ठंडी हवा के झोंके सी ,वो ! मोहल्ले में आई।
आते ही उसने ,सौंदर्य से अपने हलचल मचाई।
देख, हमारी हरकतें , बीवियां हमारी कुम्हलाई।
उसके आते ही ,लगा जैसे,पड़ोस में बहार आई।
आँचल जो उसका लहराया ,चंचल मन हर्षाया।
ठंडी हवा के झोंके ने ,न जाने क्या जादू चलाया ?
मन को अब चैन न आये ,मन अपना, इठलाया।
सुगन्ध का इक झोंका,पड़ोसन की याद दिलाता।
ठंडी हवा के झोंके , मन में नवीन उमंगे जगाते।
पड़ोसन ने ये कैसी, अलख जगाई ? देख न लें ,
जब तक मुखड़ा उस पड़ोसन, का नींद न आये।
केश वो लहराए ,लागे सीने पर सर्प ठहर जायें।
उसकी तस्वीर आँखों में भर, अपनी पत्नी को ,
भर बाँहों में, हम उसे मोहब्बत के पैग़ाम सुनायें।
वो बसंत बहार लगे, बोले- कोयल की पुकार लगे।
चाहत तो इतनी न जाने मन क्या -क्या सोच बैठा ?
बाहर कैसे जाएँ घर की रोटी से ही पेट भर पाये ?
ठंडी हवा के झोंके जब मेरे...... अंगना में आये।
मन की वीणा, बिन तार ही.... कोई धुन सुनाये।