अभी तक आपने पढ़ा, अपनी परेशानियों से परेशान होकर ,थोड़े सुकून की तलाश में ,ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी, अपने शहर के होटल में आते हैं। वहीं पर उनकी मुलाकात, अपने दोस्त श्यामलाल से होती है और श्यामलाल इतने दिनों पश्चात,अपने मित्र से मिलने पर बहुत खुश होता है और उन्हें प्रेम से, अनुग्रह करके अपने घर ले जाता है। श्याम लाल की एक ही बेटी है,जो विदेश में पढ़ रही है ,ऐसा श्यामलाल जी ने उन्हें बताया। जब वे लोग श्यामलाल जी की कोठी में पहुंचे, तो वहां पर उनकी पत्नी और एक -दो नौकर के सिवा वहां कोई नहीं था। जब वो लोग,चाय -नाश्ता कर रहे थे,तब उन्हें बाहर कोई आता नजर आया किन्तु वो अंदर नहीं आया।
कौन अंदर आया है ? यह देखने के लिए श्याम लाल जी की पत्नी शकुंतला देवी बाहर जाती हैं , कुछ समय पश्चात, अपने संग एक बहुत ही सुंदर लड़की को लेकर आती हैं।
उस लड़की की सुंदरता देखकर, ठाकुर साहब हतप्रभ रह गये , पतली -दुबली, छरहरे बदन की वह लड़की काले रंग के सूट में, बहुत प्यारी लग रही थी। अंग्रेजी स्टाइल से उसके बाल कटे हुए थे। साधारण और सादगी की मूरत लग रही थी , उसने इतनी अधिक गहने भी नहीं पहने थे, जैसे उसकी मां शकुंतला देवी ने पहने हुए थे। गले में एक सोने की पतली सी चेन, और हाथ में सोने की एक अंगूठी थी। शकुंतला देवी उससे बोली -आप ठाकुर साहब हैं, तुम्हारे पापा के अच्छे दोस्त हैं। उनके इतना कहते ही, उस लड़की ने ठाकुर साहब की तरफ हाथ जोड़कर अभिवादन किया।
तब शकुंतला देवी बोली -यह हमारी बेटी, दमयंती है , यही बाहर रह कर पढ़ रही है।
सुंदरता के साथ-साथ, इसने संस्कार भी पाए हैं, आपकी बहुत ही प्यारी बच्ची है। आओ, बेटी बैठो ! दमयंती आगे बढ़कर अपने पिता के समीप बैठ गई , तब शकुंतला जी बोलीं -इसे अपने पिता से बहुत प्रेम है , जब भी आती है अपने पिता के साथ ही रहती है,इनकी लाड़ली है।
और बताओ बेटी, आजकल क्या कर रही हो ?
तब वह बहुत ही महीन सी आवाज में बोली -मैं अंग्रेजी में मास्टरी कर रही हूं।
बहुत अच्छी बात है, तब ठाकुर साहब, श्यामलाल जी से बोले -इसके लिए कोई लड़का देखा है, इसका विवाह करने का इरादा है या नहीं।अब तो बिटिया विवाह योग्य हो गयी है।
विवाह तो हम करना चाहते हैं, किंतु ये कह रही है, पहले मेरी पढ़ाई समाप्त हो जाए ,उसके पश्चात ही मैं विवाह करूंगी।
यह तो अच्छी बात है। मन ही मन श्यामलाल जी सोच रहे थे , यदि मेरे बच्चे आगे पढ़ गए होते और कुछ कार्य कर रहे होते आज मैं श्यामलाल से उसकी बेटी का हाथ मांग लेता लेकिन मैं अब इसका'' हाथ किस मुंह से मांगूंगा ''जब यह स्वयं पूछेगा कि मेरे बेटे क्या कर रहे हैं ?
उन्होंने सोचा ही था, श्यामलाल को जैसे पता चल गया और तुरंत ही पूछ बैठा -तुम्हारे तो चार-चार बेटे हैं, सभी विवाह लायक होंगे उनका विवाह करने का इरादा है ,उनमें से किसी के लायक मेरी बेटी हो तो बताना !
