Shaitani mann [53]

नितिन बहुत ही परेशान था, वह सौम्या की बातों से बहुत आहत हो गया था। वह उस समय, उस कॉलिज  से कहीं दूर चले जाना चाहता था।उसे, थोड़ा बहुत तो उसको एहसास था कि सौम्या का जबाब नकारात्मक हो सकता है किन्तु '' एक उम्मीद ही तो है ,जो जीने की और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।'' सौम्या के इंकार करने पर ,ऐसे समय में, उसके दोस्त  उसका सहारा तो नहीं बने किंतु उनकी बातों से लग रहा था-जैसे -''उसके  जले पर नमक छिड़क रहे हैं।''नितिन, सौम्या को पसंद करता था किंतु सौम्या भी ,उसे पसंद करती है, यह वहम उसने पाला हुआ था। जब वह सौम्या से पूछता है - कि इन छुट्टियों में ऐसा क्या हुआ ?जो उसने इतनी जल्दी सगाई कर ली। क्या ,उसने यह सगाई किसी के दबाव में आकर की है या वह उस लड़के से प्रेम करती थी -तब सौम्या उससे कहती है- मैं और दीपक एक दूसरे को पहले से ही जानते थे,किन्तु घरवालों से नहीं कहा।

हम दोनों ने ही ,तय किया था ,दीपक के रोजगार मिल जाने पर हम अपने घरवालों को बता देंगे और अब उसकी नौकरी लगने के पश्चात, हमने सगाई कर ली है, इसके लिए हम पर किसी का कोई दबाव नहीं है।


 

नितिन, सौम्या के इन शब्दों से बहुत ही आहत हुआ और हॉस्टल से बाहर निकल गया। वह इस स्थान से कहीं दूर चले जाना चाहता था ,वह चले जा रहा था। नितिन  चलते -चलते सड़क पर आ गया, उसका अशांत मन न जाने, उसको कहां लिए जा रहा था? वह स्वयं ही नहीं जानता कि वह कहां जा रहा है ? तब वह एक टीले पर बैठ जाता है। बहुत देर तक,वहीं  बैठा हुआ, कुछ सोचता रहता है। 

अचानक ही, उसकी दृष्टि दूर खेतों के मध्य उसी कच्चे घर  पर पड़ती है , जिसमें वह पहले गया था किन्तु ये सब तो स्वप्न था ,यदि वो स्वप्न था तो सामने ये हकीक़त है ,उस दिन भी, ये सच ही था किन्तु मेरे दोस्तों ने ही मुझे झुठला दिया था ,यह सोचते हुए ,वह चट्टान से उतरकर आगे बढ़ता है और धीरे -धीरे आगे बढ़ते हुए, उस घर तक पहुंच जाता है।सोचा ,शायद आज भी वही साधु मिले तो उनसे कुछ प्रश्न पूछूंगा। वह स्थान ऐसे ही ,पहले की तरह पेड़ों से घिरा हुआ था। वह उस घर में प्रवेश करता है। उस समय वहां पर कोई नहीं था। आस -पास नजरें घुमाकर देखता है और सोचता है -हो सकता है ,इस घर को खाली देखकर कोई साधू यहाँ पूजा करने आया हो और चला गया होगा ।

 वह घर क्या था ? चिकनी मिटटी से दीवारें बनी हुईं थीं ,आसपास खेत होने के कारण ,हो सकता है ,अपनी फ़सल को बचाने के लिए किसी किसान ने ही ,यह स्थान बनाया हो ताकि यहां रहकर जानवरो से अपनी फसल की सुरक्षा कर सके किन्तु अभी भी उस स्थान पर हवन कुंड  बना हुआ था जो कि इस समय  किसी लोहे की पतली चादर से ढक दिया गया था। उसे देखकर ,नितिन अपनी सोच को बदलने पर मजबूर करने लगा ,उसने सोचा -यहां अवश्य ही ,ऐसा कुछ तो होता है, जिसका किसी को मालूम नहीं है। इस समय उस स्थान पर कोई नहीं था इसलिए वह जाने के लिए मुड़ता है, तभी उसकी दृष्टि एक बड़े से माट [ मटका]पर पड़ती है। उसके मन में जिज्ञासा हुई , इतना बड़ा' माट' यहां किस लिए ? यह जानने के लिए, आगे बढ़ता है , वह मटका लगभग नितिन से बड़ा ही था। तब नितिन ने अंदाजा लगाया, यदि कोई चाहे तो इस मटके में, पूरा एक बड़ा आदमी छिप सकता है।

