Shaitani mann [part 41]

कमरे में एक तरफ फोन पड़ा हुआ था, फोन पर घंटी बज रही थी, तभी नितिन के दोस्त सुमित ने कहा -अरे यार! इतनी देर से ,तेरे फोन की घंटी बज रही है, उठाता क्यों नहीं है ?

नितिन कुछ नशे में था, अभी रात की खुमारी नहीं उतरी थी। फोन उठाकर देखा, उस पर नाम देखकर, मन ही मन बड़बड़ाया -अरे यार ! घर से फोन है। मम्मी का फोन ही होगा, कहेंगी -' बहुत दिन हो गए ,घर नहीं आया, अब आता क्यों नहीं है ?वही शिकायतें लेकर बैठ जाएँगी ,अब तू बदल गया है ,क्या तुझे अपने घरवालों की याद नहीं आती ? मैं उनसे कितनी बार कह तो चुका हूं,जब  समय मिलेगा तो आ जाऊंगा। 

तो जाता क्यों नहीं ?अब ये निर्णय बाद में कर लेना,पहले अब फोन तो उठा, उन्हें परेशानी हो रही होगी, कहीं ऐसा न हो,वे लोग, तुझे ढूंढते हुए यही आ जाएं कहते हुए सुमित हंसने लगा। 


 

तब तक फोन कट चुका था ,नितिन बिस्तर से उठा ,और स्नानागार में गया,ताजे पानी से मुँह पर छींटे मारे ,अपने को आईने में अपने को निहारा। उसे लगा ,ये वो नितिन नहीं जो दो साल पहले यहाँ आया था ,ये नितिन  तो कोई और है। इसे सच में ही ,किसकी परवाह है ,घरवालों की परवाह तो दूर ,उसे अपनी ही परवाह ही नहीं रह गयी है। उसकी ज़िंदगी न जाने कहाँ जा रही है ?उसे स्वयं ही नहीं मालूम !

 रोहित हंसते हुए सुमित से बोला -यार! इस पर तो, बहुत जल्दी असर पड़ गया, जब यह शुरू -शुरू में यहाँ आया था।कितनी संस्कारों की बात करता था ?अपने कमरे को देखते हुए बोला - इस कमरे को कितना साफ रखता था ?और हमें भी साफ रखने के लिए कहता था और अब देखो !इसकी क्या हालत बना रखी है ? सिगरेट के टोटे पड़े हैं , शराब की बदबू संपूर्ण कमरे में भरी है। यह है, नरेंद्र जी के संस्कारी बेटे ! कहते हुए ,सुमित के हाथ पर हाथ मारकर हंसने लगा। उनके संस्कार तो, शीघ्र ही चोला छोड़ गए, कोई हमारे साथ रहे , उसका हृदय परिवर्तन न हो ,यह तो हो ही नहीं सकता हंसते हुए जीत की खुशी में सुमित जोर -जोर से हंसने लगा। 

स्नानागार, से बाहर आकर, नितिन  बोला - क्या हो रहा है ?बड़ी हंसी आ ही है। 

अरे यार ! ऐसे लोगों की यही परेशानी होती है, बच्चों को एक पल भी छोड़ना नहीं चाहते हैं ,अपने पास रखना चाहते हैं अपनी नजरों के सामने,तुम यहाँ रहकर मजे में अपनी ज़िंदगी जी रहे हो किन्तु वे लोग नहीं चाहते ,बच्चा खुश रहे ,अपनी इच्छा से जीवन जिए। 

 अब तो बहुत दिन से घर ही नहीं गया हूं। उन लोगों को बेचैनी होती रहती होगी - मैं क्या कर रहा हूं ? क्या नहीं ? जानने की तीव्र इच्छा होती होगी। 

