Mera saya

 कोई तो संग है,साथ निभाता है। 

 हर सुख -दुख का साथी है। 

 दिखता नहीं कोई ,

''साया ''वो अपना सा !

साथी बन,साथ निभाता है। 



वह कौन? आखिर कौन है,वो ?

हरदम साथ निभाता है। 

 चलता है ,संग-संग,  

उपलब्धियों का साक्षी बन ,

संग -संग बढ़ता रहा। 

कुछ परछाइयां हैं,अस्पष्ट सी.... 

जो दिखती नहीं,इन नयनों से 

ज्ञान के प्रकाश में संग खडा,

वह साया !मेरा अपना था । 

 प्रकाश बिन , अस्तित्व कहां ?

लुप्त हुआ,अंधकार में 

मेरा साया, मुझ में ही समा गया। 

चढ़ता ,सीढ़ी दर सीढ़ी बढ़ता गया।  

बन गया ,जैसे मेरा अपना ही साया !

मेरा' अहं' मुझसे भी बड़ा हो गया। 

चला था, जिस मंजिल की ओर,

वह भी बढ़ता गया, रोशनी में,

मुझे, मेरा आइना दिखला गया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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