लंबे घुंघराले बाल, आँखें नशीली ,कद -काठी पहले से अच्छी हो गयी है ,देखने से ,पहनावे से, किसी रईस परिवार की बिगड़ी हुई औलाद लग रहा रहा था किंतु माँ कब ऐसी दृष्टि से, अपने बच्चों को देख पाती है ,नितिन को, अपने सामने देखकर वह उसके गले से लिपट गई अचानक उनकी आंखों के आंसू बहने लगे वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह क्यों रो रही है ? इतने दिनों पश्चात, उसका बेटा आया है,उसकी ममता प्रसन्नता में, आँखों के रस्ते बह चली। पद्मिनी जी , रोना तो नहीं चाहती थीं ,पर आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे,अपने आप निकलते जा रहे थे। जब मन थोड़ा हल्का हुआ तो कहने लगीं -बहुत दिनों पश्चात आया है , क्या तेरा घर आने का और अपने परिवार से, अपने मां-बाप से मिलने का मन नहीं करता।
खोया -खोया सा नितिन अपनी मां से कहता है -मैं वहां पढ़ाई के लिए गया हूं , अच्छे नंबर नहीं आएंगे, तो कल आप लोग भी शिकायत करेंगे।
चल बैठ जा!मैं तेरे लिए, पानी मंगवाती हूँ।
मैं अभी कपड़े बदल कर आता हूं, कहते हुए नितिन अपने कमरे की तरफ मुड़ गया।
तभी पद्मिनी जी को बाहर खड़े दो लड़के दिखलाई दिए ,वो उन्हें देखने के लिए बाहर आईं और बोलीं -तुम लोग कौन हो ?
नमस्ते आंटीजी ! मैं सुमित ! नितिन का दोस्त !
तुम्हें पहले तो कभी नहीं देखा ,और तुम दूसरे की तरफ देखते हुए बोलीं -क्या तुम भी...... ?
जी ,मेरा नाम रोहित है ,हम लोग साथ....... में ही
अरे !तुम अभी तक वहीं खड़े हो ,अंदर आओ ! तुम्हें तो मैं भूल ही गया था। अंदर आते हुए ,रोहित बोला -जब तुझे हमें भूल ही जाना था ,तो साथ लेकर क्यों आया ?हमारी बेइज्जती करने के लिए।
बेइज्जती उनकी होती है ,जिनकी कोई इज्जत हो ,तुम्हारी इज्जत तो तुम्हारे घर में भी नहीं है।
आंटी जी !आप देख रहीं हैं ,ये अपने घर बुलाकर हमारी बेइज्जती कर रहा है। पद्मिनी जी समझ गयीं ,ये नितिन के दोस्त हैं ,तब वो बोलीं -बेटा ! तुम लोग बैठो ! संतोष !जरा पानी लेकर तो आना।
हमारा लड़का कितना बदल गया है ? पहचान में ही नहीं आ रहा पद्मिनी जी अपने पति से बोलीं ।
वहां दोस्तों से मिलता होगा, वहां का रहन-सहन अलग ही होता है कुछ बदला नहीं है बहुत दिनों पश्चात देखा है इसलिए ऐसा लग रहा है नरेंद्र जी ने जवाब दिया।
तौलिए से मुंह पोंछते हुए नितिन बाहर आया और बोला -मम्मी !दादाजी कहीं दिखलाई नहीं दे रहे, वे कहां है ?
वे पीछे बगीचे में, धूप में बैठे हुए हैं डॉक्टर ने उन्हें धूप में विटामिन डी लेने की सलाह दी है एक घंटा वहीं बैठे रहते हैं।
वैसे और कोई दिक्कत तो नहीं है, अब ठीक है।
हाँ ,अब ठीक हैं, तेरे दादाजी भी तो कह रहे थे -कि बहुत दिनों से पोते का मुख नहीं देखा, इसीलिए हमने सोचा, अबकी बार तो तुम्हें बुला ही लेंगे। तब तक पद्मिनी जी ने भोजन लगा दिया था नितिन खाना खाने के लिए बैठ ही रहा था। तभी उसके पिता बोले -जा ,अपने दादाजी को भी बुला ला ! तेरे दोस्त कहाँ हैं ?
वे अभी नहाकर तैयार हो रहे हैं, कहकर नितिन अपने दादाजी को बुलाने के लिए बाहर निकल गया।
नितिन पीछे बगीचे में जाता है, और कहता है - दादाजी !कहते हुए उनके चरणस्पर्श करता है।
उसे देखकर उन्हें, खुशी होती है,बड़े दिनों में आया ,क्या पढ़ाई का ज्यादा बोझ आ गया है ?
नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,कॉलिज में भी कुछ न कुछ लगा ही रहता है।चलिए ! भोजन कर लीजिये कहते हुए उनकी कुर्सीं को पकड़कर आगे बढ़ता है। उनके मन में जो इतने महीनों से जो एक प्रश्न उभर रहा था अब नितिन को देखकर ,उसको जानने की इच्छा बलवती हो जाती है। अभी वह चुप थे, उन्होंने अपने व्यवहार से कुछ भी ऐसा जाहिर नहीं किया क्योंकि अभी-अभी तो आया है, यह सोचकर, शांत रहे।
सभी एक साथ भोजन करने बैठ जाते हैं ,खाने में ,कढ़ी -चावल ,करारी भिंडी ,और आलू जीरा की सब्जी थी। सुमित और रोहित को भूख तो लगी थी किन्तु मांसाहार में कुछ नहीं था। उस भोजन को देखकर उन्होंने नितिन से पूछा -क्या तू पहले ये सब खाता था ?नितिन ने तरफ आँख निकाली और चुपचाप खाने का इशारा किया।
दोनों भोजन करने लगे ,तभी सुमित बोल उठा -आंटीजी ! क्या ये भोजन आपने बनाया है ?
हाँ ,क्यों अच्छा नहीं लगा ?
बहुत दिनों पश्चात ,ऐसे परिवार के साथ ,माँ के हाथ का भोजन खाने को मिल रहा है ,खाना बहुत ही अच्छा है। नितिन ने सोचा ,ये मम्मी को प्रसन्न करने के लिए झूठी प्रशंसा कर रहा है।
तब रोटी परोसते हुए, पद्मिनीजी ने नितिन से पूछा -तूने इतने लंबे बाल क्यों बढ़ाये हैं ? क्या वहां पर बाल नहीं काटते ,क्या वहां नाई नहीं है,ये बाल कटवाता क्यों नहीं है ?
वहां इसे पढ़ाई में समय ही कहां मिलता होगा ? इससे पहले कि वह जवाब देता नरेंद्र जी ही बोल उठे। वह समझ रहे थे कि आजकल का बच्चा है , थोड़ा दोस्ती बाजी में, फैशन में लड़के बाल बढा ही लेते हैं किंतु उनकी नजर में भी यह बात भी थी कि बेटे में बहुत बदलाव आया है। वे कुछ और भी समझ रहे थे, उनका अनुभव कह रहा था -कि यह कुछ नशा वगैरहा भी करने लगा है किंतु पत्नी के सामने कुछ कहना नहीं चाहते थे। कहीं वह दुखी न हो जाए, एकांत में उससे बात करूंगा फिर सोचा -हो सकता है ,ये मेरी गलतफ़हमी भी हो सकती है।
एकांत में, बात करने की इच्छा तो इस परिवार में से एक व्यक्ति को और भी थी, वह उसके दादाजी थे। तभी पद्मिनी जी बोलीं -कुछ कमजोर सा लग रहा है, क्या कुछ खाता नहीं है ? वहां वे लोग, कैसा खाना बनाते हैं , छात्रों को कैसे भोजन परोसते हैं ?साफ -सफाई का ख्याल भी रहता है या नहीं ,सब के बारे में, वह बहुत कुछ पूछ लेना चाहती थीं।
आंटीजी !आप नाहक ही चिंता कर रहीं हैं ,ये वहां खूब खाता -पीता है ,कहते हुए रोहित ने नितिन की तरफ मुस्कुराकर देखा।
पहले उसे भोजन करने तो दो ! तब अपने प्रश्नों का जवाब भी ले लेना, नरेंद्र जी ने पद्मिनी जी को शांत करते हुए कहा।
भोजन करने के पश्चात ,सभी अपने -अपने कमरों में चले गए , सुमित और रोहित दोनों ही नितिन के कमरे में ठहरे थे , उन्हें कोई आपत्ति भी नहीं थी कॉलेज में भी तो व एक साथ ही रहते हैं। कमरे में पहुंचते ही नितिन ने, दोनों को डांटना आरंभ किया। तुझे बड़ी मां के भोजन की याद आ रही थी , इतनी झूठी तारीफ कर रहा था,उन्हें पता चल जाता कि तू झूठ बोल रहा है तब वे क्या सोचतीं ?