यार !वो इस होटल के मालिक का बेटा है और उसने तेरे लिए उपहार में केक भेजा है। मुझे लगता है ,उसका दिल तुझ पर आ गया है। न जाने,वो केेसा होगा ?सपनों के जैसा ! मुझे बता !तेरे सपनों का राजकुमार केेसा होना चाहिए ?तनु ने पूछा।
यदि वो आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक हुआ और तुझे पसंद करता होगा तो तू उससे विवाह कर लेना।जहाँ तक मुझे लगता है ,वो लम्बा आकर्षक काळा सूट में हमारी सखी का स्वागत करेगा। तू ही सोच !तू इस होटल की मालकिन हो जाएगी फिर तो मुफ़्त में ही ,यहाँ आकर हम डेरा जमा दिया करेंगे क्योंकि तब वो हमारे जीजा होंगे, जीजाजी का होटल हो जायेगा।
चुप करो !तुम दोनों ,तुम्हें किसी ने मुफ़्त में एक केक क्या भेज दिया ?दोनों की दोनों भुक्क्ड़ उसके सपने सजाने लगीं। अरे तुम इस केक के चक्कर में मुझे क्यों' बलि का बकरा बना रही हो ?वो पहले से ही शादीशुदा हुआ तो.... या उम्र में बड़ा हुआ तो......
जब भी सोचेगी ,बुरा ही सोचेगी ,हमारे सपने तोड़ने में तनिक भी देर नहीं लगाई ,रूठते हुए मेघा बोली।
देखो ! मैं यहां पहले भी कई बार पापा के साथ आ चुकी हूं किंतु मैंने कभी भी इस होटल के मालिक को ही नहीं देखा। मालिक के बेटे को देखने की बात तो दूर है।
केक कट जाने के पश्चात, उस अनजान व्यक्ति को भी भिजवाया जाता है। तब वेटर कहता है- कि साहब तो यहां है, ही नहीं।
कोई बात नहीं, आप इसे धन्यवाद के रूप में इसे ,उन्हें मेरी तरफ से दे दीजियेगा। वैसे क्या मैं एक बात पूछ सकती हूं ?
जी पूछिए !
तुम्हारे उन साहब का नाम क्या है ? ये हमें भी तो पता चले जिन्होंने हम पर इतनी मेहरबानी की है।
हम तो उन्हें ''छोटे साहब'' ही कहते हैं किन्तु मैने सुना है ,उनका नाम'' ठाकुर ज्वाला सिंह ''है।
नाम सुनकर दमयंती को हंसी आ गयी,अपनी हंसी को रोकते हुए बोली -उनसे हमारा धन्यवाद कहियेगा ?वैसे मैं अक्सर यहां अपने पापा के संग आती रहती हूँ ,उनसे मुलाकात हो गयी तो मैं स्वयं ही ,आपके छोटे मालिक से मिलकर उनका धन्यवाद करना चाहूंगी ।
जी , मैं आपको पहले से ही जानता हूं। मैं उनसे पूछ लूंगा किआप उनसे मिलना चाहती हैं। क्या वे भी आपसे मिलना चाहते हैं या नहीं।
नहीं -नहीं पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है ,वो जब भी यहां होंगे अपने आप ही मुलाकात हो जाएगी ,जैसे आज आ गए।
सही कह रहीं हैं ,यह एक संयोग है। उनकी यह बातें उसकी सहेलियां भी सुन रही थीं।
वेटर से अलग होते ही , सारी लड़कियां जोर-जोर से खिलखिला कर हंसने लगी। हम तो हंस ही रहे हैं तू क्यों हंस रही है ? शिवानी ने पूछा।
तेरे जीजाजी का नाम सुनकर, हंस रही हूँ , नाम ही कितना खतरनाक है ?'' ज्वाला सिंह ''जैसे किसी डाकू का नाम होता है।' ज्वाला सिंह' और दमयंती की जोड़ी कैसी रहेगी ? सोच- सोच कर आपस में ही हंसने लगीं ।
