''देखो !ये अनमोल मोती हैं ,इन्हें सहेजकर रखो ! अश्रु नहीं ,ये गंगाजल है ''इन अनमोल आंसुओं की कीमत हर कोई नहीं जानता ,उनकी क़द्र भी नहीं करता।''जो क़द्र करते हैं ,वो अपने प्रियजनों के आंसू आने नहीं देते। किन्तु क्या करें ?यह ह्रदय ही इतना संवेदनशील है। जिसका हृदय भावों से भरा होता है, उसके हृदय में यह रसधार बहती ही रहती है , कभी प्रसन्नता में, तो कभी विरह में , वेदना में, यह रसधार, कुछ अधिक ही तीव्र हो जाती है। मन का संपूर्ण क्लेश साफ हो जाता है। रोकर हृदय की वेदना से ,हृदय हल्का हो जाता है और मन पवित्र गंगाजल की तरह निर्मल हो जाता है। ये अश्रु जल, गंगा जल की धार की तरह पावन होते हैं। इसके बहने से मन स्वच्छ और निर्मल हो जाता है।
यह मन को ही नहीं आत्मा को भी शुद्ध कर देती है। इसी प्रकार ह्रदय प्रसन्नता में भी, कभी-कभी भाव- विभोर होकर, बालक की भांति रो उठता है। उसका मन इतना निर्मल हो जाता है कि वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाता। ज़्यादातर मनुष्य की ऐसी अवस्था' भक्ति भाव' अथवा 'प्रेम भाव 'में होती है। उसके नेत्रों से बहते अश्रु किसी गंगाजल से कम नहीं होते। उसके ये अश्रु गंगाजल की तरह पवित्र होते हैं। संवेदना कोई भी हों किंतु जब यह अश्रु, हृदय से होते हुए ,चक्षु मार्ग से बाहर आते हैं। हृदय को स्वच्छ कर जाते हैं। जैसे पवित्र गंगाजल की बूंदे, मानव के बाहरी तन को, भिगोकर पवित्र कर देती हैं इसी प्रकार मानव का अंतर्मन भी इन गंगाजल रूपी अश्रुओं से पावन हो जाता है।
कई बार ये अश्रु पश्चाताप के भी हो सकते हैं। यदि किसी ने कोई जानबूझकर या अनजाने में ही, कोई ऐसा कार्य किया है जिसके कारण उसकी आत्मा स्वयं ही, उस कार्य की गवाही नहीं दे रही है। तब यह पश्चाताप के आंसू ही, उसकी भूल को सुधारने का प्रयास करते हैं। कहने को तो यह अश्रु विभिन्न कारणों से आ सकते हैं , जैसे किसी के कड़वे बोल जो हृदय को दुखा जाते हैं, तब भी अश्रु आ जाते हैं ,किसी के छल के कारण भी छलक आते हैं। किसी प्रेमीजन से बिछड़ने के कारण, भी यह अश्रु साथ निभाते हैं।ये कभी भी कोमल ह्रदयों का साथ नहीं छोड़ते ,पाषाण ह्रदय में वास नहीं करते। इन अश्रुओं के कारण हृदय स्वच्छ और निर्मल हो जाता है। ये अश्रु अधिकतर संवेदनशील व्यक्ति का गहना होते हैं।
आँसूओं की गहराई को कोई सरलता से माप नहीं सकता ,क्योंकि कभी -कभी मगरमच्छी अश्रु भी सोचने पर मजबूर कर जाते हैं ,झूठे अश्रु भी धोखा दे जाते हैं। जब ये अश्रु सच्चे आंसुओं पर भी भारी पड़ जाते हैं।तब उससे बड़ा वेदनापूर्ण समय कोई नहीं हो सकता।किन्तु जब ये अश्रु समर्पण के होते हैं ,तो कभी वेदना से बहते हैं ,तो कभी प्रेम बयाँ कर जाते हैं मौन रहकर भी, ह्रदय के हालात समझा जाते हैं इससे भी अधिक पश्चाताप के अश्रु उनसे पवित्र अश्रु कोई नहीं। ये इंसान की कमजोरी को नहीं दर्शाते बल्कि ये उसके साहस का प्रमाण है। जब ये अश्रु बाहर आते हैं ,न जाने कितनी वेदना ,कितनी बातों का सैलाब ,कितने पश्चाताप एकसाथ उमड़ आते हैं। जिस प्रकार बाढ़ आकर सब गंदगी को अपने संग बहाकर ले जाती है ,उसी प्रकार ये अश्रु भी अपना कार्य करके उस स्थल को स्वच्छ और निर्मल कर जाते हैं।