पुनिया गांव में खेल का आयोजन हो रहा है, यह बात अवश्य है कि इस गांव में, कुछ न कुछ नया होता ही रहता है, देखा जाए तो यह अपनी विशिष्टता के लिए, जाना जाएगा। इस गांव के लोग जहां अब बेटियों की उच्च शिक्षा के विरुद्ध हैं , वहीं अपने ही गांव के आंगन में, उन्हें खेलने और आगे बढ़ने देते हैं। इस गांव के लोग अपने ही नियम बनाते हैं, जो उनके गांव की उन्नति और भलाई के लिए हो। इसी प्रकार आज गांव में एक नई योजना बनाई है। यह भी शायद गांव के इतिहास में लिखा जाए। आज गांव की प्रतियोगिता में, एक ऐसी प्रतियोगिता होने जा रही है जो अपने आप में अनूठी होगी और वह प्रतियोगिता है, ''पतंग उड़ाना'' लड़के और लड़कियों के मध्य यह प्रतियोगिता होगी। पहले तो गांव वाले इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे किंतु प्रधान जी के समझाने पर समझ भी गए।
सभी में एक नया उत्साह था, बेटियों को भी, आगे बढ़ने देना चाहते थे लेकिन एक सीमा तक ,आज तक यह प्रतियोगिता इस गांव में नहीं हुई है, हो सकता है ,आसपास के गांव में भी नहीं हुई हो। यह प्रतियोगिता ही अनूठी है। प्रतियोगिता के नियम बनाए गए और लड़के- लड़कियों का समूह अपने-अपने स्थान पर पतंग उड़ाने के लिए तैयार हो गया। यह सूचना संपूर्ण गांव में फैल गई और देखने वालों की भीड़ लग गई गांव में जो लोग नहीं आए थे। वह भी इस प्रतियोगिता को देखने के लिए आने लगे। दृष्टि अपने समूह में,खड़ी थी , उसके साथ उसकी अन्य सहेलियां भी थीं। सबको पतंग दे दी गई किन्तु समय को देखते हुए उनकी संख्या कम कर दी गयी। अब छह पतंगों की ही प्रतियोगिता हो रही है ।
प्रतियोगिता आरम्भ हुई ,सभी को विश्वास था कि ये बच्चियाँ भला कहाँ जीत पाएंगी ? लड़के हों या लड़कियां, सभी को तालियों के माध्यम से ,उत्साहित किया जा रहा था, जीतने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। जीते कोई भी, लेकिन खेल का आनंद लेना चाहिए। रंग- बिरंगी पतंगें आसमान में उड़ने लगीं। कुछ लड़के भी हंस रहे थे, कि यह क्या प्रतियोगिता हो रही है ? उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि इस तरह लड़कियां ये खेल भी खेल सकती हैं। सबकी निगाहें, ऊपर आसमान पर लगी हुई थीं और उड़ती हुई पतंगों को देख रहे थे। लगभग 12 पतंगे आसमान में उड़ रही थीं ,अभी जनता उस खेल का आनंद ले ही रही थी। तभी रुची की एक पतंग कट गई। शोर मचाने लगा -वो काटा ! वह उदास हो गई।
तब दृष्टि उससे बोली -चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है , अब तुम देखना, उनकी एक पतंग के बदले, मैं कितनी पतंगें काटती हूँ। दृष्टि दूने उत्साह के साथ पतंग उड़ा रही थी। तब तक चौधरी अतर सिंह जी भी आ चुके थे। उनको देखकर, प्रधान जी ने उन्हें अपने पास बुलाया और हंसते हुए बोले - बच्ची को, यह क्या आदत डाल दी है ?
