पुनिया गांव में ,बच्चों की खेल प्रतियोगिता में ,लड़कियां जीत जाती है और वहां के प्रधान जी,उस गांव की बेटियों का उत्साहवर्धन करने के लिए ,अच्छा भाषण भी देते हैं। तब उस गांव के विद्यालय की अध्यापिका सुनीता को समझ नहीं आ रहा था ,उसके मन में रह -रहकर प्रश्न उठ रहे थे -इस गांव के लोग कैसे हैं ?एक तरफ तो वो बच्चियों का विवाह कर रहे हैं ,दूसरी तरफ उन्हें खेल में ,शिक्षा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। कुछ समझ नहीं आ रहा,यही शंका वो उसी विद्यालय के प्रधानाचार्य जी से करती है।
तब वो कहते हैं - जहाँ तक मैं समझता हूं, आप अपनी जगह सही हैं किंतु ये लोग भी गलत नहीं हैं, अपनी बेटियों को सुरक्षा देना चाहते हैं। आजकल का परिवेश बहुत कुछ बदल गया है, किंतु आजकल की पीढ़ी , हमारी ही नहीं ,उनकी अपनी है , सभ्यता- संस्कृति को दकियानूसी कहकर झुठला देना चाहती है।ये यहाँ की बच्चियों को पढ़ाना भी चाहते हैं किन्तु इस काबिल ही बनाना चाहते हैं ताकि वो अपना अच्छा -बुरा समझ सके। इस गांव में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनके कारण इन्होने बेटियों की सीमाएं तय कर दीं। कभी देवयानी जी से मिलना ,तब तुम्हारे सभी सवालों का जबाब आपको मिल जायेगा। क्या आप जानती हैं ?देवयानी जी साइंस में परा स्नातक है वो सभी बातों को बड़ी सहजता और सरलता से सुलझा लेती है।
क्या बात कर रहे हैं, सर ! देवयानी जी इतनी पढ़ी- लिखी हैं किंतु लगता तो नहीं हैं।
वो इसीलिए कभी उन्होंने अपनी शिक्षा का प्रदर्शन नहीं किया ,शिक्षा ज्ञान के लिए होती है ,न कि दिखावे के लिए।
उन्होंने कभी कोई कार्य करने का प्रयास भी नहीं किया।
चौधरी साहब ! पढ़ी-लिखी लड़की तो चाहते थे किंतु नौकरी वाली नहीं चाहते थे। वह चाहते थे, कि जो भी उनकी अर्धांगिनी बने, वह घर- परिवार को ही, सुचारू रूप से संभाल सके। इसके लिए उन्होंने देवयानी से पूछ भी लिया था कि उसे इस तरह घर में रहकर घर को संभालना है, कोई आपत्ति तो नहीं होगी। देवयानी ने सहर्ष यह बात स्वीकार कर भी ली थी। तुमसे ये किसने कह दिया ? वो कोई कार्य नहीं करतीं, यदि कोई बेटी पढ़ - लिख भी जाती है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि उसे नौकरी ही करनी है। वह शिक्षित है, कोई भी कार्य अपनी रुचि के अनुसार कर सकती है। देवयानी भी, घर में रहकर ही, आसपास की महिलाओं से, कार्य करवाती है , और उसे अच्छे दामों पर बेचकर, अच्छा मुनाफा कमा लेती हैं , इस बहाने गांव की महिलाओं को रोजगार भी मिल गया और अतिरिक्त आमदनी भी हो गई।उनकी कार्यकुशलता का लाभ उठा ,अपनी शिक्षा का सदुपयोग भी करती है और परिवार का ख्याल भी रखती है।
अच्छा !!!! सुनीता आश्चर्य से बोली।
हाँ ,तुम उनके पास जाना या फिर ''दृष्टि कुटीर उद्योग ''चली जाना वहीं पर वो तुम्हें मिल जाएँगी।
अच्छा !!!यहाँ कोई कुटीर उद्योग भी है किन्तु मुझे पता ही नहीं चला।
पता कैसे चलेगा ?तुम गांव के विद्यालय या यहीं आस -पास जाती हो ,वह कुटीर उद्योग उनके घर के पीछे ही है। जब किसी को जानने का प्रयास करोगी ,तभी तो जानोगी। अच्छा ,अब ये छोडो !आज बच्चों का बहुत मनोरंजन हो गया। मैं सोच रहा था ,क्यों न बच्चों छुट्टी कर दी जाये ?
