सभी छात्र एक बार फिर से आगे बढ़ाने के लिए, तत्पर हो जाते हैं। अपने-अपने टेंट से बाहर निकलकर आगे बढ़ने के लिए, जब इकट्ठा होते हैं, तब उन्हें पता चलता है , कि ऋचा नाम की लड़की, वहां कहीं भी दिखलाई नहीं दे रही है। तब वह सावित्री जी से कहते हैं - मैम ! यहां ऋचा नहीं है।
कहां चली गई है ? उसे ढूंढो और पता लगाओ ! कि वह कहां है ?हमें आगे बढ़ना है , परेशान होते हुए ,श्रीवास्तव जी से कहती है -ये बच्चे भी न....... कोई न कोई परेशानी खड़ी कर देते हैं। इन लोगों से कितनी बार कहा गया है ? कि इधर-उधर नहीं जाना है, तब भी न जाने, बिना बताए कहां निकल जाते हैं ? उसके दोस्तों से पूछो ! जिसके साथ में टेंट में थी, उससे पूछो ! कुछ कह कर तो गई होगी।
नो मैम ! जब मैं सुबह उठी थी, वह टेंट में ही नहीं थी , मैंने सोचा बाहर होगी, श्वेता ने जबाब दिया। सभी इधर-उधर ऋचा को ढूंढ रहे थे और आवाज लगा रहे थे।
तब गोपी ने कहा -कहीं ऐसा तो नहीं, वह तालाब की तरफ चली गई हो, कुछ बच्चे ऐसे ही होते हैं , जिनसे किसी चीज के लिए मना किया जाए तो वे ,वह कार्य अवश्य ही करते हैं ,कहते हुए उसने नितिन की तरफ देखा। गोपी तालाब की तरफ बढ़ गया, अन्य सभी बच्चे भी ,उसी तालाब की तरफ बढ़ते जा रहे थे। तालाब के समीप उन्होंने जा कर देखा, तो सब शांत था किन्तु उसके करीब जाते ही ,वहां पानी में कुछ हलचल होने लगी। तब गोपी बोला - यहाँ बड़े -बड़े मगरमच्छ भी हैं ,दूर रहिये ! तब वह एक कच्चे स्थान पर ,वहां कुछ खून के धब्बे देखता है। मैम ! देखिए ! यहां कुछ रक्त की बूंदे हैं।
किसी जानवर की होगीं , श्रीवास्तव जी बोले।
तब गोपी उन्हें बताता है, इस तालाब में मगरमच्छ भी हैं , क्या किसी ने उस लड़की को, इधर आते हुए देखा था ? सब एक दूसरे की तरफ देख रहे थे और सभी ने न में गर्दन हिला दी।
यह कैसे हो सकता है ? उसने किसी से कुछ कहा भी नहीं और लड़की गायब है , जरा, उसका सामान देखो ! कहीं उसमें कुछ मिल जाए , उसके टेंट में जाकर, उसके सामान की तलाशी ली जाती है लेकिन उसमें भी कुछ नहीं मिलता है। तभी एक कपड़ा, पानी में तैरता हुआ नजर आता है।
श्रीवास्तव जी, उस कपड़े को देखकर गंभीर हो गए और बोले-लगता है , ऋचा , किसी हादसे का शिकार हो गई है किंतु यह बात समझ में नहीं आ रही कि वह यहां क्या करने आई थी ? किसी को साथ में भी तो ला सकती थी , अकेली ही, इतनी रात्रि में यहां क्या करने आई थी ? इस हादसे से सभी के चेहरे उदास हो गये।
तब एक लड़का बोला -मैंने रात्रि में ,इनके टेंट के करीब एक परछाई तो देखी थी।
वह परछाई किसकी थी ? एकदम से श्रीवास्तव जी ने पूछा।
सिर खुजलाते हुए, कबीर बोला -मुझे यह तो मालूम नहीं है , अंधेरा ही इतना था, कुछ ठीक से नहीं देख पाया।
