जिंदगी इंसान को न जाने कहां से कहां पहुंचा देती है ? और क्या से क्या दिखा देती है ? यही सब तो, रामखिलावन की जिंदगी में चल रहा था। रामखिलावन ने अब तक कभी ऐसा कुछ सोचा भी नहीं था,जो ये सब उसकी जिंदगी में हो रहा था। उसे तो लग रहा था, अब बच्चे, बड़े हो गए हैं, हमारे उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाएंगे, अपने-अपने परिवार के साथ, दोनों व्यस्त हो जाएंगे और हम भी, सुकून से अपने नाती- पोतों के साथ, अपने बुढ़ापे को काट सकेंगे किंतु इंसान तो न जाने क्या-क्या सोचता है और क्या-क्या इच्छाएं रखता है ? क्या, कभी किसी की इच्छा पूर्ण हुई है?
अब यह समय तो, रामखिलावन की परीक्षा का समय चल रहा था , कैसी विपत आन पड़ी है ? सोच रहा था- बेटी का विवाह हो जाएगा , वह अपने घरबार की हो जाएगी। तब बेटे के लिए कुछ सोचेंगे, किंतु बेटी ने ही उसे, बहुत बड़ा अनुभव करा दिया। जिस घर- संसार, के साथ, वह अपनी दुनिया बसाये बैठा था , वह दुनिया आज उसे झूठी नजर आ रही थी। तमाम रिश्ते झूठे नजर आ रहे थे। सब कुछ स्पष्ट सा होता नजर आ रहा था। संसार में अपना कोई भी नहीं है, सभी अपने-अपने स्वार्थ से जुड़े हैं। आज वह मानसिक और शारीरिक रूप से अपने को बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था।
वह अंदर से टूट रहा था, ऐसे समय में उसके मन में, कोई सकारात्मक विचार आने का प्रश्न ही नहीं उठता। अंगूरी, उसकी पत्नी है, उसकी जीवन संगिनी !वैसे तो उसकी गलती कुछ भी नहीं है, उसने हमेशा ही सुख-दुख में उसका साथ दिया है। पर क्या करें ? गलती किसकी है ? हमारी परवरिश की, या हमारे दिए संस्कारों की। आज उसका मन ही उससे प्रश्न कर रहा है - क्या हमें सरस्वती को पढ़ाना नहीं चाहिए था ? अपने बच्चों को ,आगे बढ़ाना कौन नहीं चाहता ? मैंने तो, अपने बच्चों का कभी बुरा ही नहीं सोचा फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ? मैं लोगों को क्या जवाब दूंगा ? जब वह पूछेंगे ! कि बेटी का विवाह नहीं कर रहा है और जब उन्हें पता चलेगा कि बेटी ने, किसी गैर मजहब के इंसान से विवाह कर लिया है।तब लोग मुझ पर हँसेंगे। कैसा बाप है ? एक बेटी न संभाल सका, सोचते हुए ,रामखिलावन रोने लगा। क्या उसने, अपनी शिक्षा से यही ग्रहण किया ? इस शिक्षा से उसने क्या पाया ? अपना ही स्वार्थ देखा , अपने लिए सोचती रही, कभी घर- परिवार,अपने माता -पिता के बारे में सोचा ही नहीं।
तमाम उम्र यही सोचते रहे, कि हमारे पिता ने हमें पढ़ने के लिए ,बाहर नहीं भेजा, पढ़े किन्तु जो करना चाहते थे ,नहीं कर पाए। न पढ़ाकर हमारे साथ अन्याय किया, हमें कहीं बाहर नहीं जाने दिया। उन्होंने पढाया तो था, किंतु कभी अपने से अलग नहीं किया। हो सकता है ,मैं भी पढ़ लिखकर ऐसा ही हो जाता शायद मेरे बड़े- बूढ़ों ने, यही सोचकर हमें आगे नहीं पढ़ाया होगा। हम अपने बड़े- बूढों के विचारों को, उनके अनुभवों को झुठला देते हैं किंतु कुछ समय पश्चात पता चलता है या महसूस होता है , कहीं न कहीं वह सही थे।
