Shaitani mann [part 61]

अपने सामने एक पर्ची को देखकर, प्रिंसिपल साहब ने पूछा -इंस्पेक्टर साहब ! यह क्या है ?

यह एक पर्ची है, जिसमें लिखा है कि नितिन नाम के लड़के ने ,वहां पर शराब भी पी थी और इस अनाम पर्ची वाले इंसान ने उसकी परछाई को भी देखा था। 

यह तो कोई सबूत नहीं हुआ, परछाई से हम कैसे अंदाजा लगा सकते हैं ,यह किसकी परछाई है ? हो सकता है ,कोई उसका अहित चाहता हो और उसे फसाना चाहता हो।  वह लड़का तो, पढ़ाई में बहुत ही अच्छा है। संस्कारी बच्चा है। गहरी सांस लेते हुए, प्रधानाध्यापक बोले - हां, यह बात अवश्य है, यहां के कुछ बच्चों के साथ मिलकर वह थोड़ा सा भटक तो गया है,  किन्तु ....... 


इससे पहले ही ,इस्पेक्टर साहब भडकते हुए बोल उठे -अभी और कितना भटकेगा ? उसने एक लड़की का क़त्ल किया है। 

आप, मेरी पूरी बात तो सुन लीजिये !इस पर्ची के आधार पर आपने तो, उसे ही क़ातिल समझ लिया। मैं कह रहा था -वह  किसी का क्या कत्ल करेगा ? यह तो हो ही नहीं सकता , आपको ,जिसने भी यह जानकारी दी है, वह गलत भी तो हो सकती है। 

वही, मैं आपसे जानना चाहता था, कि यह लड़का कौन है ?

 वह कंप्यूटर साइंस का छात्र है, पढ़ने में होशियार है ,उसने अपना स्कूल टॉप किया था। अब तक तो, सब कुछ अच्छा ही रहा है , कुछ छात्र ऐसे हैं,जो उसके व्यक्तित्व से जलते हैं , जहां तक मेरा विचार है, वह बच्चा, ऐसा कर ही नहीं सकता। 

तब आप ही बताइए ! हम क्या करें ?देखिये इंस्पेक्टर साहब !आपने कहा -मैं डॉक्टर बनकर आपके बच्चों से छानबीन करूंगा ,हमने कोई आपत्ति नहीं जताई। 

प्रिंसिपल साहब ! आप समझ नहीं रहे हैं, किसी ने तो उस बच्ची के साथ गलत किया ही होगा। 

किंतु उसका कोई सबूत भी तो हमारे पास नहीं है। मेरा मानना तो यही है, कि वह अब वापस तो नहीं आ सकती, क्यों व्यर्थ में ही, किसी दूसरे बच्चे की जिंदगी बर्बाद करते हैं ? हमारे कॉलेज की प्रतिष्ठा का भी सवाल है। 

क्रोधित होते हुए ,इंस्पेक्टर उठा और बोला -आपको अपने कॉलिज की प्रतिष्ठा की पड़ी है ,यहाँ एक बच्ची की जान गयी है,प्रधानाचार्य जी ,चुपचाप उनको देख रहे थे। तब सुधांशु ने पास रखा पानी पीया  हुए शांत स्वर में बोला -ये मैं, आपके कॉलेज की प्रतिष्ठा के लिए ही तो कह रहा हूं , यदि कातिल ने ऐसा कुछ किया भी है, तो वह तो आराम से बच जाएगा और आगे के लिए निश्चिन्त हो जाएगा बल्कि आपके कॉलिज की बच्चियों पर यह ख़तरा मंडराता रहेगा, इसीलिए उस कातिल को पकड़ना आवश्यक है। रही बात,  डॉक्टर बनकर बच्चों के सामने जाने की, वो तो मैं इसीलिए डॉक्टर बन कर गया था ताकि बच्चे सहज महसूस करें पुलिस का नाम सुनकर, डरे नहीं। 

आजकल कौन पुलिस से डर रहा है ? जो ऐसे कार्य करते हैं, यदि उन्हें पुलिस का खौफ हो तो वो अपराध  जैसा कार्य करें ही न......  आप मेरी बात समझ रहे हैं। 

यह तो आपने सही कहा है, किंतु मैं चाहता हूं कोई तो ऐसा होगा जो मौके की तलाश में था, और मौका मिलते ही उसने उसे मार डाला। क्या मुझे कक्षा के अन्य बच्चों से, पूछताछ करने का अवसर मिल सकता है।