हंसते हुए चौधरी साहब बोले - बड़ी जिद्दी है, जो बात ठान लेती है वह करती है, पिछले साल उदास थी अपनी मां से कह रही थी -'जो कार्य लड़के करते हैं ,वही कार्य लड़कियाँ भी कर सकती हैं, तो क्या पतंग उड़ाना लड़कों का ही कार्य है ? आपको मालूम है ,हमारी टीचर ने बताया -'लड़कियां आजकल हवाई जहाज भी उड़ाती हैं ', मैंने हवाई जहाज उड़ाने के लिए नहीं कहा किंतु मुझे पतंग भी नहीं उडाने दी। तब उसकी मां ने हंसते हुए कहती है -' कोई बात नहीं, तू यहां उड़ा ले। तब से ही यह पतंग उड़ाने का अभ्यास कर रही थी , मुझे क्या मालूम था? कि यह प्रतियोगिता की तैयारी कर रही है , इसमें अपने साथ अन्य लड़कियों को भी लगा दिया। अच्छी बात है, बच्चों में उत्साह होना चाहिए, किसी भी कार्य को करने की लगन होनी चाहिए।
बेटी को सोच- समझकर बढ़ावा दीजिए , आगे इसकी ज़िद कुछ गलत न कर दे।
अब बेफिक्र रहिये ! जब तक ऐसा समय आएगा, तब यह अपनी ससुराल चली जाएगी।'' पिता का आंगन है, खेलने दीजिये''। आगे जाकर, वहीं रहना है और घर को संभालना है। लड़कियों की तीन पतंगे और कट चुकी थीं और लड़कों की अब तक दो ही पतंग कटी थीं। सबको लग रहा था, निर्णय स्पष्ट है तब भी, दृष्टि का विश्वास नहीं डगमगाया और वह पूरी तन्मयता से पतंग उड़ाती रही , अब दोनों तरफ एक-एक पतंग बची थी। सभी मन ही मन सोच रही थे - आखिर अब क्या होगा ? पहले लड़के जीतते नजर आ रहे थे, किंतु धीरे-धीरे बराबरी पर आ गए।अब लोग सोचने पर ,विवश हो गए कि ये बच्चियां भी, अच्छे से पतंग उड़ा रहीं हैं। तभी एक पतंग और कट गई और लोगों में शोर मच गया। एक पतंग अभी भी आसमान पर लहरा रही थी।
तब प्रधान जी !उत्साहित और प्रसन्न होते हुए ,बोले - बड़ा ही रोमांचक, खेल रहा, सच में बताया जाए तो हम किसी को भी, इस बात की उम्मीद नहीं थी कि लड़कियां जीत जाएँगी किंतु दृष्टि बिटिया ने यह सब कर दिखलाया। उसकी बात सही है, आज की लड़कियां बहुत कुछ कर रही हैं, लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए हम बढ़ावा देते हैं, किंतु बेटियों को सभी कार्य सीखने चाहिए। बेटियों को, अपनी ससुराल भी जाना है, शिक्षा के साथ-साथ गृह कार्य भी सीखने चाहिए।'' एक बेटी पढ़- लिख कर, एक सभ्य और आदर्श परिवार की रचना करती है और'' ऐसे परिवारों से मिलकर ही ,एक स्वस्थ मानसिकता वाले समाज का निर्माण होता है।''यही समाज देश की उन्नति में सहायक भी होता है। इसलिए बेटियों का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है किंतु हमारी इन बेटियों की कुछ सीमाएं हैं ,इस सीमा तक वह अपना कार्य कर सकती हैं। जिस प्रकार हमारी बेटियां खेल के दायरे में रहकर जीती हैं ,उसी प्रकार वे आगे जीवन में भी अग्रणी रहेंगीं। मैं उम्मीद करता हूं , हमारी बेटियां इसी तरह उन्नति करती रहेगीं , फलती - फूलती रहेगी।प्रधान जी के भाषण देने के पश्चात दृष्टि के समूह को इनाम दिया गया।
सुनीता को उस गांव की बातें कुछ समझ नहीं आ रही थीं ,एक तरफ तो यह लड़कियों को आगे बढ़ने देना नहीं चाहते, शहर में रहकर, पढ़ने देना नहीं चाहते और दूसरी तरफ उन्हें उन्नति का संदेश देते हैं, आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। कुछ समझ नहीं आ रहा। यह बात उन्होंने अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य जी से पूछा ।
तब प्रधानाचार्य जी सुनीता की जिज्ञासा कैसे शांत करते हैं ?आइये ! आगे बढ़ते हें।