इंसान के जन्म के समय से ही, उसके माता-पिता,उस बच्चे के भविष्य को लेकर, अनेक योजनाएं, बनाने लगते हैं। उसकी पढ़ाई को लेकर, उसके भविष्य को लेकर योजनाएं बनाई जाती हैं किंतु कितनी योजनाऐं सफल हो पाती है ? यह तो समय पर निश्चित होता है। कई बार योजना, धरी की धरी रह जाती है और इंसान कुछ नहीं कर पाता है, समय से मात खा जाता है। कई बार परिस्थितियों के चलते, वह अपनी योजनाओं में सफल नहीं हो पाता है या उनमें परिवर्तन करना पड़ जाता है। फिर भी इंसान, योजना अवश्य बनाता है। योजना के तहत किया गया कार्य, सुरुचि पूर्ण और व्यवस्थित तरीके से होता है।
ये कोई सरकार के द्वारा बनाई गई' पंचवर्षीय योजनाएं' नहीं होतीं , जो हर पांचवें वर्ष बनती हैं । इंसान जीवन में, हर पड़ाव पर, हर उम्र में, किसी भी कार्यक्रम पर योजना बनाने लगता है। वह अपनी योजनाओं में कितना सफल हो पाता है ?यह उसके परिश्रम पर निर्भर करता है। वैसे तो कहा जाता है -कि सभी के जीवन की योजना बनाकर, ईश्वर पहले से ही भेजता है और उसकी योजना के सामने, इंसान की सभी योजनाएं फेल हो जाती हैं। तब भी इंसान, अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए, योजना बनाता ही है। जब वह माता-पिता, के रूप में अपने जीवन में प्रवेश करता है, तब वह अपने बच्चों के लिए, उसकी शिक्षा के लिए, अनेक योजनाएं बनाता है। किस तरह उसे शिक्षा देनी है, उसका किस तरह पालन -पोषण करना है ? किस तरह उसे, भावी जीवन के लिए तैयार करना है। हां, यह बात अलग है, कि बच्चा उनकी पूर्व नियोजित योजनाओं को कितना कारगर कर पाता है ?
हो सकता है, बच्चे की शिक्षा में रुचि ही ना हो, तब अपनी योजनाओं को असफल देखकर, वह पुनः नई योजना तैयार करता है किंतु हार नहीं मानता है। वह अपने उस बच्चों को, जीवन में एक सफल और बेहतर नागरिक के रूप में देखना चाहता है। इसी प्रकार वह बच्चा भी जैसे-जैसे समझदार होता है, और जिंदगी को समझने लगता है। वह भी अपनी सोच के आधार पर, कुछ योजनाएं तैयार करता है। जीवन ही नहीं, वरन जीवन में कुछ भी नया करने के लिए, इंसान पहले योजना ही तैयार करता है। यदि उसे घर भी बनाना होगा, तब कितने बजट में, किस तरह से, क्या सोचकर बनाना है , यह उसकी सोच और योजना पर ही निर्भर होता है।एक लेखक भी ,जब कोई रचना लिखता है तो उसका खांचा अपने दिमाग में, अपनी सोच के आधार पर पहले से ही निश्चित कर लेता है। तब वह शब्दों को ढूंढकर एक रचना तैयार करता है। कभी -कभी अपनी उस रचना से संतुष्ट भी होता है ,कभी और बेहतर का प्रयास भी करता है।
बच्चा जब स्वयं भी सोचने लगता है, सक्षम हो जाता है,तब वह भी अपने जीवन को लेकर योजना बनाता है उसे सरकारी नौकरी करनी है, या प्राइवेट नौकरी करनी है। वह पैसे को महत्व देता है या ईमानदारी चुनता है। वह शिक्षा ग्रहण करता है, और अपनी योजना के तहत उसी में आगे बढ़ता है।' इंसान ही, एक ऐसा जीव है, जो कोई भी कार्य करने से पहले, सोचता है और पूर्व नियोजित योजना तैयार करता है।' कुछ लोग, अपनी योजनाओं में सफल भी होते हैं, और कुछ असफल भी हो जाते हैं। कई बार निरंतर प्रयास के पश्चात, उसकी योजना सफल हो जाती है और कई बार निरंतर प्रयास के पश्चात भी, वह जो कुछ सोच रहा होता है वह नहीं कर पाता। तब निराश हो जाता है, और यह बात उस ईश्वर पर छोड़ देता है, जो उसने मेरे लिए सोचा होगा, होना तो वही है। और जो निरंतर सफल होते रहते हैं , इसका श्रेय वह अपने आप को ही देते हैं किंतु ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।
घर- परिवार को, समाज हो, या फिर देश की बात हो , सभी में सबसे पहले योजनाएं ही तैयार की जाती हैं वह अंत में कितनी कारगर सिद्ध होती हैं ?यह मानव की सोच पर, और उसके परिश्रम पर निर्भर करता है किंतु मेरा मानना है -''एक अच्छी सोच के साथ, यदि योजना तैयार की जाए , तो इंसान अवश्य ही सफल होगा। उस योजना में, अपना लाभ नहीं तो किसी का अहित भी नहीं होना चाहिए।'' बाकी तो ऊपर वाले के ही हाथ है, उसने भी तो कुछ हमें लेकर अपनी योजनाएं तैयार की हैं और मानव उसी के आधार पर जीवन में आगे बढ़ता रहता है। वह स्वयं ही नहीं जानता कि अपनी बनाई इन योजनाओं में वह कितना सफल हो पाता है और कितना नहीं ? किंतु तब भी वह अनेक योजनाएं बनाता और जीवन में आगे बढ़ता रहता है।