मेरे विचार से तो कोई भी दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहेगा, किसी का नाम भी सामने नहीं आना चाहिए बस ऐसे ही, छानबीन करते हुए आप पता लगा सकते हैं। जाने ऐसा, क्या हुआ होगा ? कहीं ऐसा तो नहीं, वहीं  का कोई व्यक्ति हो, जो उन्हें मार्ग दिखला रहा था,जो उनके साथ था , उन्होंने संभावना व्यक्त की। 

उसे तो हमने बहुत तोड़ा है, रो रहा था, कह रहा था साहब ! यदि मैं ऐसा करता तो यहां नौकरी नहीं कर पाता ,मैं 10 साल से यहां नौकरी कर रहा हूं आज तक ऐसा नहीं हुआ। हमने उसे छोड़ दिया है, वैसे हमारी नजर उस पर भी है। 

क्या नाम था उसका ! सोचने का प्रयास करते हुए प्रिंसिपल साहब ने पूछा। 

उसका नाम गोपी है। 

अभी बच्चों को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं पुलिस में ही हूं, अभी मैं डॉक्टर ही बने रहना चाहता हूं और थोड़ी-थोड़ी जानकारी लेता रहूंगा , अब जैसे इस बच्चे ने, अपने नाम को गुप्त रखा है, ऐसे ही कोई जानकारी मिल जाये, जो इस केस में सहायक हो।  

अभी यह केस चल ही रहा था किंतु कॉलेज में आकर, नितिन फिर से उदास हो गया। उसे फिर से अपने वही दिन स्मरण हो आए। वह सौम्या को लेकर, कितने सपने सजाने लगा था , उसे लग रहा था -जैसे उसकी जिंदगी जी उठी है , वह जीने लगा है, उसे क्या मालूम था ? कि यह दो पल की ही जिंदगी थी। भला, मेरा ऋचा से क्या मतलब ?उसे कभी ध्यान से देखा भी नहीं ,मैं तो सौम्या को लेकर ही सोच रहा था। सोच कर ही उसका हृदय तड़प उठा, उफ्फ ! यह क्या हो रहा है ,उसे जितना भुलाना चाहता हूं भूल भी तो नहीं पा रहा हूं और जब वह दिख जाती है, अपने प्यार की असफलता पर दुख होता है।

 शायद, ऋचा का भी ऐसा ही कोई आशिक होगा, जो उसे इस तरह देख नहीं पाया किंतु मैं तो यह भी नहीं कर सकता। जब किसी से प्यार हो जाता है, तो उसका दर्द भी तो नहीं देखा जाता , तभी उसका फोन आता है और वह फोन उठाता है अचानक ही,उसके कानों में एहसास होता है ,जैसे घंटियां बज रही हैं। वह परेशान हो उठता है, कुछ समझ नहीं आ रहा ये घंटियां क्यों बज रही हैं ? उसके पश्चात पता नहीं, उसके साथ क्या हुआ ?

 जब उसकी आंख खुली, तब उसने अपने आप को, सड़क पर पाया , यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ, मैं तो अपने कमरे में था मैं यहां कैसे आया ? यह मेरे साथ क्या हो रहा है ? कभी मैं बाहर जाता हूं, तो कमरे में होश आता है और कमरे मैं होता हूं, तो बाहर मिलता हूं। वह  धीरे-धीरे चलते हुए, अपने छात्रावास के गेट पर पहुंचता है, तब गेट द्वाररक्षक से पूछता है - मैं यहां कैसे आया ? क्या आपने मुझे बाहर जाते हुए देखा था ?

हां , तुम बाहर जा रहे थे, मैंने तुम्हें रोकना चाहा किंतु तुमने इधर-उधर भी नहीं देखा और चले जा रहे थे , जैसे कोई चीज तुम्हें अपनी और खींच रही हो, ऐसा लग रहा था,जैसे तुम अपने होश में नहीं हो। जब तक मैं अपने कमरे से बाहर आया, तब तक तुम जा चुके थे यह देखो, रजिस्टर में तुम्हारा नाम लिखा हुआ है। जब तुम बाहर गए थे तो क्या तुम्हें मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी ,दयाराम ने प्रश्न किया ? 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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