अरे हमारी भी अपनी जिंदगी है, उसको अपने ढंग से जीना चाहते हैं, तो जीने नहीं देते। संस्कारों की घुट्टी बचपन से ही घोटकर पिलाने में लगे रहते हैं। अरे कोई उनसे पूछे ,इस जीवन में किस लिए आए हैं ? मौज मस्ती के लिए, जीवन को खुलकर जीने के लिए , किंतु यह लोग सोचते हैं हम उनके आज्ञाकारी बच्चे बनकर उनके आगे -पीछे घूमते रहें। यही उम्र तो खेलने कूदने की है , मौज- मस्ती करने की है, इसमें भी चाहते हैं कि हम पढ़- लिखकर, उनकी और घर की जिम्मेदारियां को संभाल लें । हम अपने लिए कब जिएंगे ? कहते हुए सुमित ने एक सिगरेट सुलगा ली। 

कॉलेज चलना है या यहीं रहना है,रोहित ने पूछा।  

नहीं, कॉलेज तो जाना है, नितिन बोला -फेल हो गया तो घर वाले एक भी पैसा नहीं देंगे। पढ़ाई का खर्चा भी स्वयं ही निकालना पड़ेगा। पूछेंगे-' जो हमने खर्चा दिया था उसका क्या हुआ ?' सवालों के कटघरे में खड़ा कर देंगे उससे बेहतर यही है कॉलेज चला जाए। नया माल आया है क्या ?

अभी तो नहीं आया है कार्तिक भैया से बोलो !क्या कर रहे हैं ?

यह सब सामान ,खरीदने के लिए पैसा भी तो चाहिए कहते हुए उसने, अपने दारू की बोतल सिगरेट इन सभी सामानों की तरफ इशारा किया। 

सब हो जाएगा, जब तक हम तेरे साथ हैं , कोई कमी नहीं होने देंगे। 

दूर कहीं शहर से बाहर, एक सुनसान खंडहर में, एक तांत्रिक धूनी रमाये बैठा था। बड़े-बड़े मंत्रों से, भारी भरकम शब्दों में, कोई तांत्रिक क्रिया कर रहा था। लोग कहते हैं, बहुत पहुंचा हुआ तांत्रिक है , जो कह देता है वह पूरा हो जाता है। कोई भी मन की परेशानी हो चिंता हो , कोई अधूरी इच्छा हो , किसी से मिलने की चाहत हो। सब तांत्रिक बाबा की कृपा से पूर्ण हो जाती है। आज भी वह एक ऐसी ही क्रिया कर रहा है। बच्चा! हम तुम्हारी परेशानी समझते हैं, यदि तुम उसका प्यार पाना चाहते हो , तो तुम्हें हमारे बताएं मार्ग पर चलना होगा। 

जी, गुरु जी मैं आपके बताइए मार्ग पर ही चलूंगा किंतु वह मुझे मिल जानी चाहिए, मेरी हो जानी चाहिए मैं उसे बहुत प्यार करता हूं। 

हां हां हां क्यों नहीं, ऐसा नहीं होगा, उसने तुम्हारे साथ जीने- मरने के लिए ही तो जन्म लिया है। 

ऐसा कुछ भी नहीं है, यदि ऐसा होता तो मुझे यहाँ नहीं आना पड़ता। 

क्यों नहीं आते ?सब पहले से ही निश्चित होता है। तुम्हें मेरे पास आना ही था। यह सब ग्रहों की चाल है, वह फिर से तुम्हारी होगी। बस कुछ उपाय करने होंगे, तुम्हारा फल तुम्हारी झोली में ही आकर गिरेगा कहते हुए उन्होंने उस हवन कुंड में सामग्री डाली और अग्नि और तीव्र हो गई।

नितिन ने बाबा जी को दंडवत प्रणाम किया और उस खंडहर से बाहर आ गया।मन ही मन नितिन प्रसन्न हो रहा था ,अब तो सौम्या को मेरी होने से कोई नहीं रोक सकता।  

आखिर नितिन अब क्या चाहता है ?वह अभियंता बनने की शिक्षा ग्रहण कर रहा है किन्तु इस तांत्रिक  बाबाजी के झांसे में क्यों आ गया ?आखिर वह क्या चाहता है ?वह किसके लिए यह पूजा करवा रहा है ?आखिर ये तांत्रिक उसे ऐसा कौन सा उपाय बताने वाला है ?जिसके कारण वह बाबा से उपाय करवाना चाहता है ,आखिर वह कौन है ?चलिए आगे बढ़ते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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