श्याम लाल जी की बात सुनकर, अमर सिंह जी भावुक हो उठे और बोले -मेरे चार बेटे हैं किंतु तुम्हारी बेटी उन चारों पर भारी है। पुराने रईस हैं, पैसे का अहंकार चढ़कर बोलता है। तभी उन्होंने अपने आपको संभाला और बोले -कम ही पढ़े हैं, स्कूल तक ही गए थे। स्कूल पास करते ही, मैंने उनसे कह दिया -इतनी बड़ी संपत्ति है, अब मुझ अकेले से संभलती नहीं है, अब तुम्हें ही संभालना होगा। मेरे ही कारण वे लोग आगे नहीं बढ़ पाए , वरना पढ़ने में बहुत होशियार हैं। अब आप ही बताइए ! चार-चार बेटे होने के पश्चात भी, क्या मैं बुढ़ापे तक कार्य ही करता रहूंगा। अब तो सोच रहा हूं -समय से ही उनका विवाह कर दूंगा कोई अच्छी सी लड़की मिल जाएगी जो घर संभालने के साथ-साथ उनका जीवन भी संवार दे।
''नेकी और पूछ पूछ'' फिर किस चीज का इंतजार है, घर- परिवार अपना देखा भाला है, हम आपस में दोस्त भी हैं, हमारी बेटी तो पढ़ी-लिखी है ही , अब देख लो ! इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हो तो हम तैयार हैं।
मन ही मन ठाकुर साहब सोच रहे थे , घर से बाहर शांति ढूंढने आया था किंतु यहां तो लक्ष्मी मिल रही है। यदि यह हमारे घर आ जाए तो मेरे बच्चों का जीवन संवर जाएगा। अभी तक मेरे घर में कोई बहू नहीं आई है यदि एक का विवाह हो गया , तो और बच्चों के भी रिश्ते आ जाएंगे और घर फिर से भरा -पूरा हो जाएगा। उनकी एक उम्मीद ने हीं, उनकी उमंगों को जगा दिया और प्रसन्न होते हुए बोले -तेरी चार बेटी भी होती तो मैं चारों बेटों के लिए, तेरी बेटी ही चुनता। अच्छा ,अब मैं चलता हूं , घर पर उनकी मां से भी तो बात करनी होगी। बात करके मैं तुम्हें फोन करता हूं, तुम्हारी बेटी मुझे पसंद है। उठकर ठाकुर साहब बाहर निकल गए वे मन ही मन खुश हो रहे थे जिनके कारण , उनका मन उदास था , अब उस मन में प्रसन्नता भर गई थी।प्रसन्नता उनके चेहरे से ही झलक रही थी। होटल पहुंचकर उन्होंने, तुरंत ही, घर जाने का निर्णय ले लिया।
प्रसन्नमुद्रा में ठाकुर साहब अपने घर पहुंचे, और खुश होते हुए अपनी पत्नी से बोले -तुम्हारे बेटों का रिश्ता आया है। लाओ !मिठाई खिलाओ !
सुनयना जी ,अंदर गयीं, गुड़ और लड्डू लेकर बाहर आईं और बोलीं -क्या बात है ?ठाकुर साहब !बड़े खुश नजर आ रहे हो, यहाँ से जब गए थे ,तो उदास नजर आ रहे थे।
तुम हमारा ध्यान भी रखती हो ,हम तो सोच रहे थे -आप हमसे बेपरवाह हो गयीं हैं। क्या तुम हमारे ह्रदय की वेदना को समझ सकीं ?
क्यों नहीं समझूंगी ?आपकी पत्नी हूँ ,अपने पति के दिल की बात नहीं समझूंगी तो और किसके दिल समझूंगी ?इसीलिए आपको शहर जाने दिया ,सोचा- थोड़े दिन अलग रहेंगे तो आपका व्यथित मन सम्भल जायेगा।
सुनयना जी की बात सुनकर ,ठाकुर साहब भी रोमांटिक होकर बोले -तुम्हारे जैसी पत्नी पाकर हम धन्य हो गए ,बस एक दुःख ही सता रहा था कि बच्चे कामयाब हो जाते और इनके विवाह भी हो जाते किन्तु अब लगता है ,मेरी यह समस्या भी दूर हो जाएगी।
[मन के भाव ही तो इंसान को हतोत्साहित कर देते हैं ,और उसकी सोच नकारात्मक हो जाती है ,वह परिस्थितियों से पलायन करने का सोचने लगता है ,जब वही भाव बदल जाते हैं ,तब वही स्थान ,वही दुनिया सुंदर नजर आने लगती है। ]