नितिन के व्यवहार में बदलाव तो आया है, और जब वह किसी बड़े जंगल में अपने कॉलिज के दोस्तों संग जाता है तो वहां वह अपने व्यवहार से, दर्शा देता है, कि उसे किसी बात का डर नहीं है। अभी उन्होंने आधा रास्ता ही पार किया था। तब वहीं एक स्थान पर वे लोग टेंट लगाकर ठहर गए। तभी उनके साथ ये हादसा हो गया - ऋचा , जो उनके साथ आई थी, वह अचानक न जाने कहां गायब हो गई ? बहुत खोजबीन करने के पश्चात भी, वह नहीं मिली। बात पुलिस तक आ पहुंचीं। मार्गदर्शक गोपी और एक लड़के को नितिन पर संदेह था किंतु प्रत्यक्ष किसी ने भी नहीं देखा था, इसीलिए पूर्ण विश्वास के साथ नहीं कह सकते थे-' कि यह कार्य नितिन का हो सकता है।' वहां जब पुलिस ने छानबीन की तो पता चला कि ऋचा के साथ अवश्य ही कुछ गलत हुआ है और उसके पश्चात उसको, उस मगरमच्छ भरे तालाब में फेंक दिया गया ताकि लोगों को लगे, कि उसे मगरमच्छ खा गए किंतु वास्तविकता तो कुछ और ही थी।
जंगल यात्रा अपूर्ण ही रह गयी ,सभी बच्चे वापस लौट आए थे। अट्ठारह छात्र और छात्राएं गए थे ,सत्रह ही वापस गए। पुलिस को संदेह था, कि ऋचा अब इस दुनिया में नहीं रही। सम्पूर्ण कॉलिज को जब इस हादसे की जानकारी होती है ,तो सभी के मन में कई सवाल उठ रहे थे -आख़िर ऋचा कहाँ गयी, उसके साथ क्या हुआ ? किन्तु जो लोग वापस आये उनके पास एक ही जबाब था -पता नहीं।
जब कॉलिज के प्रधानाचार्य पुलिस से, उस हादसे के विषय में बात करते हैं ,पुलिस को क्या लगता है ?
तब उन्हें बताया जाता है - ऋचा ,मगरमच्छों का शिकार हो गयी है।ऋचा के घर भी सूचित कर दिया जाता है औरअब तो प्रधानाचार्य जी को भी लगता है कि ऋचा अब इस दुनिया में नहीं रही। इसी कारण कॉलेज में ऋचा की आत्मा की शांति के लिए 2 मिनट का मौन भी करते हैं किंतु ऋचा की एक सखी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाती है कि अब ऋचा इस दुनिया में नहीं है और अपने कमरे में चली जाती है।
मौन के पश्चात ,प्रधानाचार्य जी ,सभी अध्यापक और अध्यापिकाओं को अपने कक्ष में बुलाते हैं और उनसे कहते हैं -देखिये !ऋचा के साथ जो कुछ भी हुआ, उसका हमें बेहद अफ़सोस है औरहमारे लिए यह बहुत ही शर्मनाक भी रहा ,हमारे कॉलिज की एक छात्रा गायब हुई है। यह उत्तरदायित्व जो अध्यापक उस समूह के साथ गए ,उनका बनता था ,जबाबदेही भी उनकी बनती है किन्तु यहाँ जबाब हमें देना पड़ रहा है। सावित्री जी और श्रीवास्तव जी सिर झुकाये खड़े थे। वे भी क्या कर सकते थे ?रात्रि तो सोने के लिए ही बनी है ,बच्चे इतने छोटे भी नहीं ,कि रात्रि में भी उनकी पहरेदारी की जाती ,उनका तो यही कहना था। तब प्रधानाचार्य जी ,बताते है -पुलिस को संदेह है ,कि ऋचा के साथ व्यभिचार हुआ है और उसके पश्चात उसकी हत्या !
क्या ????सभी आश्चर्य से प्रधानाचार्यजी की तरफ देखते हैं ,ऐसा कौन कर सकता है ?
