आहत हो मन, मन ही मन द्व्न्द करता,
हर बार, अपने आप से ही, युद्ध करता।
आक्रामक हो उठता कभी समझाने लगता।
उचित अनुचित के भंवर में फंस युद्ध करता रहता।
प्रयास यही, उसका होता, फंस जाए न, कोई भंवर में।'काल्पनिक युद्ध' दिल ,दिमाग़ से निरंतर चलता रहता।
कभी अपने मन और आक्रोश के मध्य झुँझला जाता।
कभी अपनों से ,कभी अपने आप से युद्ध करता रहता ।
कभी प्रसन्न होकर भी ,घबरा जाता।
कहीं अनिष्ट न हो जाये ,'काल्पनिक भय ''सताता।
विचारों का जत्था आता ,न जाने कितने तर्क बताता ?
विचार कोई हो ,जब आता 'काल्पनिक द्व्न्द 'दे जाता।