नितिन ,अपनी ही परेशानियों में घिरा था ,अचानक ही, उसको एक फोन आता है किन्तु उसके पश्चात क्या हुआ ?वह कुछ समझ नहीं पाया ,उसने अपने आपको ,छात्रावास से बाहर पाया। वह जैसे होश में ही नहीं था और जब होश आया तो समझ नहीं पाया ,वह यहाँ कैसे आया ?जब वह छात्रावास के अंदर प्रवेश करता है ,उससे पहले प्रेमनाथ से जानना चाहता है कि क्या उसने ,मुझे बाहर जाते हुए देखा था। प्रेमनाथ ही , ऐसा व्यक्ति है, जो आते- जाते छात्रों पर नजर रखता है और एक रजिस्टर में लिख भी लेता है। वह उस छात्रावास का द्वारपाल है। जब नितिन उससे पूछता है -कि क्या उसने मुझे बाहर जाते हुए देखा था ? उसके प्रश्न पर, वह स्वयं ही आश्चर्यचकित हो जाता है और स्वयं उससे पूछता है - मैंने ,तुम्हें आवाज़ लगाई थी, किन्तु तुमने मेरी बात नहीं सुनी और बाहर चले गए ,वैसे तुम, बाहर क्यों गए थे ?
मुझे तो यह मालूम ही नहीं है, कि मैं बाहर क्यों गया था ? नितिन आश्चर्य और परेशानी से बोला।
शिकायत से बचने के लिए,कहीं तुम ,मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे हो।
नहीं, मैं झूठ क्यों बोलूंगा ? वापस आते हुए भी तो अब मैं तुमसे बात कर रहा हूं ,मुझे तुमसे कुछ छुपाना होता या फिर छुपकर जाना या आना होता तो कोई और साधन भी अपना सकता था।[ उसका इशारा रात्रि में जो लड़के दीवार फांदकर बाहर जाते थे ,उनकी तरफ था ]
नितिन की बातें सुनकर ,प्रेमनाथ को आश्चर्य भी होता है और उसके प्रति सहानुभूति भी होती है। तब वह उससे पूछता है -क्या तुम कभी मीठा खाकर घर से बाहर निकले हो ? यह दिक्कत तुम्हें कब से है ?
मुझे तो याद नहीं पड़ता, मीठा खाने से क्या होता है ,तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?
मेरी दादी कहती थी,कि' मीठा खाकर, घर से बाहर निकलते हैं, तो 'बुरा साया' तुम्हारे पीछे लग जाता है।
यह क्या बकवास है ?' बुरा साया 'क्या होता है ?
'बुरा साया' यानी 'ऊपरी हवा '!
''ऊपरी हवा'' भला मुझे क्यों लगेगी ? तुम यह बेकार की बातें मुझसे मत करो ! क्या मुझे डरा रहे हो ?
तुम्हारी हालत को देखते हुए तो मुझे ऐसा ही लगता है , तुम्हें ऊपरी हवा लग गई है , और जब उस हवा का असर होता है तो इंसान को कुछ भी याद नहीं रहता ,वह क्या कर रहा है ,कहां जा रहा है ? उसे पता ही नहीं चलता। मैंने तो इतना भी सुना है , ऊपरी हवा के दबाव में, आकर आदमी किसी का कत्ल भी कर सकता है।
प्रेमनाथ की बातें सुनकर, नितिन को हंसी आ गई और बोला -तब तो मेरी ऐसी हालत में, यदि तुम मुझे रोकोगे तो मैं तुम्हारा कत्ल भी कर सकता हूं। नितिन की बात सुनकर प्रेमनाथ घबरा गया और बोला -जब भी तुम बाहर निकलो ! तो अपने दोस्तों को बताकर निकलना और अपने साथ लहसुन रखना।[कोई लोहे की वस्तु ,जैसे चाकू !उसने जानबूझकर नहीं कहा ,ये नितिन के लिए खतरनाक भी हो सकता है।]' ऊपरी हवा' का असर कम होगा।
उसकी बातों को नजर अंदाज करके, नितिन छात्रावास के अंदर चला गया। उसके जाने के पश्चात प्रेमनाथ, बहुत देर तक सोचता रहा और डर भी गया,यदि ये बात सही हुई ,तो मेरी जान को भी खतरा हो सकता है क्योंकि उन हवाओं से तो मैं भी नहीं लड़ सकता। तब उसने सोचा - यह बात मुझे प्रिंसिपल साहब को, बतानी चाहिए,या नहीं किंतु वे लोग पढ़े -लिखे हैं ,इन बातों पर विश्वास नहीं करेंगे। हो सकता है , यह उसके साथ आज ही हुआ हो , यदि ऐसा कुछ हुआ भी तो ,मेरा यह डंडा और बंदूक कब काम आएगी ? हो सकता है ,ये बहाना ही कर रहा हो। पहले मुझे इसकी अच्छे से जांच -पड़ताल करनी होगी।
तुम कहाँ गए थे ?नितिन को कमरे में आया देखकर सुमित ने पूछा।
''सुमित सहगल '' तुम ठीक तो हो ,अब क्या मैं तुम्हें अपने आने -जाने का हिसाब दूंगा ?तुम मुझसे यह सब पूछने वाले कौन होते हो ?
