अंगूरी जानती है ,उसकी बेटी ने जो भी क़दम उठाया है ,वो हमारी तो क्या ,सामाजिक दृष्टि से भी सही नहीं है। किन्तु एक न एक दिन तो लोगों को पता चल ही जायेगा कि उनकी बेटी ने,शहर में क्या गुल खिलाया है ?किन्तु अपने सम्मान की रक्षा के लिए उसे गांववालों से कैसे ,कब और क्या कहना है ?वो मन ही मन सोच रही थी।
यह मानव प्रवृत्ति भी है , जब इंसान को लगता है- कि वह गलत है, तो आसानी से उस गलती को स्वीकार नहीं करता है '' तब वह, उस गलती को सही करने के लिए, नए-नए उपाय सोचता है, नए-नए तरीके अपनाता है ताकि वह अपनी उस गलती को सही ठहरा सके हालांकि उसका मन मानता है कि यह कार्य गलत है , या गलती तो हुई है। यही सब अंगूरी भी सोच रही थी, उसने धीरे-धीरे घर की सफाई भी कर ली थी। बेटा !छत पर सो रहा था, तब उसने प्रेम को आवाज़ लगाई और बोली - प्रेम !जरा देख तो, आज तेरे पापा क्यों नहीं आए ? वह तो इस समय तक चाय पी लेते हैं। कहीं ऐसे ही खेतों में न चले गए हों , दौड़कर जा और देख कर आ ! वे कहाँ हैं ?अभी तक नहीं आये।
प्रेम को नींद आ रही थी, गांव का बच्चा है सुबह ही उठ जाता था किंतु आज बहुत दिनों पश्चात अपने घर में आकर सोया है। उसका मन भी व्यथित था किंतु उसने इतना ध्यान नहीं दिया , सोच रहा था -जब माता-पिता ही कुछ ना कर सके तो मैं ही क्या कर लूंगा ? जो होना था हो गया। जबरदस्ती तो की नहीं जा सकती थी। अपनी मां को कार्य करते हुए देखकर, उसे आश्चर्य हो रहा था, ऐसी परेशानी में भी मां कितनी सहजता से सब कुछ सहन करते हुए, चुपचाप अपने दैनिक कार्यों में लगी हुई हैं , शायद वह समझता है, जिंदगी में कुछ ऐसे पल आते ही हैं जिनका इंसान को सामना करना होता है।
वह जानता है, मां, दीदी के जाने से आहत हुई है किंतु अपने आप को, व्यस्त करके अपने गम को भुला देना चाहती है, कुछ कर भी तो नहीं सकती। दीदी ने तो इतना भी नहीं सोचा , एक बार अपनी मां से आकर ही मिल लेतीं। कितनी जल्दी उन्होंने रिश्ते भुला दिए ?हालाँकि प्रेम अभी और सोना चाहता था, उसे आलस्य आ रहा था किंतु मां की तत्परता को देखते हुए वह चुपचाप उठकर पिता को देखने चला गया। कई कमरों में देखते हुआ वह उस कमरे में पहुंचा जहां वे अक़्सर सोते हैं। कुर्सी पर पिता को बैठे देखकर, उसने उन्हें आवाज लगाई और बोला -पापा !आज घर नहीं आए, मम्मी प्रतीक्षा कर रही हैं , वे परेशान हो रही थीं, चाय पीने भी नहीं आए। क्या आपकी तबीयत ठीक है ? कहते हुए वह आगे बढ़ा, किंतु पिता की कोई प्रतिक्रिया न देखकर, थोड़ा परेशान भी हुआ और उनकी कुर्सी के बेहद करीब पहुंच गया उसके पिता ऐसे बैठे हुए थे जैसे कुछ सोच रहे हैं, गहन चिंतन में हों। उसने अपने पिता को हिलाया और बोला -क्या सोच रहे हैं ? किंतु तभी उसके पिता का हाथ कुर्सी के हत्थे पर झूल गया और गर्दन एक तरफ को लुढ़क गई।
प्रेम को, विश्वास नहीं हो रहा था कि पिता को क्या हुआ है ? शायद, बेहोश हो गए हैं , यही सोचकर वह उन्हें सहारा देने लगा ताकि उन्हें चारपाई पर लिटा सके किंतु उसका प्रयास विफल रहा , अब उसे शक हुआ, पिता को बिस्तर पर लिटाकर वह बाहर की तरफ दौड़ा। बाहर पड़ोस के काका चेतराम अपने कार्य में व्यस्त थे , घबराते हुए, वह उनके पास पहुंचा, प्रेम को देखकर वह स्वयं ही बोल उठे- क्या बात है ?