जैसी आपकी इच्छा !किन्तु अभी बच्चों का पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हुआ है ,उसके पश्चात ''बसंत पंचमी ''की भी छुट्टी होगी या उस दिन.......
हाँ ,उस दिन तो गांव में झांकी निकाली जाएगी ,क्या सब तैयारियाँ हो चुकी हैं ?
जी ,अभी थोड़ी बाक़ी हैं।
तब तो कल की छुट्टी तय रही और जो उस दिन की तैयारियां कर रहे हैं ,कल अपना कार्य आकर पूर्ण कर लेंगे।
जी सर ! हमारी तो कल की छुट्टी भी मारी गयी ,उदास होते हुए सुनीता बोली।
मैडम !पढ़ाने के समय आप अपना कार्य कर सकती हैं और जितना शीघ्र यह कार्य होगा ,आप भी अपने घर जाकर आराम कर सकती हैं।
जी मैं अभी जाती हूँ ,कहकर सुनीता अपने घर पर आई ,आकर थोड़ी देर के लिए बिस्तर में लेट गयी ,दिनभर की थकी हुई थी ,भूख भी लग रही थी किन्तु खाना बनाने का मन नहीं था। सोचते -सोचते न जाने उसे कब नींद आ गयी ?जब उसकी आँख खुली तो उसके फोन की घंटी बज रही थी ,अलसाते हुए उसने फोन उठाया ,न जाने किसने फोन किया है ?यह देखने के लिए वो फोन उठाती है। फोन उसकी बेटी ने किया था -हैलो ,मम्मी !
हाँ ,बेटा !कैसी हो ?
मम्मी मैं ठीक हूँ ,अब आप पूछेंगी ,भइया !कैसा है ?मैं पहले ही बता देती हूँ वो भी ठीक है। उसकी बात पर सुनीता को हंसी आ गयी।
अच्छा बताओ !क्या कर रही हो ?
मम्मी ! अब हमारी परीक्षाएं आने वाली हैं।
कब से हैं ?चिंतित होते हुए सुनीता ने पूछा।
अभी पंद्रह दिन हैं ,
किन्तु तैयारी तो अभी से आरम्भ करनी होगी। तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है ?
हमारी पढ़ाई ठीक चल रही है ,आप चिंता न करें ,किन्तु आप कब आ रहीं है ?कम से कम हमारी परीक्षा के समय तो आप यहाँ आ जाइये। पापा !अकेले पड़ जाते हैं।
बेटी की बातें सुनकर सुनीता चिंता में पड़ गयी,सही तो कह रही है ,ऐसे में संदीप कैसे सब संभालेंगे ?तब वह बोली -ठीक है ,मैं यहाँ से छुट्टी लेने का प्रयास करूंगी ताकि परीक्षा के समय तुम लोगों के साथ रह सकूँ। उसने बेटी को सांत्वना देने के लिए, यह कह तो दिया कि वह छुट्टी ले लेगी किंतु उसे छुट्टी मिलेगी या नहीं, इस बात की उसे शंका है। बेटी निश्चिंत होकर फोन काट देती है, सुनीता, रसोई घर में कुछ खाने के लिए बनाने चल देती है। मन ही मन सोच रही थी-अभी 2 वर्ष बाकी हैं , यह भी किसी तरह से कट जाएं , तो मैं वहीं आसपास के लिए अपना स्थानांतरण करवाने का प्रयास करूंगी।
सरकारी नौकरी है, किंतु इस नौकरी के कारण वह, अपने बच्चों से दूर यहां इस गांव में रह रही है। अब उसे लग रहा है -कि वह' दो पाटों में फंसकर' रह गई है।
एक दिन, उसकी मम्मी का फोन भी आया था, कह रही थीं -' यह कैसी जिद है ? सुनीता ! तुम्हारे छोटे-छोटे बच्चे बिन मां के बच्चों की तरह पल रहे हैं। दामाद जी, को दोगुनी मेहनत करनी पड़ेगी। वह घर संभाले या नौकरी करने जाएं।