अंगूरी को जब पता चला, कि रामखिलावन अब इस दुनिया में नहीं रहा। वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकी और वहीं बेहोश हो गई। उसके गांव की और मोहल्ले की महिलाओं ने उसे संभाला, उधर प्रेम का भी यही हाल था। प्रेम बेहद घबराया हुआ था, उसे तो यह भी स्मरण नहीं रहा कि इस समय उसकी मां की क्या हालत हो रही होगी ?उसे यह सूचना किसी ने दी भी होगी या नहीं। अपने ही गांव के पड़ोसी काका से लिपटकर रो रहा था। कुछ बुजुर्ग उसे धैर्य और साहस से काम लेने के लिए कह रहे थे। अंगूरी के पास आई सभी गांव की महिलाएं ,आपस में चर्चा कर रही थीं। न जाने ,इस परिवार को क्या हुआ है ? जब से यह लोग अपनी बेटी से मिलकरआए हैं, तब से, कुछ परेशान ही नजर आ रहे हैं रामकली ने अपने साथ वाली महिलाओं को बताया।
तुम तो इनके ज्यादा ही करीब हो ,क्या तुमने, उनकी परेशानी का कारण जानना नहीं चाहा।
पूछना तो चाह रही थी किंतु कल ही तो यह लोग आए थे और आज यह हादसा हो गया,समय ही नहीं मिल पाया। कुछ न कुछ बात तो अवश्य है ,शंका से बोली - क्या किसी ने डॉक्टर को बुलाया है ?
हां, मेरी पोती वैद्य जी को बुलाने गई है, अभी आते ही होंगे। दुख का विषय तो है ही, अभी न ही बेटी का विवाह हुआ और न ही कहीं बेटा लगा है, चलो ! वह तो खेती संभाल लेगा। इस कम उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी आ गई है, बेचारा बच्चा ! न जाने कैसे करेंगा ?सहानुभूति से बोली - इसके मुंह पर ताजे पानी के छींटे तो मारो ! शायद ,होश में आ जाये ,शरबती बोली।
अभी ऐसे ही रहने दो ! उठ गई, तो फिर रोएगी ही, ज्यादा दुखी होगी, वैद्य जी आ जाएंगे तो कोई अच्छी सी दवाई दे देंगे, जिससे इसके मन को भी राहत मिलेगी रामकली ने सुझाव दिया।
अब तुम ही बताओ ! सुनीता ने अपनी चचेरी बहन परिणीति से पूछा -रामखिलावन के परिवार के साथ क्या यह अच्छा हुआ ? उसने अपने बच्चों की परवरिश में ऐसी क्या कमी छोड़ दी थी ? जो उसे यह दिन देखना पड़ा।
मैं मानती हूं, उसके साथ सही नहीं हुआ है किंतु यह भी तो जरूरी नहीं, कि यह कार्य कोई पढ़ी-लिखी लड़की ही कर सकती है ,यह कार्य तो कोई अनपढ़ भी कर सकती थी। इसका उसके पढ़े -लिखे होने से, क्या फर्क पड़ता है ?
