे अपनी कीमत समझनी होगी। आजकल अर्धनग्न वस्त्रों में वीडियो डाल रहीं हैं ,तब क्या इसमें दूसरे इंसान की गलती है ?भूखे के आगे भोजन परोस रहे हो ,वो भोजन वो प्राप्त नहीं कर सकता ,तब वो क्या करेगा ?अपने समीप जो भोजन उसे मिलेगा ,उससे संतुष्ट होना चाहेगा। ऐसे में पत्नी भी साथ न दे तो बाहर तलाशेगा। ये सब क्यों ?क्या यही '' नारी शक्ति '' है ?
आज ही एक समाचार सुनने में आया ,एक महिला ने अपने प्रेमी संग मिलकर पति को ही मार डाला। क्या ये 'नारी शक्ति 'का रूप है ,वो नारी जो यमराज से अपने पति के प्राण बचाकर लाई थी। एक पति ,अपनी पत्नी की आवश्यकताओं को पूर्ण न कर सका ,तब उसको झूठा दहेज का इल्जाम लगाकर ,उसको सताया गया ,आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया। क्या यही ''नारी शक्ति ''का कलयुगी रूप है ?आजकल तो कुत्ते पालने का चलन बढ़ गया है ,उससे भी प्यार हो जाता है ,उसकी देखभाल और सेवा भी होती है किन्तु आजकल इंसान की कीमत इतनी भी नहीं रही।
परिस्थितियां चाहे कोई भी रही हों ,नारी हो या पुरुष जिसके साथ भी गलत होता है ,उसी को झेलना होता है। दर्द दोनों को ही होता है ,पुरुष भी लोहे या पत्थर का नहीं बना होता ,वो हमारे पिता ,भाई ,बेटा ,चाचा इत्यादि रिश्ते भी हैं ,हर पुरुष गलत नहीं होता किन्तु सचेत रहने की आवश्यकता है ,हमारे आसपास ऐसे लोग न मंडराए जो हमारे परिवार में हमें, हमारी बेटी ,बहन को हानि पहुंचा सकें ,पुरुष की नियत पहचानने की यह शक्ति भी नारी के पास ही है किन्तु तब भी भेड़िये घात लगाए रहते ही हैं।
या तो उन्हें इतना ड़र हो कि उसने कुछ भी गलत किया तो वो बचेगा नहीं ,ये कलयुग है ,नारी का संघर्ष जारी रहेगा।''बलात्कार'' ज़हर की तरह जीवन को बर्बाद कर देता है,या तो उस लड़की को मौत मिलती है या फिर जीवनभर का दर्द ! जिसके कारण उसे अपने नारी होने पर शर्मिंदगी महसूस होती है दानव और देव पहले भी थे आज भी हैं , इनका इलाज एक ही है ,''बलात्कार'' का दंड मौत !