वह मूरत ज्वाला की नजरों में बस गई थी ,उन लड़कियों के चले जाने के पश्चात ,वह अपने कमरे से बाहर आता है और दूर जाती उन लड़कियों को देखता रहता है। अचानक ही न जाने मन में क्या आया ?लिफ्ट से नीचे आया और पीछे के रास्ते से गाड़ी लेकर बाहर निकल गया। वह स्वयं ही नहीं समझ पा रहा था वो ऐसा क्यों कर रहा है ?जब वह गाड़ी लेकर मुख्य सड़क तक आया ,वे लड़कियां कहीं भी नहीं दिख रहीं थीं। उस लड़की की एक झलक पाने के लिए ज्वाला, इधर -उधर ऐसे ही सड़क पर घूमता रहा। तब उसने सोचा -हो सकता है ,उसका घर करीब ही हो अथवा वे किसी गली में मुड़ गयी हो ,सोचकर वह वापस अपने कमरे में आ गया।
आकर बिस्तर पर लेट गया ,आज ही मुझे यहाँ आना था और आज ही तुम्हारा जन्मदिन !हमारा मिलना एक संयोग ही है।मैं भी क्या कम उम्र बच्चों की तरह आज उसके पीछे -पीछे पहुंच गया। अपने ही उस व्यवहार पर उसे हंसी आ गयी। अब तो मुझे लगता है ,तुम्हारे बिन नहीं रह पाऊंगा, यह सोचकर बेचैन हो उठा। तभी उसे एहसास हुआ -इतनी बेचैनी ठीक नहीं, अभी तो मेरे भाइयों का भी विवाह नहीं हुआ। पहले तीन हैं ,उनके पश्चात मेरा नंबर आएगा। अब उसे लगने लगा मेरा यहां कोई भी कार्य नहीं है , अब मुझे यहां से जाना चाहिए।
घर पहुंच कर, मां से बात करुँगा ,पापा ने जो लड़की भाई के लिए देखी है ,शीघ्र ही, उससे विवाह की बातें करके, मैं अपने लिए भी बात करूंगा। तब तक उस लड़की से मिलकर उसके नाम के साथ -साथ उसके दिल की बात भी जान लूंगा।
ऐसे समय में लगता है ,वक़्त कहीं ठहर जाये किन्तु ज्वाला को तो लग रहा था ,ये वक़्त न जाने कैसे ठहर सा गया है ?आगे बढ़ ही नहीं रहा है। वह इसी जोश में प्रतिदिन अपने होटल का कार्य संभालने आता काश !कि वो आये और उससे मुलाकात हो जाये। तब अपने आप पर ही, उसे क्रोध आता ,वो कैसे जानती होगी ?कि यहाँ मैं प्रतिदिन उसकी प्रतीक्षा करता हूँ। उसने तो मुझे एक झलक देखा भी नहीं और मैं उसकी एक झलक के लिए हैरान -परेशां हूँ। उस मिलने के लिए अनुनय कर रही थी ,तब मिल लेता तो क्या हो जाता ?मन में बेचैनी अधिक होने लगती तो सड़क पर ऐसे ही टहलने निकल पड़ता। कभी -कभी अपने पिता के उसी विशिष्ट कमरे के पास ही दूसरे कमरे से बाहर आते -जाते लोगों को देखने लग जाता। जैसे दूर से ही इस भीड़ में उसे किसी की तलाश है ,उसकी नजरें किसी के लिए भटकती नजर आतीं।
एक दिन जैसे ज्वाला की भगवान ने सुन ली या फिर दिल से दिल को राहत हुई ,दूर से स्कूटी पर वो चली आ रही थी। ह्रदय की बेचैनी बढ़ गयी ,आँखों को जैसे विश्वास नहीं हुआ। आज उसकी तपस्या सफल हुई। अपने आपको विश्वास दिलवाने के लिए वह अपनी उस गोल आरामदायक कुर्सी से उठा ,यह देखने के लिए कि वह किधर जा रही है ? हाँ, वही तो है ,उसके ह्रदय से आवाज आई ,वह किधर जा रही है ?देखने के लिए आगे बढ़ता है। अब क्या करें कैसे उसे रोके ?यदि नीचे गया तब तक तो वह आगे निकल जाएगी। अब क्या करे ? तब भी उसका मन हार नहीं मानता और वो आगे बढ़ता है ,वह सीढ़ियों तक पहुंचकर नीचे पहुंच जाता है और सीधे बाहर यह कार्य उसने इतनी फुर्ती से किया किसी को भनक तक नहीं लगी,उसकी स्वांसें धौकनी की तरह चल रहीं थीं।
[न जाने, इस रिश्ते का क्या अंजाम होगा ,क्या ये कुदरत का कोई इशारा है ?वो इन्हें मिलाना चाहती है या फिर तड़पाना !चलिए आगे बढ़ते हैं ]