उनके अनुसार, पढ़ने के लिए उन्होंने सरस्वती को शहर में भेजा और शहर में उसे कोई रोकने- टोकने वाला नहीं था। वह स्वतंत्र जीवन जी रही थी, किसी से भी मिलना और उससे बातचीत करना, जो कि उसके लिए उचित नहीं रहा। साथ में माता-पिता होते तो,- गलत सही के लिए उसका मार्गदर्शन कर सकते थे किंतु ऐसा नहीं हुआ। शिक्षा के माध्यम से उसकी सोच विस्तृत हुई, और उसका जीवन को देखने का, जीने का,दृष्टिकोण ही बदल गया। उन्हें तो लगता है, यदि वह माता-पिता की छत्रछाया में रहती, तो ऐसा कदम उठाने से पहले, कई बार सोचती। हो सकता है, ऐसा कदम उठाने का प्रयास ही न करती।
इसका मतलब यह तो नहीं कि किसी के जीवन को, बांध दिया जाए ,'स्वतंत्रता हर इंसान को पसंद है यहां तक की पंछी भी स्वतंत्र जीवन जीना पसंद करते हैं, पिंजरे में कोई नहीं रहना चाहता।
किंतु तुम यह नहीं देख रही हो, कि उस स्वतंत्रता का, उचित लाभ हुआ है या अनुचित हम लोगों [नारी जाति ]को आजादी मिली है, शिक्षा ग्रहण करने की,आगे बढ़ने की ,उन लोगों का विचार था कि एक ग्रहणी पढेगी , तो उसके साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्य भी, जागरूक और शिक्षित होंगे। वह अपना गृहस्थ जीवन सुचारु रूप से चला सकती है। घर- गृहस्थी में तो योगदान करती ही है , समयानुसार वह बाहर जाकर भी, अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर, उस गृहस्थी को आगे बढ़ाने में उसका सहयोग कर सकती है। किंतु इसके कुछ दुष्परिणाम सामने आए हैं। जिसके कारण उन लोगों ने, अपने गांव के कुछ नियम बदले हैं।
यह तुम क्या कह रही हो ? कोई सौ में से एक केस हो गया, तो इसका अर्थ यह तो नहीं, सभी को पिंजरे में बंद कर दिया जाए, सभी की स्वतंत्रता छीन ली जाए, सभी की सोच पर पाबंदी लगा दी जाए परिणीति उत्तेजित होते हुए बोली।
यह ऐसा, एक केस नहीं है , कई केस ऐसे हुए हैं, जिनके कारण उस गांव की पंचायत ने लड़कियों के प्रति कुछ नियम बना दिए। मैं मानती हूं, कि अंतर्जातीय विवाह तो गांव में रहकर, कोई भी कर सकता है, या सोच सकता है उसका उन गांव वालों ने, दंड भी दिया है। दंड का प्रावधान इसीलिए तो बनाया जाता है , कि दंड के ड़र से, कोई भी गलत कार्य करने से पहले, इंसान चार बार सोचेगा।
ऐसा नहीं होता है, यह उम्र ही ऐसी होती है, यदि सोच- समझकर बच्चा कार्य करेगा, तो हम बड़े किसलिए हैं ?परिणीति बोली।
ये बात अब तुमने सही कही ,यदि बच्चे गलती करते हैं ,तो हम बड़े ही उन्हें समझाते ,रोकते -टोकते हैं।
ये बात मैं भी मानती हूँ ,दण्ड के भय से ऐसा कार्य करेगा ही नहीं, इस उम्र में, इंसान वही करने का प्रयास करता है, जिस पर उसे पाबंदी होती है। उसे रोका जाता है, कुछ ऐसा कार्य करना चाहता है जो अन्य लोगों की सोच के विपरीत हो और यह प्यार- मोहब्बत, यह तो ऐसी चीज हैं , इंसान सोच -समझकर नहीं करता, उम्र की मांग के आधार पर, उस ओर स्वतः ही खिंचा चला जाता है। मेरी बात मानो तो, रामखिलावन को समाज का और अपने गांव के लोगों का डर था , अपने मान सम्मान और इज्जत के लिए, उसने ऐसा कदम उठाया। उसे तो तब भी विवाह करना था, वह चाहे किसी से भी हो। अब उसने विवाह कर लिया तो कर लिया।यदि वह अपनी बेटी की ख़ुशी देखता तो अपने आप ही उस रिश्ते के लिए हामी भर देता।
दंड के भय से तो हर कोई कार्य करता है किन्तु इसमें उस इंसान की स्वतंत्रता कहाँ हैं ?
क्या बच्चे को माता -पिता की कोई परवाह नहीं होनी चाहिए ?क्या ,बच्चों का कोइ भी उत्तरदायित्व नहीं बनता है ? माता -पिता की भावनाओं का ख़्याल भी तो रखना चाहिए। उनका मान -सम्मान बनाकर रखना चाहिए। एक पिता होने के नाते वह समझता था कि बेटी की ख़ुशी ही नहीं ,वरन उसका सम्पूर्ण जीवन कहाँ सुरक्षित है ?जब उसे पाल -पोषकर इतना बड़ा किया है तो जानते बुझते उसके जीवन को गर्त के अंधेरों में तो नहीं धकेलेगा।
परिणीति और सुनीता दोनों अपने -अपने विचार यहां प्रस्तुत कर रहीं हैं ,उनके तर्क के मध्य आपके विचार क्या कहते हैं ?दोनों में कौन सही है ?अपनी समीक्षा दीजियेगा ,चलिए आगे बढ़ते हैं।