न जाने कितने बजे होंगे ?एक साया दमयंती के कमरे में प्रवेश करता है। जहाँ दमयंती गहन निद्रा में सो रही थी। उसने दमयंती की तरफ ध्यान से देखा और समीप में जल रहे, लैम्प की रौशनी को बंद किया और दमयंती के करीब आकर लेट गया। सोचा तो यही था ,कि इसे हाथ नहीं लगाऊंगा किन्तु मन नहीं माना और उसके हाथ धीरे -धीरे दमयंती की तरफ बढ़ने लगे। अपने तन पर किसी का स्पर्श दमयंती ने भी महसूस किया और उसकी आँखें खुल गयीं , उसे लगा ,शायद वही है ,जिसकी प्रतीक्षा करते वो सो गयी।
आप आ गए ,बहुत देर कर दी,क्या समय हुआ है ?दमयंती ने अलसाते हुए तरफ करवट बदली ,महीनों से जिसके सपने सजाये थी,आज वो उसके इतने करीब है ,सोचकर ही मन में गुदगुदी उठी। उसकी गर्म साँसें दमयंती के तन से टकरा रहीं थीं और उसके हाथ दमयंती के बदन से खेल रहे थे। दमयंती उसे दिल तो कब का दे चुकी थी ?आज तन से भी सम्पूर्ण समर्पित थी। भावुक क्षणों में ,उसके मुँह से स्वर निकले, तुम कितनी खूबसूरत हो ? तुम्हें देखते ही ,मैं तुम्हारा हो चुका था कहते हुए उसने दमयंती को अपनी बलिष्ठ भुजाओं में भर लिया।
दमयंती सोच रही थी - ये कैसा स्पर्श है ? जो उसे मदहोश किये दे रहा है ,वह अपने आपको उसके चौड़े सीने में छुपा लेती है। वो भी तुरंत ही दमयंती की गर्दन ऊँची करके उसके अधरों को चूम लेता है। दमयंती की स्वांसें बेतहाशा बढ़ती जा रहीं थीं। एक बार को तो दमयंती के मन में विचार आया -ये कैसी'' सुहागरात'' है ? दोनों इतने करीब हैं ,न ही एक -दूसरे से बात की, न ही घूंघट उठाने की रस्म हुई और अब इतने अँधेरे में, एक -दूसरे को देख भी नहीं पा रहे हैं। तब वो बोली - क्या आपने लैम्प बंद किया ?किन्तु उसे जबाब में ,उसकी गर्दन पर गर्म चुंबनों का एहसास होने लगा।
अब तक उसके पति ने,उसके वस्त्रों को उसके तन से जुदा कर दिया था और उसको अपनी बाँहों में समेट लिया था,आज दो धड़कते दिल एक होने जा रहे थे ,कुछ देर पश्चात, दोनों वहीँ दूसरे की बाँहों में सो गये।जब दमयंती की आँख खुली तब उसे रात्रि की सारी बातें स्मरण हो आईं ,जिसे सोचकर वो अपने आप में ही सिमट गयी। उसने मुस्कुराकर ,अपने पति की तरफ देखा जो गहन निंद्रा में अर्धनग्न अवस्था में ,करवट लिए सो रहा था। उसकी पीठ दमयंती की तरफ थी ,दमयंती ने हौले से उसकी पीठ पर ही नए दिन की ,नई शुरुआत के साथ चुंबन किया कहीं इनकी नींद न खुल जाये इसका उसने विशेष ख्याल रखा। तब वह अपने बिस्तर से उठकर,नहाने के लिए जाती है।
इतना तो वह जानती है ,नई बहु की कुछ रस्में होती हैं जिनको उसे पूर्ण करना होगा इसीलिए किसी के आने से पहले नहाकर वह तैयार हो जाना चाहती थी। यह अच्छा था ,गांव होने के बावजूद भी ,वहां उसकी हर सुविधा का ध्यान रखा गया था।