यही तो मालूम नहीं है ,ये कार्य किसने किया होगा ?पुलिस को हमारे छात्रों पर ही शक है ,वो लोग तो यहाँ आना चाहते थे किन्तु मैंने अभी उन्हें रोक दिया है ,ये हमारे कॉलिज की प्रतिष्ठा का सवाल है। मैं चाहता हूँ ,अभी आप लोग अपने तरीक़े से ही, बच्चों से पूछताछ करें।
कॉलिज के ये बच्चे ,अब वो बच्चे नहीं रहे जो अध्यापकों से डरते थे,आने दीजिये पुलिस को ,अपने तरीक़े से उनसे जबाब उगलवा लेगी सक्सैना जी इन सभी बातों से परेशान होते हुए बोले।
यह आप कैसी बातें कर रहे हैं ? वो बच्ची हमारे कॉलिज की छात्रा थी ,पुलिस को ही नहीं ,हमें भी यह बात जानने की जिज्ञासा है कि आख़िर वो इंसान कौन है ? जिसने उस बच्ची के साथ यह सब किया ,उसका चेहरा हम भी देखना चाहते हैं क्रोधित होते हुए बोले।
यदि वो हमारे ही कॉलिज का कोई छात्र हुआ तो....... श्रीवास्तव जी ने पूछा।
क्या आप उसे जानते हैं ?
श्रीवास्तव जी ने नजरें झुका लीं और न में गर्दन हिलाई।
यदि हमारे कॉलिज के ,किसी छात्र का ही, यह कार्य है ,तो हम स्वयं उसे, पुलिस के हवाले कर देंगे ,ऐसे इंसान को सजा अवश्य मिलनी चाहिए ,हमारे कॉलिज की मिसाल होगी कि हमारा कॉलिज ऐसे किसी भी छात्र हो या अध्यापक !उनके साथ कोई सहानुभूति नहीं रखता है जो अपराध से जुड़े हों या अपराध को बढ़ावा देते हों। यहाँ छात्रों को उचित शिक्षा दी जाती है ,न कि किसी अपराधी का सहारा बनता है ,न ही उन्हें पाला जाता है। अब जाइये !उन छात्रों को इकट्ठा कीजिये जो घूमने गए थे और पता लगाइये !आखिर वहां क्या हुआ था ?किसने यह जघन्य अपराध किया। सावित्री जी और श्रीवास्तव जी !-उन दोनों ने अपने नाम पुकारे जाने पर उनकी तरफ देखा ,आप दोनों इन सबसे अलग रहेंगे। आप अपने उसी उत्तरदायित्व को ठीक तरह से पूर्ण न कर सके ,मन ही मन बुदबुदाए आप लोगों से और क्या उम्मीद की जा सकती है।
श्रीवास्तव जी कुछ कहना चाहते थे, किन्तु सावित्री जी ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें रोक लिया और बाहर चलने के लिए इशारा किया।
तब भाटिया मैडम ! जो लड़के -लड़की घूमने के लिए गए थे। उस समूह के सभी लड़की और लड़कों को अपने समीप बुलाती हैं वह उन्हें समझाती हैं -कि यदि किसी से कोई गलती हो जाती है, तो अपनी गलती को स्वीकार करना बुरी बात भी नहीं है। लड़के कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे। इस विषय में, एक दूसरे से पूछते हैं- कि आखिर हुआ क्या है ?ये क्या कहना चाहती हैं ?क्या इस हादसे का हमें दोषी समझ रहीं हैं।
तब एक अध्यापक वहां प्रवेश करते हैं ,और अपना परिचय देते हैं -मैं सुधांशु हूँ ,मनोविज्ञान पढ़ाता भी हूँ और ऐसे लोगों का इलाज भी करता हूँ ,जो मानसिक रूप से परेशान रहते हैं ,या जिनके मानस -पटल में नकारात्मक विचार अधिक आते है अथवा कोई चीज उन्हें परेशान करती है।
अरे !यहां किसको बीमारी है ?यहां कौन पागल है ?कहते हुए कबीर लड़कों की तरफ देखता है।
जब कबीर ये सब कह रहा था ,तब डॉक्टर सुधांशु ने यह सब सुन लिया ,तब वो बोले -तुमसे किसने कहा ?कि मैं पागलों का इलाज करता हूँ ?मैं यहां किसी के इलाज के लिए नहीं आया हूँ।
तब आप यहां क्यों आये हैं ?नितिन ने प्रश्न किया।