प्रेम की घबराहट इतनी बढ़ गई थी, वह बोला -काका !देखना पापा को क्या हुआ है ? कहते हुए रोने लगा।
तू घबरा मत ! मैं अभी तेरे साथ चलता हूं , कल तक तो वह ठीक था। वह प्रेम के साथ, उनके घेर तक आए, रामखिलावन को निढाल बिस्तर पर पड़े देखकर, उसे कुछ आशंका हुई, और वह बोला -रामखिलावन क्या हुआ है ? कहते हुए ,उसकी नब्ज टटोली और नाक पर हाथ रखकर, उसकी सांसों को महसूस करने का प्रयास करने लगा किंतु रामखिलावन न जाने, कब का इस दुनिया को छोड़कर जा चुका था ? तब उन्होंने प्रेम से पूछा -तू कब आया ?
मैं तो अभी आया था, कुर्सी पर बैठे हुए थे , मैंने सोचा -शायद तबीयत बिगड़ गई है इसीलिए बिस्तर पर लिटाया। इनकी तबीयत के विषय में पूछना चाहा ,किंतु बोले नहीं।
बोलेगा कैसे ? अब यह इस दुनिया में ही नहीं है , यह बहुत दूर जा चुका है, कहते हुए चेतराम काका भी रोने लगे।
प्रेम को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था, उसकी सोचने- समझने की शक्ति, जैसे समाप्त ही हो गई थी अभी इतनी बड़ी परेशानी का सामना करके आए हैं और अब इस समय पिता की मृत्यु का आघात ! वहीं बैठ गया और दहाड़े मारकर रोने लगा। पापा ! यह आपने क्या किया ? हमें अकेला छोड़कर क्यों चले गए ? हम भी तो आपके साथ थे , अब मम्मी का क्या होगा ? अनेक प्रश्न उसके ज़ेहन में आ रहे थे किंतु जवाब देने वाला कोई नहीं था। वह जवाब चाहता था किंतु जिसके पास जवाब थे, वह इस दुनिया में ही नहीं था। शायद, वह निरुत्तर था इसीलिए इस दुनिया से चला गया। प्रेम को तो स्मरण ही नहीं रहा कि मां ने, पिता को बुलाने के लिए भेजा था जब उसे यह बात स्मरण हुई तब सोचने लगा -अब मैं घर जाकर मां को क्या जवाब दूंगा ? उसका साहस ही नहीं हुआ, कि वह घर जाए।
तब धीरे-धीरे वहां पर लोग इकट्ठा होने लगे। धीरे-धीरे गांव में बात फैलते हुए घर तक, स्वयं ही पहुंच गई। अंगूरी ने सुना तो सहन न कर सकी ,रात भर की भूखी भी थी ,वहीं गिर पड़ी। मोहल्ले की महिलाओं ने उसे संभाला। एकाएक इस परिवार को क्या नजर लग गयी ? कल ही तो ये लोग अपनी बेटी से मिलकर आये थे किन्तु इनके चेहरों पर कोई ख़ुशी नहीं थी। अवश्य ही, वहां कुछ हुआ है।
तुम्हें कैसे लगा ?कि वहां कुछ हुआ है।
तीनो के चेहरे बता रहे थे, जैसे ख़ुशी -ख़ुशी यहां से गए थे ,वैसे वापस नहीं आये।
तुमने पूछा नहीं ,रामकली बोली।
पूछती तो तब ,जब मौका मिलता ,आज ये हादसा हो गया। अंगूरी की तरफ देखते हुए वो महिला बोली।