Vah todati patthar

 सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी की यह कविता -''वह तोड़ती पत्थर !

                                                      देखा, उसे मैंने, इलाहाबाद के पथ पर !

इसमें एक गरीब, श्रमिक महिला का चित्रण किया गया है , धनिक वर्ग और समाज की हृदय हीनता का  अंकन किया गया है। यह उस समय की बात है, किंतु क्या आज के समय में भी, समाज में, महिलाओं के प्रति हृदयहीनता नहीं दिखलाई जाती है। यह केवल गरीब श्रमिक महिला की ही बात नहीं है, महिला तो हर दशक में, हर समय में, पहले से ही परिश्रम करती आई हैं , त्याग करती आई हैं । यदि वह ग्रहणी भी बनकर रही है, तो अपने परिवार के लिए उसने अपना सर्वस्व बलिदान किया है। अपनी सोच, अपनी उड़ान , अपना अस्तित्व सब उस परिवार,अपनी  घर- गृहस्थी में खपा दिया किंतु कभी उस ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया क्योंकि वह सड़क पर पत्थर नहीं तोड़ रही थी। वो चारदीवारी के अंदर बंद नारी रही है ,क्या उसके प्रति समाज में, सम्मान था ? 


नारी तो वही है , आज की नारी, पढ़ रही है, आगे बढ़ रही है, परिश्रम कर रही है और समाज में अपने इस मान- सम्मान को ढूंढ रही है। वह चाहे, घर की चार दिवारी में बंद रहे, या फिर दफ्तरों की भीड़ बने , या फिर सड़कों पर श्रम करें,उसके प्रति समाज में कितने लोगो को उससे हमदर्दी होती है ?आज की नारी घर -परिवार ही नहीं ,किसी श्रमिक की तरह बाहर काम करने भी जाती है। नारी तो नारी है ,वो पढ़े -लिखे या फिर अनपढ़ रहे, अपने उत्तरदायित्वों को पूर्णतः निभाना जानती है। आजकल 'एकल परिवार' रह गए हैं  ,हालाँकि इसका दोषी भी आजकल की नारी को ही माना जाता है। उन्हें स्वतंत्रता पसंद है ,'संयुक्त परिवार' में रहना नहीं चाहतीं हैं ,ऐसे शब्दों से उन्हें सुशोभित किया जाता है किन्तु उनके उत्तरदायित्व कितने बढ़ गए हैं ? यह कोई नहीं देखता। हाँ ,यह बात अवश्य है ,वो शिक्षा के साथ -साथ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हुई है ,अब वह दबकर रहना नहीं चाहती ,गलत को गलत कहने का साहस करती है किन्तु उसके इस व्यवहार के कारण कई लोगों को अच्छा नहीं लगता। 

'संयुक्त परिवार' में ,कई महिलाएं होती थीं ,मिलजुलकर कार्य बाँट लेती थीं ,या करती थीं किन्तु आज अकेली ही,वह घर भी संभालती है और बाहर नौकरी भी करने जाती है ,यदि उसे नौकरी ही करनी है ,पैसा कमाना है तो अपने दुधमुँहे बच्चे को छोड़कर ,दफ्तर के लिए भागती है और वापस आकर घर भी संभालती है ,आते हुए रात के खाने में क्या बनेगा ?खाद्य पदार्थ लेकर आती है ,इतने पर भी उसके साथ किसको हमदर्दी है। वह तो चौबीसों घंटे की श्रमिक बनकर रह गयी है।इतने पर भी सास -ससुर का सम्मान नहीं करती ,उन्हें पास नहीं रखना चाहती ,इन्हें आजादी चाहिए ,भोजन बनाना नहीं चाहती इत्यादि लांछन लगाए जाते हैं। कभी प्यार से किसी ने यह नहीं पूछा दिनभर क्या किया ?तुम आराम करो !या हम तुम्हारी सहायता करते हैं ,कार्य से ज्यादा तो व्यंग्य चोट पहुंचाते हैं।  

 हाँ ,ये बात अवश्य है यदि परिवार मध्यम वर्गीय न होकर धनाढ्य की श्रेणी में आता है तो वह उस पैसे से अपने लिए सुविधाएँ जुटा सकती है किन्तु मध्यम वर्गीय नारी को इतने श्रम के पश्चात भी, क्या मिलता है ? अवहेलना ,बुराई ,अकेलापन। यहाँ भी अमीरी -गरीबी का ही अंतर् आ जाता है जिस अंतर् को दूर करने के लिए वह जी जान से जुटी रहती है और जब तक यह अंतर् थोड़ा करीब पहुंचता है ,तब तक न जाने कितने सावन वो बिन बरसात के ही बिता चुकी होती है। उस पर समाज की तो क्या ?परिवार की सहानुभूति भी नहीं होती क्योंकि इस बीच उसने न जाने कितने रिश्तों को ठेस पहुंचाई है या उन रिश्तों से स्वयं आहत हुई है। यह कोई नहीं कहता -                      वह दौड़ती सरपट ,पहुंची ,बस तक ,

                                 मैंने देखा उसे ,एक हाथ में छाता और दूजे में उत्तरदायित्वों का थैला !

                               जूझती ज़िंदगी से ,लड़ती महंगाई से ,सड़क पर टूटी चप्पल में दौड़ती सरपट !

                            एक तरफ महंगाई की मार है ,मन में इंकलाब है ,पीछे व्यंग्य और तानों की बौछार है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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