Shaitani mann [part 43]

 देखो !तुम्हारी हालत कैसी हो गई है ? इसको कहते हैं -'' चोर की दाढ़ी में तिनका '' कहते हुए सौम्या हंसने लगी।वह अपनी सहेलियों से तो यही कहकर आई थी -'अब देखो !मैं इसे कैसे मज़ा चखाती हूँ ?और अब नितिन के पास आकर उससे बातें करने लगी। 

उसकी सहेलियाँ  उसे दूर से ही देख रहीं थीं और आपस में ,एक -दूसरे से कह रहीं थीं -ये तो उसे मजा चखाने गयी थी या उससे बातें करने ,देखो !वहाँ बैठी कैसी बतिया रही है ?

सौम्या नितिन से बोली -तुम अपने किस दोस्त को ढूंढ रहे थे ? उस दोस्त का नाम मुझे बता दो ! मैं उसे तुम्हारे पास लेकर आ जाऊंगी। 



नहीं, इतनी आवश्यकता भी नहीं है , मैं अपने आप उससे बात कर लूंगा। 

तब क्या मैं तुमसे बात कर सकती हूं ?

नितिन ने एक नजर सौम्या की तरफ देखा, और हकलाते हुए बोला -मुझसे....... क्या बात करनी है ?उसने अपने आप को संभाला और बोला  -हां, जो कुछ पूछना है, पूछ सकती हो। 

तुम्हारे कितने दोस्त हैं ?

नितिन ने कुछ देर सोचा और बोला -अभी तक तो कोई नहीं बना है। मेरे कमरे में दो लड़के रहते हैं। 

उसकी बात बीच में काटते हुए सौम्या ने पूछा-क्या वे, तुम्हारे दोस्त हैं ?जैसे उसे आश्चर्य हो रहा हो। 

नहीं, मेरे कहने का मतलब यह था , अभी तक मैं उन दो लोगों को ही जान पाया हूं लेकिन वह लोग, मेरे हिसाब से सही नहीं हैं। मैं अपना कमरा बदलना चाहता था किंतु यह भी एक चैलेंज है। 

क्या ?सौम्या ने पूछा। 

ऐसे लोगों के साथ रहना। रोहित और सुमित की बुराई करके नवीन अपने को, अच्छा साबित करना चाहता था। 

खैर, यह सब छोड़ो ! सौम्या लापरवाही से बोली -अच्छा यह बताओ ! तुम्हें  क्या-क्या पसंद है ?

मतलब ! मैं कुछ समझा नहीं। 

मैंने ऐसा क्या विशेष पूछ लिया है ? जो तुम इतना हड़बड़ा रहे हो , यही पूछा है, कि तुम्हें क्या पसंद है ? जैसे कि खाने में, खेलने में, पढ़ने में। 

ओह ! उसकी बातों का आशय समझ कर, नवीन के चेहरे पर मुस्कुराहट आई , अब वह अपने को धीरे-धीरे संयमित कर रहा था, तब वह बोला -मुझे खाने में, 'मलाई कोफ्ता' पसंद है। खेलने में, मैं जब भी समय मिलता है' क्रिकेट' खेलता हूं। पढ़ने में मुझे, रहस्यात्मक चीजों को जानना और उन्हें समझना अच्छा लगता है, अब तक नितिन का तीव्र गति से धड़कता हुआ दिल, सामान्य तरीके से धड़कने लगा था।सामान्य होकर , तब वह बोला -क्या तुम इस कॉलेज में, कुछ देर से नहीं आई हो ?

तुम सही कह रहे हो , देरी तो हुई है किंतु कोई बात नहीं, तुम जैसे दोस्त होंगे, तो जो पढ़ाई रुक गई थी, वह शीघ्र ही पूरी होगी। मेरे पापा और हम देहरादून में रहते थे , अचानक उनके यहां पर बदली हो गई इसीलिए हमें यहां आना पड़ा। सोचा तो यही था -इस साल हम वही रहेंगे, पापा यहां आ जाएंगे फिर सोचा -अगले साल भी मेरे लिए सब कुछ एकदम नया हो जाएगा। हो सकता है, शिक्षा का पाठ्यक्रम भी बदला हुआ हो, तब सोचा, जो भी होगा, देखा जाएगा। यही सोच कर हम लोग यहाँ आ गए , सबसे बड़ी बात तो यह थी, कि  यहां मेरा दाखिला आराम से हो गया।

