तमाम उम्र दौड़ते,चाहत में, इसके पीछे-पीछे।
यह भी आगे -आगे चलती,दौड़ाती पीछे -पीछे।
लगता अब आई - तब आई ,हाथ में ,जीवन में।
पलक झपकते ही ,थामते हाथ ,कर देती पीछे।
भागदौड़ ,लुकाछुपी, खेल इसके, चलते रहते।
हमेशा' मैं' इसके पीछे ,और यह आगे-आगे होती।
हाथ में आती जीत मेरी ... तो'' बाँछे खिल जाती''।
खुशी में कहीं झलक दिखाती,अहं से टकरा जाती।
परिश्रम बहुत किया , फिर भी यह बाज न आती।
टिके रहने के वास्ते, बार -बार परिश्रम करवाती।
बिन परिश्रम ,बिन कौशल ,के 'उड़न छू हो जाती। ''
इसे पाने की चाहत !मंजिल की नई राह दिखाती।
आशाओं,उम्मीदों पर ख़रे न उतरे, पीछे -पीछे दौड़ाती।
किसी को तो यह,परिश्रम बिन ही, किस्मत से मिल जाती।
किस्मत जब तक साथ निभाती, यह भी संग चलती जाती।
धैर्य संग ग़र मिल जाये ,स्वाद बड़ा मीठा,मीठा फ़ल दे जाती।