Shaitani mann [part 49]

कॉलिज में ,नितिन का दिल नहीं लग रहा है ,उसका मन हमेशा बेचैन सा रहता है। जिस उद्देश्य से वो इस कॉलिज में आया है ,वह उद्देश्य भी न जाने कहाँ खो गया ? मन का पंछी कहीं दूर उड़ जाना चाहता है ,कॉलिज से बाहर दोस्तों संग बाहर आता है किन्तु वह तो ,भीड़भाड़ से दूर कहीं एकांत में जाना चाहता है। जहाँ उसके बेचैन मन को सुकून मिल सके। जहाँ सुनसान वीराना है ,वह उस तरफ बढ़ चला ,उसके साथ रोहित और सुमित भी थे किन्तु तुरंत ही उन्हें एहसास हुआ कि हम गलत राह पर जा रहे हैं। अरे! हम इधर क्यों जा रहे हैं ?इस वीराने में क्या हमें भूतों से मिलने जाना है ?चलो !वापस !कहीं ओर चलते हैं। 

यहाँ कितनी ख़ामोशी है ,अपने दिल की आवाज सुनने में कोई परेशानी नहीं होगी, शांत लहज़े में नितिन बोला। 


अबे ! ये दिल की आवाज तू सुन !उस बंदी ने अभी इससे प्यार का इज़हार भी नहीं किया किन्तु ये उसके लिए मजनू बना बैठा है।

तुम लोग जाओ !मैं अभी यहीं रहना चाहता हूँ। 

चल !कोई अच्छी सी फ़िल्म देखकर आते हैं ,या फिर किसी होटल में जाकर मज़े करते हैं ,सुमित बोला किन्तु नितिन ने कोई जबाब नहीं दिया।

नितिन कुछ आगे बढ़ते हुए बोला - तुम लोग चले जाओ !मैं अभी यहीं टहलूंगा। 

हम वापस चलते हैं ,इसे यहीं घूमने दो !कहते हुए रोहित ने सुमित का हाथ पकड़ा और उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। हम लोग वापस जा रहे हैं ,क्या तू आएगा ?

नहीं ,मैं थोड़ी देर यहीं रहकर वापस हॉस्टल चला जाऊंगा ,तुम लोग जहाँ भी जाना चाहते हो ,जा सकते हो ,मेरे कारण क्यों अपनी शाम खराब करते हो ?

ठीक है ,हम हॉस्टल में ही मिलेंगे,कहकर उन्होंने अपना रास्ता बदल दिया। नितिन उस सूने रास्ते पर ,चुपचाप चले जा रहा था किन्तु उसे कहाँ जाना है ,क्यों जा रहा है ? वह नहीं जानता है किन्तु उसमें भी उसे थोड़ी शांति का एहसास हो रहा था। ठंडी हवा के झोंके उसके चेहरे से टकरा रहे थे ,जिन्हें वह महसूस करना चाहता है,अपनी आँखें मूंदकर खड़ा हो गया।  तभी एक अजीब सी खुशबू का एहसास उसे हुआ। वह जैसे सोते से जगा और आसपास नजरें घुमाकर देखने लगा ,आख़िर ये खुशबू किस चीज की है ?जैसे -जैसे वह आगे बढ़ रहा था ,वह गंध तीव्र होती जा रही थी। पता तो लगाना ही होगा ,आखिर ये गंध कैसी है ?वह उस गंध के कारण अपने मन का दुःख ,सौम्या की स्मृति सब भूल गया था ।