इस मटके में क्या हो सकता सकता है ? वह उस मटके में देखने के लिए जैसे ही, उसका ढक्कन हटाता है , तभी एक आवाज होती है और वह मटका अपने स्थान से घूमता है और एक दरवाजा खुल जाता है। यह देखकर, पहले तो नितिन घबरा जाता है किंतु तुरंत ही उसकी जिज्ञासा उस पर हावी हो जाती है और वह अपने सभी ग़म भूलकर, उस दरवाजे की तरफ बढ़ता है। वह यह  देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है कि उस दरवाजे के समीप ही कई सारी सीढियाँ बनी हुई थीं किन्तु अंधकार के कारण कुछ भी स्पष्ट दिखलाई नहीं दे रहा था।  आखिर ये सीढियाँ कहाँ जाती हैं ?और किसने ये सब बनाया होगा ? आज के समय में ऐसी चीजें ,सोचकर भी असम्भव सा प्रतीत होता है। उसमें अंदर जाने में, ड़र सा प्रतीत हो रहा था किन्तु जिज्ञासा उसे वापस भी जाने नहीं दे रही थी। तब वापस उस घर के दरवाजे तक आया। बाहर आकर देखा -दूर -दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। पहले तो उसने सोचा ,अपने दोस्तों को साथ लेकर आता हूँ, फिर सोचा ,वो विश्वास ही नहीं करेंगे। हो सकता है ,ये गुप्त रास्ता उनके शोर -शराबे ,भीड़ के कारण ,गुप्त नहीं रह पायेगा। पहले मुझे ही देखना होगा आखिर ये रास्ता कहाँ जाता है ?और किसलिए इसका उपयोग किया जा रहा है ?

वह पुनः उस कमरे में वापस आता है ,और उस द्वार के करीब पहुंचकर सोचता है ,हो सकता है ,ये स्थान उस बाबा ने ही, अपने लिए बनाया हो किन्तु वो ये रास्ता क्यों बनवाएंगे ?अभी वह इधर -उधर ही समय व्यतीत कर रहा था ,यह उसका ड़र था जो उसे, उस द्वार के अंदर जाने से, उसे रोक रहा था किन्तु जिज्ञासा उसे वहां से जाने भी नहीं दे रही थी। अंततः उसने उस दरवाजे के अंदर जाने का निश्चय किया और साहस करके पहली सीढ़ी पर कदम रखा। अंदर काफी अँधेरा था। तर्क -वितर्क के मध्य फंसा वो आगे बढ़ रहा था। आगे अंधकार ज्यादा बढ़ गया तब उसने अपने फोन की लाइट जलाई।

नितिन फोन की रोशनी में, धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। मन ही मन सोच रहा था -न जाने, ये सीढियाँ कहां जाकर समाप्त होगीं  ? उसे यह भी डर था कहीं वह किसी गलत जगह न पहुंच जाए , यह भी सोच रहा था -अवश्य ही कोई न कोई तो बात होगी, जो यह सीढ़ियां बनाई  गई हैं। जैसे-जैसे वह नीचे उतरता जा रहा था उसकी धड़कनें भी तीव्र होती जा रही थीं । अंततः वह एक स्थान पर पहुंच ही गया। वह एक समतल स्थान था, जहां पर बहुत सारी किताबें रखी हुई थीं , ऐसा लग रहा था, जैसे वह कोई गोदाम है। आसपास नजरें  दौड़ाता है और आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढता है। वह जानना चाहता है, कि वह किस स्थान पर है ? वह स्थान छोटा नहीं था, काफी बड़ा था। यह देखकर उसे आश्चर्य भी हो रहा था कि उसके कॉलेज के पीछे खेतों में एक मिट्टी का घर है, और इसका एक रास्ता यहां तक आता है ,वह किस लिए है ?

 अभी वह आसपास देखने का प्रयास ही कर रहा था, तभी जैसे उसके सिर पर किसी ने तेजी से वार किया और वह बेहोश हो गया। जब वह होश में आया, तो वह अपने कमरे में था। उसका सिर दुःख रहा  था। उसके दोस्त वहीं बैठे हुए , नशा कर रहे थे। उन्हें देखकर नितिन ने पूछा -मैं यहां कैसे आया ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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