Kalpanik yudh

 आहत हो मन, मन ही मन द्व्न्द करता,

 हर बार, अपने आप से ही, युद्ध  करता।  

 आक्रामक हो उठता  कभी समझाने लगता।  

उचित अनुचित के भंवर में फंस युद्ध करता रहता।

प्रयास यही, उसका होता, फंस जाए  न, कोई भंवर में। 

'काल्पनिक युद्ध' दिल ,दिमाग़ से  निरंतर चलता रहता। 

कभी अपने मन और आक्रोश  के मध्य झुँझला जाता। 

कभी अपनों से ,कभी अपने आप से युद्ध करता रहता ।


कभी प्रसन्न होकर भी ,घबरा जाता। 

कहीं अनिष्ट न हो जाये ,'काल्पनिक भय ''सताता। 

विचारों का जत्था आता ,न जाने कितने तर्क बताता ?

विचार कोई हो ,जब आता 'काल्पनिक द्व्न्द 'दे जाता।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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