दमयंती जब नहाकर बाहर आई तो सोच रही थी ,इससे पहले की कोई आये ,इन्हें भी उठा दूंगी ,दमयंती ने जैसे ही अपने पलंग की तरफ देखा तो वह बुरी तरह घबरा गयी और वो जोर से चिल्लाई -तुम कौन हो ?उसकी चीख सुनकर ,उसके पति की आँख खुल गयी उसने देखा ,दमयंती बेहद घबराई हुई थी और चिल्ला रही थी ,तुम कौन हो ?मेरे कमरे में कैसे आये ?अब तक कमरे की हलचल शोर -शराबे का घर के लोगों को भी पता चल गया था।
उस समय सुनयना जी ,रसोईघर में पार्वती के साथ ,नाश्ते के साथ -साथ,अन्य रस्मों की तैयारी में जुटी हुईं थीं। वो पार्वती से कह रहीं थीं -नाश्ते की तैयारी करके देखकर आना बहु अभी उठी या नहीं ,नहीं उठी होगी तो उसे उठाकर उससे कहना -जल्दी से तैयार हो जाये,पहले देवता पूजने जाना है ,उसके पश्चात मुँह दिखाई की रस्म भी होगी और कंगना खिलाया जायेगा। गांव की औरतें आती हो होंगीं। तभी उन्हें बहु के कमरे से तेज स्वर आते सुनाई देते हैं।
तब सुनयना जी ,विवाह में आई अपनी बहन की बेटी वंदना से बोलीं -जरा ,देखकर तो आ !क्या हुआ ? कहीं बहु किसी चीज से ड़र तो नहीं गयी या फिर किसी चीज की कोई आवश्यकता तो नहीं।
सुनयना जी की बात सुनकर वंदना चली गयी किन्तु तुरंत ही दौड़ती हुई वापस आई और बोली -मौसीजी !मुझे लगता है ,अवश्य ही कुछ हुआ है ,भाभी जोर -जोर से चिल्ला रही हैं और रो रहीं हैं ।
तब तूने उससे पूछा नहीं ,क्या हुआ ?
पूछती कैसे ?दरवाजा बंद है ,मुझे तो लगता है ,अवश्य ही कुछ हुआ है।
क्या वहां 'जगत' नहीं है ?
मुझे क्या मालूम ?कोई दरवाजा खोले तो पता भी चले, कि अंदर क्या चल रहा है ?
काम में व्यस्त अपने हाथों को रोककर वे बोलीं -तू मेरे साथ चल !मैं भी तो पूछूं !आखिर हुआ क्या है ?
जब वे लोग कमरे के नज़दीक पहुंचे ,तो अंदर से रोने की आवाजें आ रहीं थीं ,उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया और बोलीं -बहु ! दरवाजा खोलो ! क्या हुआ है ?किन्तु किसी ने दरवाजा नहीं खोला ,कुछ ही देर में सारा घर एक ही स्थान पर इकट्ठा हो गया।न जाने क्या हुआ है ?बाहर सभी घबराये हुए खड़े थे।
उस समय ठाकुर साहब के पास गांव के कुछ लोग आये हुए थे ,वे गांव के लोगों से बैठे बतिया रहे थे ,उनके मन में सुकून था ,चलो ! एक बेटे का विवाह तो हो गया ,अब औरों के रिश्ते भी आ ही जायेंगे।
ठाकुर साहब ! यह तो बहुत ही अच्छा हुआ समय रहते ही, बेटे का विवाह हो गया वरना उम्र निकल जाने पर रिश्ते आने मुश्किल हो जाते हैं।
ऐसा तो नहीं है ठाकुरों के बच्चे कुंवारे रह जाएं बस समय की बात है ,जब अच्छा समय आता है तो सभी कार्य अपने आप होने लगते हैं, मैं तो शहर गया था वहीं मेरा एक मित्र मिल गया उसे भी अपनी बेटी के लिए वर की तलाश थी। हंसते हुए बोले -हम तो एक बात जानते हैं ,किसी का भला करने चलो तो अपना भला भी हो ही जाता है।