 सौम्या को नजदीक से देखना, नवीन को अच्छा लग रहा था , उसने महसूस किया , यह दूर से ही नहीं, करीब से भी इतनी सुंदर ही है। बातचीत से लगा, इसमें किसी प्रकार का घमंड , नहीं है। मन ही मन वह तो नितिन  को वैसे ही अच्छी लग रही थी अब तो बातचीत भी हो गई।वो अपने विषय में बताये जा रही थी और नितिन उसे देखे जा रहा था,जैसे किसी अलग ही दुनिया में खो गया हो ,सोच रहा था- ऐसी सुंदर और सुलझी हुई लड़की, यदि मेरे जीवन में आ जाए तो जीवन संवर जाए। 

ऐ...... क्या सोच रहे हो ? सौम्या ने उसे क्षितिज में देखते हुए पूछा -तुम सुन भी रहे हो ,कहाँ खो गए ?

 कुछ नहीं, अभी तक मेरा कोई दोस्त नहीं बना था, न ही किसी से मेरी इतनी बातें हुई किंतु आज तुमने मुझे अपना दोस्त कहा, अच्छा लगा। 

तुम्हें तो मैं शुरू से ही पसंद हूं, क्या मैं समझती नहीं ? सौम्या ने मुस्कुराते हुए, नवीन की आंखों में झाँका। 

उसकी आंखों से, आंखें टकराते ही नवीन के शरीर में एक बिजली सी कौंध गई।वो बोली -क्या अभी तक कोई लड़की तुम्हारी दोस्त बनी है या नहीं ? 

अब इस बात का नितिन क्या जबाब दे यही सोच रहा था ?

क्यों ? क्या गिनती कर रहे हो ?तुम्हारी कितनी दोस्त हैं ?कहते हुए अपनी ही बात पर हंसने लगी। 

नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है ,अभी -अभी एक दोस्त बनी है। 

इससे पहले........ 

कोई नहीं ,स्पष्ट शब्दों में बोला। 

मैं तुम्हारी दोस्त कब बनी ?तुमसे किसने कहा ?मैं तुम्हारी दोस्त हूँ ,लग रहा था ,वह नितिन की स्थिति का लाभ उठा रही थी ,उससे मजे ले रही थी। 

अभी तुम ही तो कह रहीं थीं, नहीं हो ,उसकी तरफ देखते हुए नितिन ने पूछा अब नितिन ने अपनी घबराहट छोड़ी और बातें करने का मन बनाया।  

सौम्या के पास कोई जबाब नहीं था ,तब वो बोली -तुम मुझे ताकते क्यों रहते हो ?

खूबसूरत चीज देखने के लिए ही होती है ,कोई चीज सामने दिख रही है ,उसे देखकर अपनी ऑंखें बंद कर लेना तो उस सुंदरता का अपमान हुआ न..... 

नितिन के इस जबाब से सौम्या प्रभावित हुए बिना न रह सकी और बोली -सुंदरता को देखना बुरा नहीं है किन्तु छुप -छुपकर देखने को क्या कहेंगे ?

ऐसा कौन कर रहा है ?अनजान बनते हुए नितिन ने पूछा और बोला -यदि कोई ऐसा कर भी रहा है ,तो हो सकता है उसे, वह सुंदरता भा गयी हो और बार -बार उसका मन उसे देखने के लिए ललचा रहा हो। अब सामने आकर किसी से यह तो कह नहीं सकता ,कि मुझे....... तुम ख़ैर !ये सब बातें छोडो ! तुम मेरे पास आईं क्या कोई काम था ?आत्मविश्वास से नितिन बोला। 

अभी कुछ देर पहले तो यह हकला रहा था और अब न जाने, इसमें कौन सी शक्ति आ गयी ?बराबर जबाब दिए जा रहा है ,कोई बात ऐसी भी नहीं कर रहा ,जिससे वह आक्रामक हो सके। अभी तक तो सौम्या उसको परेशान करने के  उद्देश्य से उससे बात कर रही थी किन्तु अब नितिन के तेवर देखकर बोली -मैं अभी जाती हूँ। 

हाँ ,हाँ तुम्हारी दोस्त इधर ही देख रहीं हैं ,तुम्हें जब भी मेरी किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो ,या मुझसे बातें करने का दिल करे तो बेख़ौफ चली आना।सौम्या से जाते -जाते पूछा - अब हम दोस्त जो हो गए हैं ,हैं न...... सौम्या ने उसकी तरफ देखा और चुपचाप आगे बढ़ गयी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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