मैंने बेटी को उड़ने के लिए आकाश दिया, उसकी सोच को आगे बढ़ाने के लिए संपूर्ण जहां दिया किंतु उसकी सोच एक जगह आकर अटक गई, उसकी उड़ान बांध दी गई। मैंने यह तो नहीं सोचा था , किसी को ज्यादा आजादी देने से, वह उड़ता तो है, कभी- कभी राह भी भटक जाते हैं , किंतु जहां बच्चा पलता है, उसकी परवरिश होती है, उस स्थान को भूल जाता है। यह सब, मनुष्य में ही क्यों होता है ? जानवर को भी पालते हैं तो वह भी घूम- फिरकर वापस अपने घर पर ही लौट आता है।
लाइट चली गई थी, कमरे में अंधेरा था ,बाहर का मौसम बदल रहा था ,आज की रात्रि ,उसका असर न जाने किस -किस पर पड़ने वाला है ?रामखिलावन की ज़िंदगी में तो पहले ही, कितना बड़ा बदलाव आ चुका था ? इस बदलते मौसम का उस पर कोई असर नहीं था। रामखिलावन को सोचते- सोचते लगभग अर्धरात्रि हो गई थी। उस कमरे में,उसे घुटन सी महसूस होने लगी, उसने लालटेन जलाई , किंतु अब भी उसे, कुछ स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था। सब कुछ धुंधला- धुंधला सा लग रहा था। मन को टटोलकर देखा, कहीं भी न कोई वेदना है, और न ही प्रसन्नता ! जीवन व्यर्थ गया निराशा ने उसे घेर लिया था। लालटेन जल रही थी, तब भी उसे चहूं ओर अंधकार ही नजर आ रहा था।
अंगूरी का क्या ?वो अपना दर्द किससे कहे ? बेटा भी परेशान था ,और पति तो कुछ कह ही नहीं रहे ,अब तो उसे लगता है,उसे ही अब मजबूत होना होगा,अपने टूटते घर को फिर से खड़ा करना होगा। किसी की भी ,भोजन करने की इच्छा नहीं थी किन्तु अंगूरी ने अपने पति और बेटे के लिए भोजन बनाया और परोसा भी। स्वयं खाने बैठी ,किन्तु बेटी की याद आते ही, आँखों में आंसू आ गए ,निवाला मुँह तक न पहुंचा ,पानी पीकर सो गयी।
प्रातःकाल अंगूरी उठी, और रामखिलावन के आने की प्रतीक्षा करने लगी। उसने घड़ी में समय देखा, सुबह के 6:00 बज रहे थे। इस समय तक को दूध लेकर, प्रेम के पिता आ जाते हैं अभी तक नहीं आये फिर सोचा -कुछ कह नहीं रहे हैं, किंतु बेटी ने जो दिन दिखाए हैं, उसके कारण, मन से हताश हो चुके हैं , शायद रात को नींद भी ठीक से न आई होगी इसीलिए देर तक सो रहे होंगे। कुछ देर और प्रतीक्षा कर लेती हूं ,सोचकर झाड़ू उठाकर घर की सफाई में जुट गयी। कार्य करते हुए सोच रही थी -आदमी इतना शारीरिक श्रम से नहीं थकता है , जितना चिंता, मानसिक थकान, उसे थका देती है। 3 दिन में ही, ऐसे लग रहे हैं न जाने कितने बूढ़े हो गए हो ? किंतु कर भी क्या सकते हैं ? बेटी को तो ब्याहना ही था , कोई बात नहीं, जब कोई बाहर वाला पूछेगा -तो कह देंगे ! उसका विवाह शहर में ही ,कर दिया अपने आप को, बाहर के लोगों से झूठ बोलने के लिए तैयार कर रही थी, कि लोगों से क्या बहाना बनाना है ?