 एक जगह उसे कहीं से कुछ मंत्रोच्चारण सुनाई दे रहे थे,वह आवाज की दिशा में बढ़ चला। उसे लग रहा था ,जैसे वह स्वयं ही उस दिशा की ओर खिंचता चला जा रहा है। उसने देखा ,एक कच्चा घर है ,उधर से ही रौशनी भी आ रही थी। नजरें घुमाकर नितिन ने आसपास देखना चाहा ,ताकि वह उस स्थान की  पहचान कर सके किन्तु वहां पेड़ों के सिवा आस -पास कुछ भी नहीं था। वहीं से वह खुशबू और मंत्रोच्चारण के स्वर भी गूँज रहे थे। वह अंदर गया ,वहां एक सन्यासी कुछ हवन जैसा कर रहा था। नितिन को देखते ही बोला -आओ ! नितिन भी आगे बढ़ गया और उसके सामने बिछाए आसन पर बैठ गया। वह फिर से अपनी विधि करने लगा। कुछ देर पश्चात वो बोला -किसी ने दिल दुखाया है ,वह पीड़ा सहन नहीं हो रही ,रोने का दिल कर रहा है ,तो रो लो !तुम्हारी ज़िंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है ,प्रयास यही करना सही राह चुन सको !तो जीवन संवर जायेगा। रोने से दिल हल्का होगा और तुम मजबूत बनोगे। बरबस ही नितिन की आँखों से अश्रु बहने लगे ,वह उन्हें रोक लेना चाहता था किन्तु आंसू थे कि रुक ही नहीं रहे थे। 

अरे तू उठता क्यों नहीं ? क्यों, रोए जा रहा है ? नितिन को लगा, जैसे कोई उसे बुरी तरह से झिंझोड़ रहा है। किंतु उसके अश्रु रुक नहीं रहे हैं। जैसे ही उसकी आंखें खुलीं उसने अपने को बिस्तर पर पाया। उसे सुमित उठा रहा था और उससे पूछ रहा था -तू रो क्यों रहा है ?

जैसे ही, नितिन ने आंखें खोलीं , उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही उसने अपने आप को अपने बिस्तर पर पाया। ऐसे कैसे हो सकता है ? वह तो उस सन्यासी की कुटिया में था। उसे संपूर्ण स्वप्न स्मरण हो आया। मैं यहां कैसे ? मैं तो तुम लोगों के साथ, बाहर घूमने गया था और तुम लोग मुझे छोड़कर, अकेले ही फिल्म देखने चले गए थे।

 वही तो हम भी तुझसे पूछ रहे हैं , हमें तूने भेज दिया और तू यहां आकर सो गया। 

नहीं, मैं सोया नहीं था , मैं तो उस कुटिया..... में गया था स्मरण करके बोला। मैं तो इस साधु के साथ था। 

उसके साथ था तो यहां कैसे आ गया ? जब हम लोग यहां आए, तो तू सोया पड़ा था और रो रहा था। 

हकीकत और सपना दोनों में अंतर नजर नहीं आ रहा था, क्या वास्तविकता थी और क्या स्वप्न था ? वह  कुछ भी नहीं समझ पा रहा था।  मैं पूरे तो होशो-हवास में था फिर मैं यहां कैसे आया ? उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह उसका स्वप्न था। वह एकदम शांत हो गया, समझ नहीं पा रहा था यह स्वप्न था कि  हकीकत किंतु दोस्तों के सामने कुछ साबित भी तो नहीं कर सकता था। 

वैसे तू बता !तू रो क्यों रहा था ? रोहित ने पूछा । 

उसे, संन्यासी ने जो कहा था, कि रो लो !

हां, इसीलिए कहा होगा , तो अपने दिल पर इतना बड़ा बोझ लिए जो घूम रहा है, जिसके कारण तेरा दिल हल्का हो जाएगा वह भी समझ गए होंगे कि तेरी जिंदगी में सौम्या का आना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। मेरा कहा मान ! तू अब उसे भूल जा ! वही तेरे लिए अच्छा होगा। कहते हुए रोहित ने घड़ी में समय देखा रात्रि का 1:00 बज रहा था, बोला -अब सो जाते हैं, वरना सुबह उठा नहीं जायेगा। 

वे दोनों लेट गए, नितिन भी लेट गया, किंतु उसे अब नींद नहीं आ रही थी, वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह यहां कैसे आया ? और मन ही मन उसने निश्चय किया कि कल वह फिर उसी स्थान पर जाकर देखेगा कि वह सन्यासी कौन था ? और मैं यहां कैसे आया ?

  

  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post