ये तुम कैसी बातें कर रहे हो ? तुमने आज तक तो ऐसा कभी कोई जबाब नहीं दिया।
तो क्या हुआ ?जो आज तक नहीं हुआ तो क्या आगे भी नहीं होगा ?
अबे ओ !तू ,आजकल कौन सी दुनिया में जी रहा है ,हम तुझसे यहाँ पहले से आये हुए हैं ,यदि हम तुझसे कुछ कह नहीं रहें हैं तो ये न समझना, कि हम कमजोर हैं ,हमने तुझे अपना दोस्त, भाई समझा इसीलिए तुझे यहाँ रहने भी देते हैं ,रोहित क्रोधित होते हुए बोला।
रहने दे ,यार ! ये भी अपना यार है ,इसका दिल टूटा है ,बेचारा ! बौरा गया है ,सुमित उसे समझाने के उद्देश्य से बोला।
उसकी बातें सुनकर नितिन को जैसे झटका लगा और बोला -यार !मेरे साथ कुछ तो हो रहा है।
क्या हो रहा है ?दोनों ने उससे पूछा।
वही तो..... ये बात मैं भी नहीं जानता ,तुमने मुझसे ये नहीं पूछा कि मैं कहाँ गया था ?
हमें क्या जरूरत पड़ी है ?तुम कहीं भी घूमो ! हम तुम्हारी मम्मी या पापा थोड़े ही हैं ,जो सारी बातें हमें ही बताकर जाना होगा। तुम अपनी मर्जी के मालिक हो,इतने बड़े कॉलिज में कहीं भी आ जा सकते हो। हम तो यही सोच रहे थे ,तुम सौम्या..... के कारण...... तभी रोहित के हाथ पर सुमित ने हाथ मारा और इशारे से उसे कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया।
नहीं ,मैं सौम्या के कारण परेशान नहीं हूँ ,मैं मानता हूँ ,उसने मुझे दुःख पहुंचाया है किन्तु मैं अभी देवदास नहीं बना हूँ। उसके विषय में जब भी सोचूंगा ,तब ही दुःख होगा किन्तु उसकी भी क्या गलती है ?उसने तो मुझसे कोई वायदा नहीं किया था।
ओय !तू तो बड़ी समझदारी की बातें कर रहा है ,देखा ,हमारी संगत का असर ,अब तू हमें ये बता, तुझे सौम्या से कोई परेशानी नहीं ,तो तुझे दिक़्क़त क्या है ?
अच्छा ये बताओ !ये ''ऊपरी हवा ''क्या होती है ?क्या तुम लोग इसके विषय में कुछ जानते हो ?
नहीं ,हमने तो नहीं सुना ,तुझे ये सब किसने बताया ?
मैं कुछ दिनों से महसूस कर रहा हूँ कि मुझे...... तभी नितिन के फोन की घंटी बजती है ,नितिन बात को आगे बढ़ाना चाहता है किन्तु फोन लगातार बज रहा है।
फोन ,उठा ले ,उठाता क्यों नहीं ?
साला !यही तो मुसीबत है, कहकर फोन उठाता है , हैलो !
हैलो !बेटा !तू ठीक तो है ,तुझे मैंने फोन किया था ,तूने फोन क्यों नहीं उठाया ?उधर से माँ का शिकायत भरा स्वर उभरा।
नहीं ,तो मैं ठीक हूँ ,आपने कब फोन किया ?कहते हुए उनकी मिस कॉल देखने लगा। उसमें उनकी दो 'मिस कॉल'देखकर उसे आश्चर्य हुआ ,मुझे क्यों नहीं पता चला ? वो मम्मी ,मैं किसी कार्य में व्यस्त था नितिन ने बहाना बनाया।