फिर भी कुछ अंदाजा तो होगा,घबराते हुए सावित्री जी ने पूछा - कुछ तो ..... जैसे कद -काठी !कुछ तो स्मरण होगा ,कहते हुए वो श्रीवास्तव जी से बोलीं -बहुत बुरा हो जायेगा ,हम उसके माता -पिता को क्या जबाब देंगे ? कॉलिज वाले भी हमसे ही जबाब मांगेंगे।
कबीर को लग रहा था ,कद -काठी में वो नितिन जैसा ही लग रहा था किन्तु बिना देखे किसी का नाम लेना भी तो उचित नहीं है। हो सकता है, उसका भ्र्म हो। नितिन से उसकी क्या दुश्मनी हो सकती है ? नितिन को कभी उससे बात करते देखा भी नहीं इसीलिए वह चुप रहता है। ऋचा के गायब हो जाने पर आगे बढ़ना तो मुमकिन ही नहीं था। अब उस पार्क के संरक्षकों को और पुलिस दोनों को ही सूचित किया गया ताकि ऋचा की खोज की जा सके। सावित्री जी बेहद घबराई हुई थीं। श्रीवास्तव जी उन्हें समझा रहे थे -ये लोग ,इतने बच्चे भी नहीं हैं, बड़े हैं ,हम इनके साथ आये तो हैं किन्तु छोटे बच्चों की तरह ,हम लोग ,हरदम इनके साथ भी तो नहीं रह सकते।
पुलिस के साथ ,अन्य लोग भी आते हैं ,जो उस स्थान से वाकिफ़ थे। वहां की मिटटी के कुछ नमूने लिए गए ,पुलिस को संदेह था ,ऋचा के साथ और कुछ भी हुआ है। पुलिस सभी से पूछताछ करती है और सभी लोग वापस लौट आते हैं। कॉलिज में ऋचा की मौत पर दो मिनट का मौन किया जाता है।
तभी तृप्ति आगे आकर कहती है -क्या मैम !आपने ऋचा को मरा हुआ समझ लिया।हो सकता है ,वो जिन्दा हो !
वो जिन्दा हो !ये हमारे लिए अच्छा ही होगा , हम भी यही चाहते हैं, किन्तु अभी तक की छानबीन के आधार पर उस तालाब के मगरमच्छों ने उसे जिन्दा नहीं छोड़ा होगा। उसके पश्चात ,सभी छात्र जाने लगते हैं ,किन्तु उन छात्रों के नाम लिए गए ,जो उस समूह में, शामिल थे।
सभी एक -दूसरे की तरफ सवालिया नजरों से देखते हैं। तब प्रधानध्यापिका के कक्ष में पहुंचते हैं। तब वो उनकी तरफ देखती हैं और उन पर गहरी नजर डालते हुए पूछती हैं -जिसने भी जो कुछ भी देखा हो, अभी भी बता सकता है वरना पुलिस से उसे हम भी नहीं बचा सकेंगे।
तब कबीर कहता है - मैडम !मैंने जो कुछ भी देखा था ,सब बता दिया।
यहाँ से सभी लड़कियां जा सकती हैं ,लड़के यहीं रहेंगे। लड़कियों के जाने के पश्चात ,वो बोलीं - तुममें से किसी को कुछ नहीं कहना है ,उन्होंने अन्य लड़कों की तरफ देखकर पूछा। सभी चुपचाप बैठे रहे, तब वो बोलीं -सभी को ,ईश्वर भी एक बार सम्भलने का मौका देता है ,अपनी गलतियों पर पछताने का समय भी देता है। गलती इंसान से ही होती है ,हो सकता है ,भावुकता में ,आवेश में कई बार हमसे गलती हो जाती है किन्तु उसे स्वीकारने से ,उसकी सजा भी कम हो जाती है।
अरे सुमित !ये मैम !किस विषय में हमें इतनी देर से समझा रहीं हैं ?
मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ,ये समझा रहीं हैं या डरा रहीं हैं ,कुछ तो हुआ होगा किन्तु क्या ?वही तो समझ नहीं आ रहा प्रकाश तू ही बता ! ये किस विषय में कह रहीं हैं ?
मुझे क्या मालूम ?मैं भी तो तुम्हारे ही संग था।